नीलिमा गाड़ी चला रही थी अचानक गाड़ी रुक गयी। धीरेन्द्र को तेज झटका लगा और वो ख्यालों की दुनिया से बाहर आ जाता है। ये तुम क्या कर रही हो ?वो झल्लाकर बोला।
गाड़ी चलाना सीख़ रही हूँ ,और जो मुझे गाड़ी चलाना सिखा रहा है ,वो तो अपने ही ख्यालों में खोया है। तब तो ऐसे झटके लगना स्वाभाविक ही है ,वो तो शुक्र मनाओ !झटका ही लगा है। ज़नाब ! अब किन ख्यालों में खोये थे ?वर्तमान में आ जाइये वरना अभी तो झटका ही लगा है ,कोई दुर्घटना भी हो सकती है। कहते हुए ,नीलिमा ने मुस्कुराकर उसकी तरफ देखा।
वो भी अब तक अपनी हकीक़त की दुनिया में आ गया था।वो जैसे किसी सुनहरे सपने से बाहर आ गया। उसे इस तरह अपने भूतकाल से वापस आना, अच्छा नहीं लगा ,फिर भी अब जीना तो वर्तमान में ही है। कुछ क्षण के लिए नीलिमा को देखा ,उसके पश्चात उसने समय देखा और बोला - चलो !आज का अभ्यास यहीं तक बाक़ी कल....... मुझे भी अपने काम पर जाना है। काम नहीं करेंगे तो ,खाएंगे क्या ?कहकर वो हँस दिया। उसकी हँसी में कितना खोखलापन था ?ये वो ही जानता था। अपनी इच्छा से उसने नीलिमा से विवाह तो कर लिया और अपनी ज़िंदगी को सामान्य तरीके से जीने का प्रयत्न भी कर ही रहा है किन्तु कभी -कभी जब वो अपनी ज़िंदगी के पुराने पन्ने उलटता है ,तो उन्हीं यादों में खोकर रह जाता है। कार्य कर रहा होता है किन्तु कहीं ओर भटक रहा होता है।
धीरेन्द्र के जाने के पश्चात ,नीलिमा गृहकार्यों से निवृत्त होकर ,अपनी पढ़ाई करती है। अब वो उस मौक़े से लाभ उठाना चाहती है ,जो उसे आगे बढ़ने के लिए मिला है। उसके विवाह को छह माह हो गए ,बहुत दिनों से दोनों कहीं बाहर भी नहीं गए। तब धीरेन्द्र बोला -चलो ! कहीं बाहर घूमने चलते हैं ,बहुत दिनों से कहीं बाहर नहीं गए। अब तक तो नीलिमा भी घर की और अपनी पढ़ाई की दोहरी मेहनत से थक चुकी थी ,वो भी कुछ दिनों का आराम चाह रही थी। पहले दोनों ने स्थान चुना किस जगह जाना है ?उसके पश्चात ,धीरेन्द्र बोला -कल टिकट बुक करा देना। नीलिमा देख रही थी ,धीरेन्द्र अब उस पर कुछ ज्यादा ही काम छोड़ने लगा है। हर चीज के लिए उसी से कह देता है ,तुम कर लेना। कभी -कभार शराब भी पी लेता है। उसके लिए भी कभी भी नीलिमा ने विरोध नहीं किया।
बस एक दिन नीलिमा ने पूछा था -तुम शराब भी पीते हो।
हाँ मेरी जान..... ये तो रईस लोगों का शौक है ,जिसके पास पैसा होता है वही पी सकता है। नीलिमा एक तो कम उम्र ,ऊपर से ज़िंदगी की इतनी समझ भी नहीं। वो जैसे कहता ,मान लेती ,अब तो थोड़ी अंग्रेजी में भी बातें करने लगी। नीलिमा ने सोचा -चलो ! जो भी हो रहा है ,अच्छे के लिए ही हो रहा है ,उसे कुछ न कुछ नया सीखने को मिल रहा है। दोनों देहरादून घूमने गए ,माता -पिता क्रोध के कारण ,कुछ कहते नहीं। अब तो नीलिमा भी,बेपरवाह सी हो गयी है। कब तक पल्ल्वी के क्रोध को झेलती ? तब उसने अपने पति यानि धीरेन्द्र का कहना मानने में ही भलाई समझी। उसकी ज़िंदगी का ध्येय अपने को सक्षम बनाना था कुछ चीजें उसके लिए नई थीं जिन्हें उन्हें सीखने और करने में उसे आनंद आ रहा था। धीरेन्द्र पढ़ा -लिखा ,समझदार दुनिया की ऊँच -नीच ,ज़िंदगी के उतार -चढ़ाव सभी देखे हुए था। वो नीलिमा को जैसे समझाता ,समझ जाती, किसी आज्ञाकारी पत्नी की तरह। अब तो उनका हर माह घूमना हो ही जाता था किन्तु जबसे नीलिमा देहरादून से आई थोड़ी थकी -थकी सी रहने लगी। कभी सोती रहती ,आलस्य उस पर हावी होने लगा था। समझ नहीं आ रहा था। ये सब क्या हो रहा है ?
