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सहदेव मामा ( अंतिम क़िश्त )

13 अप्रैल 2022

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सहदेव मामा ( कहानी अंतिम क़िश्त  )

( अब तक -- मालती और मोहन के परिवार के लोग उनसे मिलने दिल्ली की ओर रवाना हो गए ) आगे

सबसे पहले मोहन के परिवार के लोग मोहन और मालती के संपर्क में आये। उनके सुखी परिवार को देखकर उन्हें  संतोष हुआ । मालती और मोहन का दो वर्ष का एक बच्चा भी था । जिसे देखकर उन्हें और भी खुशी मिली । । दो दिनों तक वे मोहन के परिवार के साथ रहे। फिर उन्हें आशीष देकर वे वापस अपने गांव लौट आये । 
वहीं मालती के भाई और पिता उन दोनों से बदला लेने के लिए कब से तड़फ़ रहे थे । वे मालती और मोहन को मार डालना चाहते थे । मालती के भाई और पिता  जब मालती की तलाश में दिल्ली पहुंचे तो वे दोनों दिल्ली से बाहर थे। स्कूल पहुंचे तो वे वहां नहीं थे । तब दो दिनों तक रहने के बाद मालती के भाई और पिता अपने गांव लौट आए । वहां वे मालती और मोहन को मारने की नई योजना बनाने लगे ।  
इस बीच एक दिन सहदेव जी ने मालती के पिता से कहा कि मुझे पता चला है कि वे दोनों अपने जीवन से बहुत ख़ुश हैं और अब तो उनका एक दो साल का बच्चा भी है । उन्हें यहां से गए 4 वर्ष से ज्यादा हो गए हैं । ऐसे में उनसे बदला लेना कहीं से भी उचित नहीं । आखिर मालती तो तुम्हारी ही बेटी है । 
उधर माझीं समाज के पंचायत से यह ऐलान हुआ कि या तो उन दोनों को पंचायत के सामने प्रस्तुत किया जाए या उन्हें यहां लाते न बने तो मार डाला जाये। जैसे ही मांझी समाज से यह संद्देश सामाजिक लोगों के बीच पहुंचा तो मालती के सहदेव मामा एक्टिव हो गए। वे अपन गांव मंगरी टोला में अपने समाज के लोगों को इकट्ठा करके समझाने लगे कि वे दोनों चार बरस से साथ रह रहे हैं । उनका एक छोटा बच्चा भी है । साथ ही वे अपने जीवन से बहुत ख़ुश हैं । इसके अलावा लड़का राजपूत परिवार का है और उसके परिवार वालों ने अब उन दोनों को स्वीकार कर लिया है । फिर उन्होंने एक और तर्क दिया कि देखा जाय तो सामाजिक रुप से राजपूत समाज का कद हमारे मांझी समाज से उपर रखा जाता है । तो हमें बड़े कद वाले परिवार में अपनी लड़की देने से क्यूं हिचकना चाहिए बल्कि यह तो हमारे के लिए गर्व की बात होनी चाहिए । अत: उनके विरोध में कोई सामाजिक कदम उठाना सही नहीं है । चूंकि सहदेव जी अपने गांव के हर परिवार के सुख दुख में हृदय से शामिल होते थे और आवश्यकता के समय लोगों की आर्थिक मदद भी किया करते थे । अत: लोग उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे । तथा उनकी बातों को मानते भी थे । इस तरह मंगरी टोला के अधिकान्श निवासी उनकी बातों से सहमत हो गए और उनके ही साथ खड़े रहने की कसमें खायीं । 
सहदेव जी ने अपनी बात खाफ़ पंचायत में भी रखी। साथ ही उन्होंने पंचायत के तीन लोगों का इतिहास भी सबके सामने रखा कि ये जो तीन पंच महोदय आज समाज की बातें कर रहे हैं । इन्होंने भी दूसरे समाज की लड़कियों से विवाह किये हैं । और आज वे समाज के ठेकेदार बनकर सलाह दे रहे हैं कि दूसरे समाज में शादी करना एक अपराध है जिसे हम स्वीकार नहीं कर सकते । सहदेव जी ने आगे कहा कि अब समय बदल गया है । लड़कियां पढ लिखकर गुणी हो रहे हैं। जिसके कारंण कई बार उन्हें अपने लायक लड़का अपने समाज में नहीं मिलता । ऐसे में उन्हें विजातीय शादी करने से रोकना नहीं चाहिए। वरना भविष्य में बहुत सारी समस्याएं पैदा होंगी । खाफ़ के बह्त सारे लोग सहदेव जी की बातों से सहमत दिखे । इस तरह से खाफ़ पंचायत भी दो फ़ाड़ों में बंट गया ।
 समय गुज़रता गया अब सहदेव जी की सुरक्षा में उनके साथ उनके गुट के 8/10 व्यक्ति सदैव हथियारों के साथ उनके आगे पीछे रहने लगे ।  धीरे धीरे सहदेव जी अपनी बात को सारे राजस्थान में फ़ैलाने लगे , और लोग उनके साथ जुड़ने लगे । जिससे यह हुआ कि लोग कहने लगे कि अगर आपको प्रेम विवाह करने से कुछ खतरा है तो आप मंगरी टोला चले जाइये वहां आप पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगे । इस तरह सहदेव जी की विचारधारा को प्रतिपादित करने वाला एक बड़ा संगठन राजस्थान में खड़ा हो गया।  इस बीच मालती भी कुछ दिनों के लिए मंगरी टोला में आकर अपने मामा सहदेव के घर में रहने लगी थी । उधर जब उसके भाई मधुर को पता चला कि मालती मंगरी टोला आ गई है तो एक दिन मंगरी टोला पहुंच गया और अपनी बहन को मामा के साथ बेखौफ़ झामर कोटरा आने का निमंत्रण दे आया । 
तीसरे दिन रक्षा बंधन था । उस दिन मालती और सहदेव मामा बिना अपने साथियों को बिना बताये स्कूटर में बैठकर झामर कोटरा पहुंच गये । कुछ देर बाद जब सहदेव जी के चाहने वालों  को इस बात की खबर मिली तो वे लगभ्ग 50 लोग एक ट्रक में बैठकर झामर कोटरा की ओर रवाना हो गए। 
मालती वहां पहुंचकर एक ओर अपने भाई मधुर को रक्षा बंधन पहनाई और उधर मालती की माता जी ने अपने भाई सहदेव जी को रक्षा बंधन पहनाई । फिर सहदेव और मालती भोजन करने के बाद मंगरी टोला वापस जाने को तत्पर हुए । वे जैसे ही घर के बाहर अहाते में पहुंचे पीछे से मालती का भाई रिवाल्वर लेकर आ गया और चिल्लाते व धमकाते हुए मालती को कहने लगा कि तुमने मोहन से विवाह करके ठीक नहीं किया है । तुमने हमें समाज में बदनाम कर दिया और हमें समाज के लोग हेय दृष्टि से देखने लगे हैं । उस वक्त मालती की गोद में उसका बच्चा माधव भी था । वह अपने भाई के तेवर देखकर घबरा गई और सोचने लगी कि जिस भाई ने 10 मिन्टों पहले उसकी रक्षा करने का वचन दिया था अब वही उसके प्राण लेने को उतारू है ।  इतना सब कुछ देखकर सहदेव जी मालती के आगे आकर खड़े हो गए और मधुर से कहने लगे कि तुम अपनी झूठी शान के खातिर एक भरे पूरे परिवार को तबाह करने को उतारु हो । और वह भी अपनी ही बहन के परिवार को बर्बाद करना चाह रहे हो । मेरे रहते तुम ऐसा नहीं कर सकते । 
इस बीच सहदेव जी ने मालती को कहा कि भांझी स्कूटर तुम चलाओ मैं बच्चे को लेकर पीछे बैठता हुं । वे दोनों इस तरह से स्कूटर में बैठकर आगे बढने लगे । लेकिन वे मुश्क़िल से 20 फ़ीट ही आगे बढे थे कि मधुर ने दो गोलियां चला दिया । जो सीधे जाकर उसके मामा सहदेव की पीठ पर लगी । मामा जी दर्द से कराहने लगे पर उन्होंने मालती से कहा भांझी तुम तेज़ीसे स्कूटर चलाते रहो तो मिन्टों में हम उनकी पहुंच से दूर हो जाएंगे । उधर मधुर भी अपनी स्कूटर लेकर उनके पीछे जाने को तैयार हो गया । 
अभी दोनों स्कूटर के बीच लगभग 50 मीटर की दूरी थी । मधुर अपनी स्कूटर की गति बढाकर दूरी कम करने का प्रयास करने लगा । लकिन जैसे ही मालती की स्कूटर गांव के बाहर पहुंची मंगरीटोला से लोगों को लेकर चली ट्रक उनके सामने आ गई । और ट्रक से सारे लोग लाठियां व बंदूकें लेकर मालती और सहदेव जी को बचाने सड़क पर खड़े हो गए। उन्हें देखकर मधुर डर गया और तुरंत ही मुड़कर वापस घर की ओर चल पड़ा । उधर सहदेव के लोगों ने मालती और सहदेव जी को ट्रक में बिठाकर उदयपुर ले गए । वहां उन्होंने सहदेव जी को उदयपुर के मेडिकल कालेज में भर्ती करवा दिया । लेकिन डाक्टरों के भरपूर प्रयास के बावजूद सहदेव जी को बचाया नही जा सका ।  जैसे आईसीयू के बाहर खड़े लोगों को पता चला कि सहदेव जी अपनी अंतिम यत्रा में निकल पड़े हैं । तो वहां का वातावरण ग़मगीन हो गया । आधे से ज्यादा लोग तो आंसू बहाने लगे । मालती तो कुछ मिनटों के लिए बेहोश हो गई । और वह जब होश में आई तो उसके आंसू अनवरत बहने लगे । वह बार बार कहने लगी मामा तुम हमें छोड़ कर क्यूं चले गए ? अब हमारा क्या होगा ? एक आप ही तो थे जिन्होंने हमें सहारा दिया था , हमें अब तक बचाया था । वरना बाक़ी लोग तो हमारे परिवार के पीछे हाथ धोकर पड़े थे । मैं बचपन से आपसे बहुत डरती थी पर आप इतने सुलझे हुए व्यक्तित्व के मालिक होंगे , ये मैंने तब जाना जब आपने हमारी शादी में हमें मदद पहुंचाई थी । उसके बाद से मैं तो आपको ही अपना मां ,बाप , भाई समझने लगी थी । अब तो खाफ़ पंचायत के लोग हमें मार डालेंगे । 

मालती के मुख से इतना सुनते ही वहां खड़े सहदेव जी के चाहने वाले अपने आंसू पोछकर मालती के चारों ओर उन्हें घेरकर खड़े हो गए। और उनके मुखिया ने मालती से कहा । तुम सहदेव जी की भांझी हो इसका मतलब तुम हम सबकी भांझी हो अब हम सब तुम्हारी रक्षा करेंगे । हमारे रहते कोई तुम्हारी ओर आंख उठाकर भी देखेगा तो हम उसकी आंखें निकाल लेंगे । हम सब सहदेव जी के अनुयायी हैं । सहदेव जी से हमने वादा किया है कि हम सदा सत्य के लिए लड़ते रहेंगे । चाहे सामने वाला कितना भी बड़ा व्यक्ति हमें विचलित करने का प्रयास करे,  हम सत्य के मार्ग से हटेंगे नहीं । हम खाफ़ पंचायत वालों के भी दिमाग़ों को भी सुधारने का प्रयास करेंगे । 
इसके बाद सहदेव जी की मृत काया को मंगरी टोला ले जाया गया। और अगले दिन उनकी अंत्येष्ठी की तैयारी की जाने लगी । इस बीच उदयपुर ज़िला में और सारे राजस्थान में यह बात पहुंच गई कि सहदेव जी का क़त्ल कर दिया गया है । खाफ़ पंचायत के पैरोकारों ने आखिर उनको इस दुनिया से विदा करके अपनी अपनी आत्मा को संतुष्ट कर लिया। और उन्होंने एक ऐसे महापुरुष को मार डाला जो दूसरों की प्राण बचाने हेतु अपनी सारी ताक़त लगाकर एक बड़ा संगठन खड़ा कर लिया था । बस क्या था यह खबर फ़ैलते ही लोगों का समूह ट्रक के ट्रक में सवार होकर मंगरी टोला की ओर प्रस्थान करने लगे । और रास्ते भर वे नारे लगाते रहे “सहदेव मांझी ज़िन्दाबाद “  । “राजस्थान का गांधी -- सहदेव मांझी” ।
अगले दिन सुबह सहदेव जी की अंतिम क्रिया संपन्न हो गई । सहदेव जी को अंतिम बिदाई देने मंगरी टोला में लगभग 2 लाख आदमी एक्त्रित हुए थे । सहदेव जी की श्रधान्जलि सभा में सबकी सहमति  से यह प्रस्ताव पास किया गया कि सहदेव जी की विचारधारा को संबल प्रदान करने हर गांव में एक स्वयंसेवक समूह खड़ा किया जाय । जो समाज के उन लड़के लड़कियों को मदद करने हमेशा तैयार रहें जो अंतर्जातीय विवाह करने की सोच रहे हैं । और अगर खाफ़ पंचाय्त उनके विरुद्ध कोई फ़रमान ज़ारी करता है तो उस फ़रमान का और खाफ़ पंचायत का पूरी शक्ति से विरोध किय जाय । 
 दस दिनों के भीतर ही सहदेव जी के नाम से यह संगठन राजस्थान के गांव गांव में खड़ा हो गया । संगठन का नाम दिया गया “ बहिना बचाव संगठन “ । जैसे जैसे बहिना बचाव संगठन का फ़ैलाव होते गया , वैसे वैसे खाफ़ पंचायतों का महत्व घटते गया और खाफ़ पंचायत के लोग भी बहिना बचाव संगठन से जुड़ने लगे । वर्तमान में इस संगठन की अद्ध्यक्षा मालती जी हैं । अब मालती और मोहन अपनी अपनी नौकरी से त्याग पत्र देकर संगठन के ही काम में व्यस्त हो गए हैं । मालती का भाई मधुर ज़ेल की सलाखों के पीछे है । अब राजस्थान सरकार भी “ बहिना बचाव “ संगठन का सहयोग करने लगी है । और सहदेव मांझी के नाम से एक राज्य स्तरीय पुरस्कार उस व्यक्ति को दिया जाने लगा जो इंसानियत के हित में कोई बहुत अच्छा काम कर रहा हो। 
उधर मालती अक्सर अकेले में सोचती थी कि अगर सहदेव मामा हमारे साथ खड़े नहीं होते तो शायद हमारा परिवार आज इस दुनिया में नहीं होता । हमें मार दिया जाता । वे कितने हिम्मती और आत्मविश्वासी थे कि जब वे बिल्कुल अकेले थे तब भी खाफ़ पंचायत के विरोध में सीना तान कर खड़े हो गए थे । और किसी का भी साहस नहीं हुआ कि उनकी तरफ़ उंगली भी उठाकर उनका विरोध कर सके । 
मंगरीटोला में मालती ने सहदेव जी का एक स्मारक बनवा दिया था । जहां सहदेव जी की पुण्यतिथि के दिन उनके हज़ारों अनुयायी इकट्ठे होते थे । उन्हें श्र्द्धान्जलि प्रदान करके कसमें खाते थे कि हम सहदेव जी के बताए मार्ग पर जीवन पर्यंत चलते रहेंगे और खाफ़ पंचायत के वजूद को धीरे धीरे समाप्त करने में अपना सारा बल लगा देंगे । 
      
 “ जय भारत – जय राज्स्थान – जय सहदेव मांझी “
( समाप्त )
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सहदेव मामा ( कहानी प्रथम क़िश्त)
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सहदेव मामा से उनकी भांजी मालती बछपन से बहुत डरती थी उनसे बात करते समय वह बहुत हिचकिचाती थी । मालती पोस्ट ग्रेजुवेट होने के बाद एक स्कूल में शिक्षिका बन गई। स्कूल में उसकी दोस्ती एक शिक्षक से हो गई । जो दुसरी जाती का था यह बात जब मालती के पिता और भाई को पता चली तो वे विरोध में खड़े हो गए और मालती को घर मेँ बिठा दिये।

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