एकदिन लक्ष्मण ने आकर राम को समाचार दिया कि भरत एक बड़ी सेना लेकर हमसे युद्ध करने आ रहा है। श्री राम ने उन्हें समझाया कि भरत ऐसा कभी नहीं करेगा।
कुछ देर बाद भरत आंखों में अश्रु भरकर अपनी माताओं और अयोध्यावासियों के साथ वहां आए।भरत ने रोते - रोते राम से कहा," हे अग्रज! मुझे राजपाट नहीं चाहिए।आप बस घर वापस चलिए। आपके वियोग में पिताश्री भी हमें छोड़कर स्वर्गवासी हो गये हैं।
पिता की मृत्यु के समाचार से राम को बहुत दुःख पहुंचा। उन्होंने ने पिता का विधिवत श्राद्ध संस्कार किया और माताओं से मिलकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्हें इस दुःख की घड़ी में शान्त रहने और दुःख को सहन करने की शक्ति अर्जित करने के लिए कहा। पिता श्री के वचन का पालन करने के लिए उन्होंने अयोध्या लौटने से मना कर दिया। राम ने भरत के आग्रह पर अपनी चरण पादुकाएं भरत को सौंप दिया और एक रात सभी को सोता छोड़ कर वे सीता और लक्ष्मण के साथ वन में आगे निकल गए।।