राजा दशरथ को जब यह समाचार दिया गया कि कैकयी कोपभवन में है तो राजा दशरथ तुरंत वहां पहुंचे और कैकयी की दशा देखकर दुःखी स्वर में उससे पूछने लगे," यह क्या प्रिये! तुम्हें क्या दु:ख है? किसी ने कुछ कहा तो बताओ, मैं उसे दंडित करुंगा।"
कैकयी बोली," आपने पहले भी वचन दिया था,पर उसे नहीं निभाया। यदि आप मुझे प्रसन्न देखना चाहते हैं तो आज़ हीं मुझे वो दोनों वचन दें, जिन्हें देने का वचन आपने देवासुर संग्राम में दिया था।"
" मुझे याद है।" राजा दशरथ बोले, मांगो , क्या मांगती हो। मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटूंगा।"
तब कैकयी ने मांगा," स्वामी! पहला वर है,राम को चौदह वर्षों का वनवास और दुसरा मेरे पुत्र भरत को अयोध्या का राजसिंहासन।"
कैकयी की बात सुनकर राजा दशरथ मूर्छित होकर गिर पड़ें।