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श्री रामावतार (रामायण) की पूर्व भूमिका

9 अप्रैल 2023

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प्राचीन काल में मनु और शतरूपा ने वृद्धावस्था आने पर घोर तपस्या की। दोनों एक साथ एक पैर पर खड़े होकर "ऊं नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप करने लगे।उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा।

"प्रभु! आपके दर्शन पाकर हमारा जीवन धन्य हो गया।अब हमें कुछ नहीं चाहिए।"इन शब्दों को कहते कहते दोनों के आंखों से अश्रु धारा प्रवाहित होने लगे।

"तुम्हारी भक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हूं वत्स ! इस ब्रह्माण्ड में ऐसा कुछ नहीं है,जो मैं तुम्हें नंदे सकूं।" परमेश्वर ने कहा," तुम निःसंकोच होकर अपने मन की बात कहो।"

प्रभु के ऐसा कहने पर मनु ने बड़े संकोच से अपने मन की बात कही,"प्रभु! हम दोनो की इच्छा है कि a जन्म में आप हमारे पुत्र के रूप में जन्म लें।"

" तथास्तु,ऐसा हीं होगा वत्स!" भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया," त्रेता युग में तुम अयोध्या के राजा दशरथ के रुप में जन्म लोगे और तुम्हारी पत्नी शतरूपा तुम्हारी ‌‌‌‌‌‌रानी कौशल्या होगी।तब मैं दुष्ट रावण का संहार करने माता कौशल्या की कोंख से जन्म लूंगा।" 

" हम धन्य हो गये प्रभु!" फिर मनुष्य शतरूपा ने प्रभु की चरण वंदना की।परम पिता परमेश्वर उन्हें आशीर्वाद देकर अंतर्धान हो गए। 

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