5 जून 2022
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जो मन में आता है , लिखता हूं । साफ कहना, साफ दिल , साफ लिखना मुझे पसंद है । D
एक समय की बात है जब माता पिता की बात हर हालत में मान्य होती थी जब गुरुजनों की समाज में खास अहमियत होती थी एक चूल्हे पर पूरे परिवार का खाना बनता था नन्हा मेहमान तो पड़ोस में ही प
बड़ी कुर्बानियों से मिली है ये आजादीबड़ी मेहनत से बना है अपना संविधानबड़े परिश्रम से खिला है लोकतंत्र का बाग इसे संवारने का प्रयास होना चाहिए मेरे गणतंत्र का सम्मान होना चाहिए । कुछ लोग एक
हम ना जाने कब उनसे प्यार कर बैठे दिल ही दिल में जाने कब इसरार कर बैठे उनके बालों, गालो, लबों से इश्क हो गया एक मुस्कान पे ही ये दिल फिदा हो गया आंखों में उन्हीं की सूरत लबों पे
महल के बंद दरवाजों के पीछे बंद पड़ी हैं, अनगिनत कहानियां जिनमें से कुछ चर्चाओं में आ गई तो कुछ सुनी जाती हैं लोगों की जुबानियां कुछ प्रेम भरी, कुछ दर्द देने वाली कुछ विरह की तो
तुम्हें क्या पता कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं कितना प्यार करता हूं तुम्हें क्या, मुझे ही नहीं पता कभी सोचता हूँ कि मैं तुम्हें इतना प्यार करता हूँ जितना सागर नदी
किसने सोचा था कि जीवन में एक दिन ऐसा आयेगा जब आदमी को देखकर आदमी घबरा जायेगा उससे मिलने से कतरायेगा घर में कैद होकर रह जायेगा । कभी कभी ऐसे दिन भी आते हैं जो
फागुन का महीना आ गया है । मस्ती का आलम छा गया है । कान्हा वृंंदावन में होली खेलने आये हैं । गोपियाँ उन्हें रंगने के लिए तैयार खड़ी हैं हाथों में रंग, गुलाल और पिचकारी लेकर । ऐसे माहौल में वे एक गीत गा
तेरी तिरछी मुस्कान ने, गजब का जादू किया आंखों ही आंखों में तूने, दिल मेरा चुरा लिया मस्तानी चाल ने तेरी, तूफां दिल में उठा दिया गुलाबी बदन की खुशबू ने, पागल बना दिया अब तो सिर्
पल भर में माहौल बदल देती है एक मुस्कान आनंद, सुकून और संबल देती है एक मुस्कान किसी के दिल में घर बना लेती है एक मुस्कान हर दिन कुछ खास बना देती है एक मुस्कान बिगड़े हुए काम बन ज
हम रहें या ना रहें , यह देश रहना चाहिए देश की खातिर , कुछ कष्ट सहना चाहिए देशभक्ति है धर्म मेरा , देशप्रेम ही जाति मेरी वफादारी का गाढ़ा लहू हर रग में बहना चाहिए ये ना सोचो देश
फिजां में अबीर गुलाल उड़ने लगा है । कुछ तो गुलाल की लाली , कुछ पलाश के फूलों का लाल सुर्ख रंग और कुछ गोरियों के खिलते मुस्कुराते गुलाबी गालों की रंगत का असर था कि दिल उड़ा उड़ा जाने लगा । दिल में गिटार स
उम्मीदों के पंख लगाकर और ऊंचा उड़ जाऊंगा देखना, एक न एक दिन मैं अवश्य मंजिल पाऊंगा दुख क्या राह रोकेगा मेरी हिम्मत की लाठी रखता हूँ गमों के भीषण भंवर में भी साहस की क
जिंदगी और मौत के बीच ये कैसा है चूहे बिल्ली का खेल जीवन जीने के लिए इन दोनों में कैसे होती है रेलमपेल मौत बिल्ली की तरह हरदम जिंदगी निगलना चाहती है जिंदगी मौत से डर के मारे , इधर उधर
मेरी दुनिया बस तुमसे ही है जो तुम नहीं तो कुछ नहीं है तेरे साथ होने से मैं जीता हूँ नैनों से प्रेम पियाले पीता हूं मुस्कान से गुलाब सा खिलता हूँ दुआओं में अरमान सा पलता ह
होली का स्वरचित गीत नैनन सों रंग बरसाय गई , इक छोरी बरसाने की अरे नैनन सों रंग बरसाय गई , इक छोरी बरसाने की या छोरी बरसाने की , अ र र र गोरी वृंदावन की सैनन (इशारे से) सों मोय बुला
सखि देख , बासंती ऋतु आई पतझड़ गयो कोंपलें फूटी कलियों पे बहारें छाई । सखि देख, बासंती ऋतु आई ।। कोयल बोल रही अमियन में दिल में हूक जगाई साजन बैरी गये विदेसवा सुध बुध सब बि
दिल्ली की निर्भया की मां के संघर्ष पर एक कविता जिसने दरिंदों को फांसी के फंदे तक ले जाकर छोड़ा । उस मां को एक सलाम तो बनता है । दो वर्ष पूर्व लिखी गई मेरी कविता सवा सात साल का वक्त कोई कम नह
वो एक छोटी सी कविता ही थी जो बीकानेर के राजा पृथ्वी सिंह ने महाराणा प्रताप को भेजी थी उस कविता ने महाराणा प्रताप का वो सोया स्वाभिमान जगा दिया और मेवाड़ के सूर्य महार
एक रात का क्या मूल्य होता है यह बात भगवान श्रीराम से बेहतर कौन जानता है ? बात तब की है जब भगवान श्रीराम का रावण से युद्ध हो रहा था । तब मेघनाथ ने लक्ष्मण जी पर एक " प्राणघातिनी शक्ति" से प्रहार किया थ
ये जीवन नश्वर है । कल किसने देखा है । इसलिए लालच, ईर्ष्या, द्वेष, अहम् को छोड़ो और बस प्रेम करो । सबसे, ईश्वर से । इसी पर एक गीत प्रस्तुत है । गीत : जनाजे के लिए कंधे, कोई बस चार कर लेना अगर
सुना है कि खामोशी की आवाज दूर तक सुनाई देती है खामोशी जब बोलती है तो फिर सिर चढ़कर बोलती है सौ बक बक से अच्छी है एक अदद खामोशी तकरार ज्यादा बढ़ने को रोक देती है खामोशी खामोश रहने
अब न दादी अम्मा रहीं और ना दादी अम्मा के किस्से अब तो तिरस्कार, अपमान ही आया है उसके हिस्से किसी वृद्धाश्रम की शोभा बढ़ाती है वह जिन्हें बद्दुआ देनी चाहिए उन्हें दुआ दे जाती है वह&nbs
नया साल हो बेमिसाल हो मन में खयाल है बस यही धन धान्य हो खुश ग्राम्य हो सब मान्य हों कामना यही । शांति का सदा वास रहे सौहार्द आमो खास रहे देश में उन्नति चहुंओर हो प्
संसद से लेकर विधान सभाओं में शोर सडक़ जाम कर बैठे अराजकों का शोर हारने वालों का ईवीएम हैकिंग का शोर रैल , सभा , प्रदर्शनों में नेताओं का शोर कार, बस, ट्रक से निकलने वाला शोर रेल
लोग मुझसे जल्दी खफा हो जाते हैं क्योंकि मुझे बहाने बनाने नहीं आते हैं घुमा फिरा कर कहने की आदत नहीं सत्य कहने सुनने से सब घबराते हैं दर्द के सागर में उन्हें भी डूबे हुए देखा&nb
वो स्वयं को लोकतंत्र का पुरोधा बताये बैठे हैं और दशकों से पार्टी पर कब्जा जमाये बैठे हैं कहते हैं कि सेक्युलरिज्म उनकी रग रग में है खास समुदाय पर मेहरबानियां लुटाये बैठे हैं अभिव्यक्
जिंदगी क्या है , सुख दुख की एक रेल है किसको क्या मिला, सब भाग्य का खेल है कोई प्लेटफॉर्म पर पैदा होकर भी खुश है किसी को "राजमहल" भी लगता जेल है किसी को बिन मांगे ही मिल जाता है सब कु