पल्ल्वी ने भी उसकी हालत देखी और बोली - डॉक्टर को दिखाकर आओ !
नीलिमा जब डॉक्टर के पास से आई , चेहरे पर मुस्कुराहट थी।
पल्ल्वी ने जब उसका चेहरा देखा ,कुछ तो वो समझ गयी किन्तु ,अपनी समझ की पुष्टि के लिए ,वो नीलिमा के बोलने की प्रतीक्षा में थी ,कुछ देर की प्रतीक्षा के पश्चात ,उससे रुका नहीं गया और पूछ बैठी -डॉक्टर ने क्या बताया ?
नीलिमा बोली - कुछ ख़ास नहीं ,बस इतना कहा है ,अपना ध्यान रखना और शाम तक पता चल जायेगा। पल्ल्वी समझ गयी थी कि हमारे घर में खुशियाँ आने वाली हैं किन्तु इस बात को उसने शाम तक के लिए अपने सीने में दफ़्न कर लिया। शाम को सबसे पहले ,मोहनलाल जी को ही ये शुभ समाचार सुनने को मिला। उन्होंने चुपचाप घर में मिठाई लाकर रख ली और बेटे की प्रतीक्षा करने लगे। रह -रहकर उनके दिल में ख़ुशी की हिलोर उठ रही थी। इतनी बड़ी ख़ुशी उनसे छिपाये नहीं छिप रही थी ,तभी उन्होंने नीलिमा को किसी लड़की से बातें करते देखा। उन्हें लगा -शायद उस लड़की को पहले भी कहीं देखा है ,कौन हो सकती है ?कुछ स्मरण नहीं हो रहा। तब तक नीलिमा अंदर आ चुकी थी।
तुम किससे बातें कर रहीं थी ?
कोई लड़की थी !
क्या तुम उसे जानती हो ?
नहीं !
ऐसे ही किसी अनजान से बातें करने लगती हो।
नहीं ,पापा जी ! उसे मैंने एक -दो बार पहले भी देखा ,सबसे पहले मुझे वो तब दिखी, जब मैं अपने घर जा रही थी।
उसने तुमसे क्या कहा ?
ज्यादा कुछ नहीं ,बस पूछ रही थी ,तुम इस घर में रहती हो ,इस घर से तुम्हारा क्या रिश्ता है ?
तब तुमने क्या जबाब दिया ?
वही ,जो सही है, मैंने उससे बताया -मैं इस घर की बहु हूँ। पर पापा जी उसने ,ये क्यों पूछा -छोटी या बड़ी।
ये तो मैं नहीं कह सकता ,उसने क्या सोचकर पूछा होगा ?चलो !तुम अंदर जाकर चाय बना लो ,अभी धीरेन्द्र भी आता ही होगा ,सभी एकसाथ चाय पिएंगे।
पर पापा जी !आप लोग तो चाय पी चुके न.....
हाँ पी तो है किन्तु आज दुबारा पिएंगे। कहकर मन ही मन मुस्कुराते हुए ,चले गए।
शाम को ,उन लोगों के चाय पीने के पश्चात ,मोहनलाल जी मिठाई निकालकर लाये और बोले -लो भई !मिठाई खाओ !सबने एक -एक पीस उठाया।
पापा ! मिठाई तो आज मेरे पसंद की है ,आज क्या कोई विशेष बात है ?
हाँ ,अब से मैं ही पापा नहीं रहा, अब तू भी पापा बनने वाला है , कहकर उन्होंने बेटे को गले लगा लिया।
इतने दुःख और परेशानी देखने के पश्चात् मोहनलाल जी के घर में पहली बार खुशी की खबर आई है। यह खुशियाँ आगे बढ़ेंगी या फिर क्षणिक रह जायेंगी जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी