वन में ऋषि - मुनियों को राक्षसों के उत्पात से मुक्त करके राम और लक्ष्मण जब अयोध्या जाने लगे तो मुनि विश्वामित्र के एक शिष्य ने आकर उन्हें समाचार दिया कि मिथिला नरेश जनक ने अपनी पुत्री सीता का स्वयंवर रचाया है। ऋषिवर दूरदर्शी थे, इसलिए भविष्य की राजनीति को भली-भांति समझ रहे थे।
वे राम और लक्ष्मण को साथ लेकर मिथिला नगरी की ओर चल पड़े। मार्ग में एक स्थान पर पत्थर की शिला के रूप में एक नारी मूर्ति को देखकर राम ने विश्वामित्र से पूछा -" गुरुदेव! नारी रूप में यह पत्थर की शिला कैसी है?"
विश्वामित्र ने उत्तर दिया," वत्स! एक समय इन्द्र ने छल से पतिव्रता अहिल्या का धर्म नष्ट कर दिया था।तब गौतम ऋषि ने इन्द्र और अपनी पत्नी अहिल्या, दोनों को श्राप दे डाला था। यह तभी से पत्थर बनी यहां पड़ी है।"
" परन्तु इसमें अहिल्या का क्या दोष था मुनिवर?" राम ने कहा, " शापित तो इन्द्र को हीं होना था।" यह कहकर राम ने शिला का स्पर्श किया। राम के स्पर्श मात्र से ऋषि पत्नी अहिल्या शाप योनि से मुक्ति पाकर श्री राम के प्रति कृतज्ञता प्रकट करती हुई स्वर्गलोक चली गई।