नीलिमा अपनी बेटियों के लिए , खाने में कुछ अच्छा सा बनाने की सोच रही थी ,और वो अपने कार्य में जुट गयी। वो सोच रही थी - दुनिया में सभी तरह के लोग हैं ,बुरे हैं ,तो अच्छे भी हैं किन्तु ऐसे लोगों का किसी भी विकट परिस्थिति में ही पता चलता है कि कौन साथ खड़ा है ?और कौन उस परिस्थिति का लाभ उठा रहा है ? चलो जो हुआ ,उस पर मिटटी डालो ,मैंने भी उसे अच्छा सबक सिखाया ,अब इधर की ओर रुख न कर सकेगा। बस अब मेरी नौकरी लग जाये ,बेटियों की पढ़ाई ठीक से हो जाये ,अपने क़ाबिल हो जाएँ और मुझे क्या चाहिए ?जब से दत्ता साहब ने उसे नौकरी का सांत्वना दिया है ,उसका मन कुछ भी बुरा सोचने का नहीं कर रहा। सब अच्छा ही अच्छा सोचने का मन है।
तभी बेटी खाने की खुशबू सूंघते हुए रसोई में आ गयी और बोली - मम्मा बड़ी अच्छी खुशबू !!क्या बनाया है ?
नीलिमा भी खुश थी ,बोली -खुशबू से ही पहचानो ! क्या बनाया है ?
वो सूंघने का प्रयत्न करते हुए बोली -बेसन का हलवा !
ये तो भइया के लिए है और तुम्हारे लिए......
सोचने का उपक्रम करते हुए ,इडली !
इडली की कोई खुशबू आती है ,शैतान !
वो खिलखिलाई और बोली -सांभर की तो आती है ,कहकर हंसने लगी।
चलो ! बाहर अपनी टेबल पर बैठो ,अपनी बहन को भी बुला लो !मैं अभी खाना लेकर आती हूँ।
तभी बाहर बैठी , छोटी बेटी बाहर से ही पूछती है ,मम्मा !मामा कहाँ गए ?
उसकी बात सुन नीलिमा को वो बात स्मरण हो आई और उसका मन कसैला हो गया ,किन्तु बेटी से क्या कहती ?उसका परिचय बेटी से भी तो, उसने ही कराया था। बच्चों को क्या पता होता है ?कि कौन कैसा होता है ? हम बड़े भी तो ठीक से किसी को कहाँ पहचान पाते हैं ,किन्तु जब तक ऐसे लोग नहीं मिलते, तब तक पहचान भी कहाँ हो पाती है ? बड़े होने पर इंसानों की फितरत निकलकर बाहर आती है। अब तो मुझे भी न जाने, क्या -क्या देखने को मिल सकता है ? तभी खाना लाते हुए ,नीलिमा बोली -बेटा ,वो तो अपने घर गए ,किन्तु दोनों एक बात ध्यान से सुनो !वो मामा या जो कोई भी अंकल आपसे मिलने आएं ,कुछ भी खाने को दे , टॉफी -चॉकलेट ,या फिर कहीं घुमाने के लिए बोलें ,तो आपको मम्मा से बिना पूछे कहीं नहीं जाना है और न ही किसी से कोई चीज लेनी है ,समझ गयीं।
ओके मम्मा ! मामा भी !
हाँ बेटे ,मामा हो या कोई भी अंकल ! मिले ,बात करे तब आपको अपनी मम्मा के पास आना है ,उनसे कोई बात नहीं करनी है। आजकल बच्चों को पकड़ने वाले घूम रहे हैं ,वो ऐसे ही अंकल बनकर ,खाने की किसी भी चीज का लालच देकर अपने साथ ले जाते हैं और उन्हें लेजाकर बंद कर देते हैं ताकि उन बच्चों की मम्मा रोये ,अब आप ये तो नहीं चाहोगे न कि आपकी मम्मा रोये।
दोनों ने एक साथ गर्दन हिलाई और खाने बैठ गयीं। ह्म्मम्म्म्म , वेरी टेस्टी कल्पना ने मुँह में पीस डालते हुए कहा। उसकी देखा- देखी ,छोटी ने भी ऐसे ही किया।
अगले दिन दोनों बच्चियों को उनके स्कूल छोड़कर ,नीलिमा ,'दत्ता साहब' के बताये स्कूल में जाती है। अथर्व को वहीं किसी आया को पकड़ाकर ,वो इंटरव्यू के लिए अंदर जाती है।
उस स्कूल की प्रधानाचार्या जी ,नीलिमा का साक्षात्कार लेकर ,अलग स्थान पर जाकर ,मेहरा जी को फोन करती हैं -सर !अभी जो ये महिला आई है ,इन्हें अंग्रेजी आती तो है किन्तु इतनी नहीं आती कि हमारे बच्चों को पढ़ा सकें।
तब क्या किया जाये ?
