राजगुरू की बात सुनकर राजा दशरथ स्वयं श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गए और अपने मन की इच्छा प्रकट करके उनसे पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराने की प्रार्थना की।
ऋषि श्रृंगी ने राजा की प्रार्थना स्वीकार की और अयोध्या में आकर पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराया।यज्ञ में राजा ने अपनी रानियों सहित उत्साह से भाग लिया।यज्ञ की पूर्णाहुति पर स्वयं अग्निदेव ने प्रकट होकर श्रृंगी ऋषि को खीर का एक स्वर्ण पात्र दिया और कहा " ऋषिवर! यह खीर राजा की तीनों रानियों को खिला दो।राजा की इच्छा अवश्य पुरी होगी।"
देवता से खीर का पात्र लेकर श्रृंगी ऋषि ने राजा दशरथ को दिया और जैसा अग्निदेव ने कहा था वैसा ही राजा को आदेश दिया। राजा प्रसन्न होकर अपने महल में रानियों के साथ आये।राजा ने खीर के पात्र से आधी खीर रानी कौशल्या को दी और आधी खीर सुमित्रा तथा कैकयी को दी।
समयानुसार बड़ी रानी कौशल्या की कोंख से राम ने जन्म लिया। सुमित्रा ने शत्रुघ्न और लक्ष्मण,दो पुत्रों को जन्म दिया और कैकयी ने भरत को जन्म दिया। दासी ने राजा दशरथ को पुत्रों के जन्म का समाचार दिया तो राजा दशरथ की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने तत्काल अपने गले से मोतियों का हार उतारकर दासी को दिया और मंत्री को आदेश दिया," मंत्रीवर ! सारे नगर को सजाओ। राजकोष खोल दो। बिना दान- दक्षिणा और भोजन किए कोई भी व्यक्ति राजद्वार से वापस न जाए। सारे नगर में धूम - धाम से उत्सव मनाओ।"
"जो आज्ञा महाराज!" मंत्री हाथ जोड़ अभिवादन करके चला गया।राजा दशरथ तेज कदमों से चलते हुए रनिवास में पहुंचे। अपने दिव्य पुत्रों को देखकर उनकी आत्मा तृप्त हो गयी तथा आंखें प्रसन्नता से चमक उठीं।