लोगों की लाइफस्टाइल बदल रही है सुनसान रातें चमचमाहट में बदल रही हैं कानफोड़ू संगीत में पगलाते हुए लोग डी जे की धुन पर हसीनाएं थिरक रही है देर रात तक पार्टियां करने का चलन
जिधर देखो उधर खिलौने सबके सब मिट्टी से बने हुये कोई राजा तो कोई भिखारी कोई सेवक तो कोई दरबारी कोई जज कोई अपराधी कोई डॉक्टर, नर्स, मरीज तो किसी की काली, खाकी वरदी ।&
जोश ए जुनून पर "सान" चढाते रहिये नहीं तो आलस्य उस पर "जंग" चढा देगा रिश्तों में जंग बहुत बुरी होती है साहब प्रगाढ रिश्तों को भी खाक में मिला देती है दिल और दिमाग में जंग होती र
मेरे शहर की कोई एक बात हो तो बताऊं इतने सारे किस्से हैं, किस किस को सुनाऊं ये शहरों में शहर है गुलाबी नगर कहलाता है प्रेम भाईचारे का यहां बहुत गहरा नाता है हवामहल, जंतर-मंतर,&n
हर महल में सैकड़ों रहस्य दफन हैं यहां दबे हुए न जाने कितने कफन हैं न जाने कितनी प्रेम कहानियां बुनी गई कुछ दबी रह गई तो कुछ खूब सुनी गई राजा रानी के प्रेम की कहानियां मशहूर हैं
कभी घर भी भरा रहता था और मन भी आज तो घर और मन दोनों ही खाली हैं किसी के पास दो पल की फुरसत नहीं आज हर आदमी फिरता यहां सवाली है ममता का सागर उफनता था जहां कभी उस मां का दिल रीती
तेरी वफादारी बेमिसाल है स्वामिभक्ति क्या कमाल है सजग प्रहरी सा रखवाला तू इकलौता नमकहलाल है संतोषी इतना कि इंतजार करे मालिक के भोजन तक सब्र धरे जितना मिल जाये उसमें खुश ज्यादा के लिये ना बवाल करे
जब शासन समुदायों में पक्षपात करता है किसी को प्यार किसी पे आघात करता है मजहब के आधार पर जब फैसले होते हैं तब जोधपुर भी दंगों की आग में जलता है धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण करते
जिधर देखो उधर ही गड़बड़ घोटाला है कहीं लालू कहीं ओमप्रकाश चौटाला है कहीं बोफोर्स की दलाली का बड़ा शोर है महाराष्ट्र में मंत्रियों का वसूली पर जोर है कश्मीर को तीन खानदान पूरा निगल गए
आज के जमाने में और निस्वार्थ सेवा ? अच्छा मजाक कर लेती हो, प्रतिलिपि जी यहां तो बिना स्वार्थ के राम राम तक नहीं करता कोई और तुम निस्वार्थ सेवा की बात करती हो , हरजाई जब तक
मां पर क्या लिखूं, एक शब्द में दुनिया समाई है दूर क्षितिज पर उभरने वाली ये एक रोशनाई है त्याग, सेवा जैसे शब्दों ने मां से महानता पाई है ये मां ही है जो हमें इस धरती पर लेकर आई है पहल
जब से वह आई है पापा के अरमानों ने ली एक नई अंगड़ाई हैनन्हे नन्हे हाथों की नन्ही सी लकीरों में पापा ने अपनी किस्मत लिखवाई है जान भर देती है पापा में उसकी एक अदद मुस्क
मैं इंतजार कर रहा हूं उस दिन का जिस दिन लोग इतने परिपक्व हों कि वे जाति, धर्म से ऊपर उठकर मुफ्त के माल के प्रलोभन से बचकर "रंगे सियारों" को सही से पहचान कर क्षेत्रीयवाद, भाषा क
एक बार "असंभव" कहीं को जा रहा था नकारात्मकता के बोझ से दबा जा रहा था ना तो आंखों में कोई आशा की किरणें थीं और ना ही चेहरे पे विश्वास नजर आ रहा था दिल में मनोबल की बहुत कमी सी थ
भेदभाव तो मन का भाव है जो दे जाता हरदम घाव है राजा और प्रजा में भेदभाव अमीर गरीब , शासक शोषित चारों वर्णों में भेदभाव वर्णों में भी जातियों में भेदभाव बेटे बेटी में
नफरतों के नर्क में झुलसने से अच्छा है प्यार के सागर में गोता लगा लिया जाये नफरतों के बियाबान में भटकने के बजाय क्यों न प्यार का एक दीपक जलाया जाये नफरत के जख्म बन जाते हैं नासू
सबको बस अपने अधिकारों की पड़ी है जिम्मेदारी गुमसुम सी एक कोने में खड़ी है अधिकारों के लिए आसमां सिर पे उठा रखा है जिम्मेदारी से सबने अपना पल्ला झाड़ रखा है "निरंकुश अधिकार" "जि
जिसका जितना बड़ा कल्पना लोक वह उतना ही बड़ा साहित्यकार है कल्पना लोक के परिदृश्यों को वह कागज पर उतारने वाला चित्रकार है गीत, गजल, मुक्तक, दोहे, छंद, कविता कथा, लेख, संस्मरण या
पथ में पत्थर बहुत मिलेंगे विघ्न रास्ता हर पल रोकेंगे पत्थरों से बचकर चलना है इन्हीं पत्थरों से पुल बनाना है यहां सब रोड़े अटकाने बैठे हैं पराया माल सटकाने बैठे हैं
सबसे अधिक विनाशकारी होती है सोच जो इंसान, परिवार, समाज, देश, धरती को विनाश के मुहाने पर लाकर खड़ा कर देती है रानी कैकयी की सोच भी कुछ ऐसी ही थी उसने अयोध्या का सब कुछ दांव पर ल
जिन्दगी क्या है , कभी धूप तो कभी छांव कभी दौड़ती सी लगे तो कभी लगे ठहराव कभी दुखों की गठरी, कभी सुखों का समन्दर एक ही नियम है , जो जीता वही है सिकन्दर गमों के पहाड़ हैं, ढेरों
लोग अपने दिलों में नफरतों का लावा भर रहे हैं पत्थर के रूप में ज्वालामुखी के फूल झर रहे हैं इंसानियत से बहुत बड़ा बना दिया है मजहब को मानव का वेश धर के यहां वहां दानव विचर रहे हैं&nbs
मन में विचारों का तूफान सा उठा है दिल में जज्बातों का कोहराम मचा है दिमाग फंस गया है समस्याओं के भंवर में झंझावातों से ये मन अशांत हो गया है जीवन में आंधी तूफान जब भी आते हैं&n
मुंह में मिठास घोल, गले लगकर अपनापन जताते हैं काम पड़ने पर ऐसे लोग, कहीं दूर खड़े नजर आते हैं खून के रिश्तों से ही कोई अपना नहीं हो जाता है "हरि"अपने तो वो हैं जो जरूरत के समय साथ नजर आते है
थोड़ा अराजक थोड़ा सा हिंसक थोड़ा लाचार हूं मुझे माफ करना भारत मैं तेरा अपना ही बिहार हूं मेरी संतति की बुद्धि पर पूरी दुनिया को नाज है मेरे नौजवानों की आसमानों से ऊंची परवाज है "ना
परीक्षा खत्म होते ही छुट्टियां शुरू बड़ा मजा आता था छुट्टियों में गुरू गर्मी का मौसम चार चांद लगा देता घर को ही खेल का मैदान बना देता अमृत विष आंख मिचौनी खेलते थे मां बाप की डा
बिहार की बरबादी का मैं ही जिम्मेदार हूं मुझे गौर से देखिए , मैं सुशासन कुमार हूं आजकल की हिंसा का मैं ही कसूरवार हूं अब तो पहचानो , मैं "सुशासन कुमार" हूं समाजवाद के नाम पर जात
चैन ओ सुकून मिलता है या तो यार की बाहों में या फिर घर की पनाहों में याद सताती है, तड़पाती है या तो यार दिलदार की या फिर घर बार की । जब तक इनका साथ है तो घबराने की क्या बा
पांव भी तभी थिरकते हैं जब दिल खुशी से ता ता थैया करता है ये दिल का उत्साह ही तो है जो पांवों को थिरकने पे विवश करता है कोई भगवत् भक्ति में थिरकता है कोई पेट भरन