मना कर देते हैं।
मना नहीं कर सकते ,दत्ता साहब की सिफारिश पर आई हैं ,परेशानी में हैं। देख लीजिये और कुछ जानिए ! उनके विषय में ,जहाँ तक भी हो सके ,''एड्जस्ट ''कर लीजिये। देखिये ! वो और क्या कर सकती हैं ?उसके पति भी नहीं है ,तीन बच्चे हैं ,अच्छे परिवार से है। अब आप ही सम्भालिये !कहते हुए ,उन्होंने अपना सम्पूर्ण उत्तरदायित्व अपने स्कूल की प्रधानाध्यापिका पर छोड़कर फोन काट दिया।
रिया थोड़ी परेशान हुई कि इनसे क्या करवाया जाये ?तभी वो बोली -आप तो बी.एड. भी नहीं है।
जी.... वो तो मैं जानती हूँ ,देखिये !मुझे तो इस तरह किसी भी नौकरी की आवश्यकता नहीं थी किन्तु अचानक उनके न रहने पर ,ये मजबूरी आन पड़ी।
देखिये हमारा स्कूल इंग्लिश मीडियम है ,सभी सब्जैक्ट इंग्लिश में ही हैं।
रिया सिंह ,इससे पहले की कुछ और कहती ,तभी नीलिमा बोल पड़ी ,ये मैं जानती भी हूँ और मानती भी हूँ किन्तु हिंदी विषय तो हिंदी में ही होगा ,मैं हिंदी अच्छे से पढ़ा सकती हूँ ,मेरी ड्राइंग भी अच्छी है और क्राफ्ट ये सब मैं अच्छे से सिखा और पढ़ा सकती हूँ।
रिया ने मन ही मन नीलिमा की सराहना की ,कि इसने तो मेरी समस्या ही सुलझा दी ,वो तो उसे चलता करने के मूड़ में थी किन्तु सर के कारण नीलिमा को कहीं न कहीं लगाना ही था जिसका हल स्वयं नीलिमा ने ही उसे सुझा दिया। देखिये !हम दो -तीन दिन तक आपका पढ़ाने का तरीका देखेंगे ,बच्चों को आप कैसे संभालती और समझाती हैं ,तभी कुछ तय कर पायेंगे।
जी पूरी कोशिश करूंगी कि आपको निराश न होना पड़े।
तब आप कल से आ जाइए।
जी ,आपसे एक प्रार्थना है ,मेरा बेटा अथर्व अभी छोटा है ,मैं उसे अकेले छोडकर तो नहीं आ पाऊँगी।
इसमें मैं आपकी क्या सहायता कर सकती हूँ ?आप स्कूल में पढ़ने आयेंगी ,तब अपने बेटे को कैसे संभालेंगी ? उसे साथ लेकर तो नहीं पढ़ा सकतीं।
जी ,वो तो मैं समझ रही हूँ ,उसकी तबियत थोड़ी नासाज़ रहती है ,जब तक उसके लिए कोई ऐसा स्थान न ढूंढ़ लूँ ,जहाँ उसे छोड़कर निश्चिन्त हो सकूँ ,तब तक क्या मैं उसे अपने साथ ला सकती हूँ ?
देखिये जी !इस स्कूल के भी अपने कुछ क़ायदे -कानून हैं ,हर घर में परेशानी होती है ,आपके हिसाब से हम क़ायदे -कानून को छोड़कर ऐसा करने लगे ,तो ये स्कूल चल लिया ,रिया ने थोड़े सख़्त लहज़े में कहा।
अब क्या होगा? क्या नीलिमा अपनी नौकरी के विषय में सोचना छोड़ देगी या फिर कोई हल निकालेगी? किसके भरोसे अथर्व को छोड़कर वो अपनी नौकरी पर जायेगी? पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी