2 अप्रैल 2022 से विक्रम संवत 2079 का आरंभ होता है. चूंकि संवत की शुरूआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में नवरात्रों से होती है और नवरात्र के व्रतों में हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा कुट्टू के आटे का ही प्रयोग बहुतायत में किया जाता है तो यही किया गया किन्तु दुर्भाग्यवश वह आटा शामली और सहारनपुर जिले के 28 व्रती जनों को नुकसानदायक रहा और उन्हें स्वास्थ्य लाभ हेतु अस्पताल जाना पड़ गया.
खबर तेजी से फैल गई और जिला मजिस्ट्रेट शामली सुश्री जसजीत कौर ने सतर्कता बरतते हुए तुरंत जांच के निर्देश जारी कर दिए और एसडीएम बृजेश कुमार सिंह पहुंच गए उन दुकानों पर, जहां से खाद्य पदार्थ की बिक्री हुई थी. जहां पहुँचकर उन्होंने खाद्य पदार्थों के नमूने लिए और नमूने लेते ही शुरू हो गया प्रशासन की कार्रवाई का व्यापारियों द्वारा विरोध.
सवाल ये हैं कि -
1- व्यापारियों द्वारा प्रशासन की कार्रवाई का विरोध क्यूँ किया गया?
2- क्या 28 लोगों की तबीयत खराब होने की खबर कोई प्रोपेगेंडा थी?
3- क्या सामान बेचने वाले का कोई नैतिक दायित्व नहीं होता?
4- और क्या व्यापारियों को स्वयं अपने द्वारा बेचे जा रहे खाद्य पदार्थ के विषाक्त होने का डर था?
ये सब सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि आज का समय कोई सामान्य समय नहीं है. आज नवरात्रि और रमजान दोनों साथ ही चल रहे हैं जो कि पहले भी चलते रहे होंगे किन्तु हमने कभी इनके सुचारू रूप से चलने के लिए पुलिस प्रशासन को बाज़ार में घूमते हुए नहीं देखा. ये तो पीड़ितों ने कुट्टू का आटा हिन्दू समुदाय के ही व्यापारी सतीश कुमार और पवन कुमार से खरीदा था, अगर कहीं यह खाद्य पदार्थ गैर समुदाय के दुकानदार से खरीदा होता तो इस मामले से साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगड़ने में क्षण भर की भी देर नहीं लगती. ऐसे में व्यापारियों को उनके द्वारा बेचे गए कुट्टू के आटे से लोगों की तबीयत खराब होने पर प्रशासन द्वारा कार्रवाई का इंतजार किए बगैर स्वयं अपने खाद्य पदार्थ लेकर प्रशासन के पास पहुंच जाना चाहिए था न कि महात्मा गांधी के धरना अस्त्र का प्रयोग करना चाहिए था. अगर व्यापारी वर्ग ऐसा करता तो आज समाज के समक्ष " पाप से घृणा" का बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत करता.
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कांधला