-------‐-सहदेव मामा---( कहानी प्रथम क़िश्त)
सहदेव ममा को देखकर मालती बहुत डरती थी । यह डर उसके दिल में बचपन से घर कर गया था । उनके मामा सहदेव बहुत ही ऊंचे कद काठी के इंसान थे साथ ही वे बोलते भी बहुत कम थे । इसके अलावा उनके चेहरे पर माता के दाग थे । जिसके कारण उनका चेहरा कुरुप दिखता था । उनका ईश्वरीय प्रद्दत रंग भी काला था ।
मालती के पिता रोमनाथ जी बिजली विभाग में बड़े बाबू हैं और उनकी नौकरी का अधिकान्श समय उदयपुर के पास स्थित छोटे से गांव झामर कोटरा में गुज़रा है । मालती वहीं से पढाई करते हुए आज 22 वर्ष की नवयुवती हो चुकी है । और अब वह कालेज की पढाई उदयपुर में करने लगी थी । जिसके लिए वह रोज़ ही झामरकोटरा से उदयपुर जाती है ।
मालती के मामा सहदेव पास स्थित गांव मगरी टोला में पंचायत विभाग में काम करते हुए हाल ही में सेवा निवृत हुए हैं । 3 साल पूर्व जबसे उनकी पत्नी का देहान्त हुआ था तब से उनका झामरकोटरा आना जान बहुत बढ गया था । वे एक बार झामरकोटरा आते तो लगभग 15 /20 दिनों तक रुका करते थे । सबको लगता था कि वे अपने ही परिवार के सदस्य हैं । वे किसी भी विषय पर जबरन टांग नहीं अड़ाते थे । न ही वे किसी विषय पर व्यर्थ वाद विवाद करते थे । सुबह वे चाय पीने के बाद घंटों अखबार पढने का आनंद उठाते थे । मामा जी से मालती के पिता और भाई भी शायद डरते थे । मालती का कभी अपने मामा सहदेव जी से आमना सामना होता था तो मालती उनसे यह ज़रूर कहती थी कि कैसे हो मामा जी । तब मामा जी का एक ही रटा रटाया सा जवाब रहता था कि सब उपर वाले की मेहरबानी है।
मालती का छोटा भाई मधुर ,मालती से केवल एक साल ही छोटा था पर वह 12 वीं तक ही पढाई करने के बाद पढाई से मुक्ति पा लिया था । अब वह रात दिन अपने दोस्तों के आवारागर्दी करने में ही लगा रहता था । उनके पिता रोमनाथ जी को फ़ुरसत ही नहीं थी कि वे घर परिवार की ओर उचित ध्यान दे सकें ।
इस तरह कुछ वर्ष बीत गए । मालती फ़िजिक्स में पोस्टग्रेजुवेट हो गई और उसे उदयपुर के एक स्कूल में शिक्षक का जाब भी मिल गया । स्कूल में जाब करते करते वह अपने ही विभाग के एक शिक्षक जिनका नाम मोहन राजपूत था के संपर्क में आयी । वे कुछ दिनों में एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए । धीरे धीरे उनकी दोस्ती प्यार का रंग लेने लगी । लेकिन ऐसी बातें छिपती कहां हैं । मालती और मोहन के मिलने जुलने की बात भी जब मालती के घरवालों को पता चली तो वे बहुत ही नाराज़ हुए । घर में एक तरह से बवाल मच गया कि कि कैसे एक मांझी समाज की लड़की राजपूत समाज के लड़के से प्यार कर सकती है और आगे उससे शादी करने की सोच रही है । आखिर अपने समाज के प्रति भी हम सबकी ज़िम्मेदारी है । उन दिनों उनके घर में मालती के मामा सहदेव जी भी आए हुए थे । उन्होंने इस विषय पर बिल्कुल खामोश ही रहे । उनके मन में क्या था कोई नहीं जान पा रहा था ?
अगले दिन मालती का भाई मधुर अपनी बहन को उदयपुर से झामरकोटरा ले आया । घर में उनके पिता और भाई ने मालती को बहुत समझाया कि वह मोहन से दूर हो जाओ । लेकिन जब मालती ने सहमति प्रदान नहीं किया तो उसे वे दोनों मारने पीटने भी लगे । इसके बाद तो मालती बिल्कुल खामोश रहने लगी । अब उसने स्कूल जाना भी त्याग दिया था । वह अपने दिल की बात न अपनी मां से न ही अपने भाई और पिता से कह पा रही थी और मामा सहदेव से तो वह बहुत ही डरती थी ।
देखते देखते 3 महीने बीत गए। मालती का शरीर सूखकर कांटा हो गया । उसके चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गई थी । वह अक्सर ही अपने कमरे में बिल्कुल चुपचाप बैठी रहती थी । एक दिन उसमे मां बाप और भाई किसी सामाजिक काम हेतु गांव से बाहर गए थे । घर में केवल मालती और उसके मामाजी ही थे । दोपहर 2 बजे के लगभग मामाजी ने आवाज़ देकर मालती को कमरे से बाहर बुलाया । और पूछने लगे कि भांजी आखिर माज़रा क्या है ? मामाजी की सहानुभूति पूर्ण बात सुनकर मालती रो पड़ी और मामा के पांवों में गिरकर कहने लगी मामाजी मैं मोहन के बिना जीवित नहीं रह सकती । मैं उन्हें हृदय की गहराइयों से प्यार करती हूं । अगर मेरे पिता और भाई मेरा विवाह कहीं और कराने का प्रयास करेंगे तो मैं आत्महत्या कर लूंगी ।
मामा—क्या मोहन से तुम सचमुच इतना प्यार करती हो ?
मालती—मामा जी मैं इसे शब्दों में बता नहीं सकती । मामा जी आप ही बताएं कि मैं क्या करूं ?
मामा--- क्या मोहन भी तुमसे उतना ही प्यार करता है ?
मलती – हां बल्कि शायद मुझसे भी ज्यादा ।
मामा---तो मैं तुम्हारी मदद करूंगा । तुम अपने शिक्षा के सारे प्रमाण पत्र सहेजकर तैयार रखो। महीने भर के अंदर प्लानिंग करके हम दिल्ली चले जाएंगे । वहीं मोहन को भी बुला लेंगे । वहां तुम लोगों को कुछ न कुछ जाब मिल ही जाएगा। वहीं तुम्हारी शादी करा देंगे । फिर तुम दोनों वहीं अपना जीवन बीताना ।
मामाजी की बात सुनकर मालती का मन गदगद हो गया । साथ ही वह आश्चर्य चकित भी थी कि जिस मामा से वह बेहद डरती थी , वे ही बड़ी ही गंभीरता और बड़े ही आत्मविश्वास के साथ मेरी मदद को ह्रिदय से तैयार हैं ।
सारी योजना बनाकर मालती लगभग 25वें दिन घर से भाग गई । घर में खोजा खोज मच गई । हर रिश्तेदर से मालती के पिता ने इस संबंध में मदद मांगी और अनुरोध किया कि मालती के बारे में अगर कुछ पता लगे तो तुरंत हमें सूचना दें । इस बीच मालती के मामा सहदेव जी भी चार दिनों के लिए वहां से गायब हो गए थे पर वे 5वें दिन वापस झामर कोटरा आ गए। लेकिन उनसे किसी ने मालती के बारे में कुछ नहीं पूछा ।
समय गुज़रता गया । धीरे धीरे चार वर्ष बीत गए । मालती के घर वालों को न मालती का पता चला न ही मोहन राजपूत के घरवालों को मोहन का पता चला ।
एक दिन दिल्ली के एक स्कूल की बस दुर्घटना ग्रस्त हो गई । जिसमे बस में बैठे चार छोटे छोटे बालक मारे गए । इस घटना को देश के सारे अखबारों ने प्रमुख स्थान दिया । अखबारों की रिपोर्ट में बच्चों के मारे जाने के अलावा यह भी छपा था कि बच्चों के साथ स्कूल की एक शिक्षिका मालती और एक शिक्षक मोहन राजपूत भी गए थे । और उन्हें भी हल्की फ़ुल्की चोटें आई हैं । यह समाचार राजस्थान के अखबारों में भी छपा । तब जाकर मालती और मोहन के घर वालों को पता चला कि दोनों दिल्ली के जी एस स्कूल में बतौर शिक्षिका शिक्षक काम कर रहे हैं। बस क्या था दोनों परिवार के लोग दिल्ली रवाना हो गए।
( क्रमशः )