मौलिक अधिकारों की रक्षा नहीं की तो खत्म हो जाएगा संविधान का मह्त्व - सुप्रीम कोर्ट
साथ ही एक अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में शादी समारोहों में फिर से डीजे की धुन पर थिरकने का रास्ता साफ कर दिया है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें प्रदेश के अंदर डीजे बजाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई थी।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने शादी या अन्य समारोहों में डिस्क जॉकी (डीजे) चलाकर आजीविका कमाने वाले पेशेवरों को भी राहत दी है। अदालत ने वैवाहिक सीजन की शुरुआत से ठीक पहले उत्तर प्रदेश सरकार को नियमों के तहत इन लोगों को डीजे चलाने की इजाजत देने का आदेश दिया है।
एक तरफ सुप्रीम कोर्ट यह कहता है कि अगर मौलिक अधिकारों की रक्षा नहीं की तो खत्म हो जाएगा संविधान का महत्व और दूसरी तरफ शादियों में फिर से डी जे बजाने पर रोक के हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगाता है, क्या इस फैसले द्वारा संविधान का मह्त्व बढ़ रहा है या कुछ और ही हो रहा है जबकि -
अनुच्छेद 21 के तहत उल्लिखित जीवन ’केवल जीने या सांस लेने की शारीरिक क्रिया को नहीं दर्शाता है। भारतीय संविधान में इसका और भी गहरा अर्थ है जो इसके साथ और भी कई अधिकारों को जोड़ता है, जैसे:
*मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार;
*आजीविका का अधिकार;
*स्वास्थ्य का अधिकार;
*प्रदूषण मुक्त हवा का अधिकार;
*गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने का अधिकार;
*विदेश जाने का अधिकार;
*एकान्तता का अधिकार;
*एकान्त कारावास के खिलाफ अधिकार;
*विलंबित निष्पादन के खिलाफ अधिकार;
*आश्रय का अधिकार;
*हिरासत में मृत्यु के खिलाफ अधिकार;
*सार्वजनिक फांसी के खिलाफ अधिकार; तथा
कुछ भी और सब कुछ जो एक गरिमापूर्ण जीवन के मापदंड को पूरा करता है।
और प्रदूषण मुक्त हवा का जो अधिकार हमें संविधान ने दिया है क्या वह डी जे बजने पर हमें मिल सकता है?
एक अर्थ में अनुच्छेद 21 अपने दायरे में असीम है क्योंकि यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य को एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने की आवश्यकता है ताकि वह अपने जीवन को बेहतर, अधिक फलदायी और सुरक्षित बनाने के अवसरों को वहन कर सके।
जीवन के अधिकार पर एक ऐतिहासिक फैसले में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य बातों के साथ यह भी कहा कि, "यहाँ इस्तेमाल किया जाने वाला जीवन कुछ और है जो केवल पशु अस्तित्व से अधिक है ..."
इसलिए, जीवन के अधिकार में मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है और यह सब उसके साथ चलता है, अर्थात जीवन की आवश्यकताएं जैसे पर्याप्त पोषण, कपड़े, आश्रय और आत्म अभिव्यक्ति की सुविधाएं जैसे पढ़ना लिखना और व्यक्त करना, अपने आप को विविध रूपों में, स्वतंत्र रूप से समाज के साथ मिलना।इस तरह हम देखते हैं कि अनुच्छेद 21 में गारंटी के रूप में जीवन का अधिकार समग्रता में उन अधिकारों और दायित्वों का संपूर्ण गुलदस्ता है जो स्वतंत्रता और गरिमा के जीवन की गारंटी देता है और ये निश्चित है कि डी जे बजाए जाने के स्थल के आस पास रहने वालों को तो जीने का ही अधिकार नहीं रहता फिर गरिमा मय जीने का अधिकार की तो सोचना भी दूर की कौड़ी है.
शालिनी कौशिक
एडवोकेट