सच्चाई का कोई झोल नहीं होता प्रेम से मीठा कोई बोल नहीं होता रिश्ते नातों में कोई तोल नहीं होता अनुभव का भी कोई मोल नहीं होता अनुभव तो ठोकर खाने से ही आता है हर
कितनी परवाह करते हो, बताने की जरूरत नहीं तुम्हारी आंखों से ही सब कुछ समझ आ जाता है नींद में भी तुम्हारे लबों पर , मेरा ही नाम रहता है मेरे जरा से कष्ट में , तुम्हारा कलेजा कांप जाता
जब दिल में प्रेम का अंकुर फूटता है तो यह जहां कितना मनोरम लगता है आसमान "जन्नत" जैसा दिखाई देता है "सागर" प्रेम पतवार का खिवैया लगता है पत्ती पत्ती डाली डाली "कामनाएं" सी लगती हैं&nb
हदों को लांघने का देखो रिवाज चल पड़ा है इसीसे तो दुखों से आज बेहद पाला पड़ा है सागर भी भूल रहे हैं अपनी हदों की सरहदें छूने को आसमान "सुनामी" सा आ खड़ा है हदों से बाहर निकल के नंगा न
जीवन क्या है , एक रेत का घर है एक लहर आई और बहाकर ले गई सपनों की तरह बनते बिगड़ते हैं घर मगर कोशिशें कभी बेकार नहीं जाती सारी जिंदगी लग जाती है घर बनाने में एक धक्के से भरभराक
आजकल की दुनिया मैं ये कैसी विषैली सोच भर गई है लगता है कि कोई "अंतरंगी चुड़ैल" मन में घर कर गई है नफरतों की आंधियां चलने लगी है जोर से हर तरफ उन्मादियों की भीड़ देखो ये कैसा ताण्डव क
मुक्तक रिश्तों को सबने मतलब की तराजू में तोला है जिससे मतलब निकल गया उसे बाय बोला है तब तक वे मेरे साथ थे जब तक इशारे पे चला खुद को अकेला पाया जब भी ये मुंह खोला है
सफलता के हुनर उन्हें आते हैं दुनियादारी को जो जान जाते हैं मतलब की तराजू पे तौल कर नाते रिश्तों को वो निभाते हैं । झूठी मुस्कान सजाते हैं लबों पर कातिल इरादों को जो छुपात
दोस्ती के दिन वो सुहाने थे कॉलेज में अपने अफसाने थे हमारी दोस्ती एक मिसाल थी अपनी जोड़ी क्या कमाल थी साथ रहना, लड़ना झगड़ना बहसबाजी चीखना चिल्लाना तितलियों का वो पी
वो रात कितनी हसीन थी आंखों में किसी के ना नींद थी दासता से मुक्ति मिल रही थी "आजादी" खुले में सांस ले रही थी "तिरंगा" कर रहा था आसमान से बात दीवाली सी लग रही थी वह रात&nb
शहर की चकाचौंध में खो गया है मासूम सा दिल झूठ के मुलम्मे में छुप गया है बेचारा बच्चा सा दिल नकली हंसी का मुखौटा पहन ठगता रहा है ये दिल झूठे रिश्तों के मायावी बंधन में बंधता रहा है ये
किस्मत के खेल बड़े निराले होते हैं किस्मत से ही मुंह में निवाले होते हैं किस्मत ना हो तो मेहनत भी बेकार है किस्मत हो तो अंधेरे भी उजाले होते हैं कोई अमीर के घर जन्मा कोई गरीब क
हर इंसान के अंदर एक लेखक बैठा रहता है किसी का जाग गया, किसी का सोया रहता है आसपास की घटनाओं से मन विचलित होता है दिल दिमाग फिर उन सबसे बहुत व्यथित होता है संवेदनशील मन जब प्रतिक्रिया
छोड़कर कल की पुरानी बात, एक नई शुरुआत करें । कब तक रहेगी अंधेरी रात, उजालों से मुलाकात करें ।। बहता दरिया कहता सबसे स्थिर नहीं कुछ जीवन में धरती डोले खा हिचकोले , सूरज खोले बाहु गगन में उन