' प्रभा शर्मा '' नीलिमा की ज़िंदगी पर, एक उपन्यास लिखना चाहती है ,किन्तु जब वो ,उसके जीवन की बातें लिखने बैठती है।[ जब वो उस उपन्यास की रुपरेखा तैयार करती है ]तब वो एक जगह आकर अटक जाती है ,कुछ बिंदु उसके जेहन में अटककर रह गए ,जिन्हें समझने के लिए ,आज वो फिर से ,नीलिमा के दफ्तर में आती है। जब ''प्रभा ''नीलिमा ''से कहती है ,मेरे उपन्यास की नायिका अपने लिए क्यों नहीं खड़ी होती है ?जो सच्चाई के लिए आज लड़ती है ,वो उस समय अपने लिए क्यों शांत रही ,उसने अपने दोषियों से बदला क्यों नहीं लिया ?
तब नीलिमा अपने जीवन का एक रहस्य , प्रभा के सामने खोलती है ,उसने अपने बदला लेने का तरीका उसे बतलाने का सोचा। बोली -मैंने उन्हें क्षमा नहीं किया वरन उनसे इस तरह से बदला लिया जिसका उनके पास कोई तोड़ नहीं था।
आपने ऐसा क्या किया ?प्रभा उत्साहित होते हुए बोली।
नीलिमा भोली बनते हुए बोली -न ही मैंने कोई जुर्म किया ,न ही किसी की हत्या ,बस उन्हें सबक़ सिखाया। तब वो उस वक्त में चली गयीं और बोली -अपने गहने ,बेचकर मैंने कुछ पैसा बनाया। जिसकी मुझे उस समय बहुत आवश्यकता थी। तब मैं एक रात्रि और उसी घर में गयी ,तब मैं अपनी इच्छा से गयी और उन लोगों ने मुझे नहीं ,बल्कि मैंने उन लोगों को बुलाया।
एक साथ ! किससे क्या कहा ? कैसे बुलाया ?
अब काहें की शर्म ! अब तो मेरे सामने एक ही उद्देश्य था ,उनसे बदला लेना। तुम प्रश्न बहुत करती हो ,बता तो रही हूँ - मैंने अपने जेवर बेचकर जो पैसा मिला उससे मैंने एक बढ़िया फोन खरीदा जिसे मैंने उस कमरे में लगा दिया ,एक कैमरा और लगवाया ताकि एक में कुछ गड़बड़ हो तो ,दूसरा तो रहे। इस काम में मेरी सहायता उस टैम्पो वाले ने भी की ,वो ही किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाकर लाया ताकि उसमें सब रिकॉर्ड होता रहे। तब मैंने तपन को फोन किया और उससे कहा -आप मुझे पहले बता देते कि आपकी नजर मुझ पर है ,बेहोशी में किया तो क्या किया ?तुम भी मज़ा लेते और मैं भी ..... मुझे तो कुछ एहसास भी नहीं हुआ ,मैं भी कब तक धीरेन्द्र की विधवा बनकर रहूंगी ? मैं भी मन ही मन तुम पर मरती थी किन्तु हूँ तो ,मैं एक साधारण महिला ,मैं कैसे पहल करती ? जब बात खुलकर आ ही गयी है ,तब क्यों न हम एक- दूजे में समा जाएँ ?
तब क्या वो आया ?या तीनों ही आये।
मेरे इस तरह खुलकर सामने आते ही ,उसकी तो जैसे लार टपकने लगी ,मेरे पास इतना समय भी नहीं था ,कि तीनों को मैंने एक ही दिन में ,अलग -अलग समय में बुला लिया। उससे बातें की ं ,सब उगलवाया ,कैसे उन तीनों ने मेरा शोषण किया ? तब उनकी चाल ही ,उन पर डाली ,वही दवाई जो उन्होंने मेरे ड्रिंक में डाली थी ,उसी से बेहोश कर चलता किया। कुछ उदास होकर बोली -उनसे वे बातें निकलवाने के लिए ,मैं भी थोड़े घटियापन पर आ गयी। जैसे उनसे बात निकलवाने के लिए ,रिझाने के लिए थोड़ा अंग प्रदर्शन , बारीक़ कपड़े पहने ,किसी ग़ैर मर्द के सामने ,इस तरह करने के लिए ,मैंने अपने को न जाने कैसे -कैसे तैयार किया ? तुम नहीं समझोगी। कहते हुए ,नीलिमा के नेत्र सजल हो उठे।''घटिया लोगों को सबक सिखाने के लिए ,कभी -कभी घटिया बन जाना पड़ता है ,किन्तु सज्जन व्यक्ति के लिए तो वही वक़्त भी एक सजा ही बन जाता है। '' जब अपना काम हो गया ,तब उस ऑटो वाले की मदद से उसके ऑटो में डाल दिया। एक घंटे पश्चात जब दूसरा आया तब भी वो ही सब करना पड़ा किन्तु जब दूसरे को ऑटो वाला ले जा रहा था ,तभी सुरेंद्र आ गया। उसने रोहित को देख लिया और बोला -ये........ कैसे ?
एक बार तो मैं घबरा ही गयी थी ,तभी अपने को संभाला ,भगवान से प्रार्थना की-'' इस बार बचा ले ,तब मैंने जबाब दिया। ये महाशय आये हैं ,कह रहे थे -'तुम पर तो मैं पहले ही मर मिटा था। ' सुरेंद्र तो मतलबी है ,किन्तु मैं दिल से तुम्हारा साथ दूंगा और जोश -जोश में ज्यादा पी गया। सुरेंद्र ने मुझे अपनी और खींचा और बोला -ये लोग तो कुछ ज्यादा ही बोलते हैं ,सारी योजना तो मेरी ही थी ,मैं तो अकेला ही आ रहा था किन्तु इन दोनों ने फोन किया था ,कि मैं कहाँ हूँ ?जब उन्हें बताया -इस जगह पर हूँ दोनों ही आ गए। देखो !तुम्हें बुरा तो लगेगा किन्तु जबसे हमने तुम्हें देखा था ,हम तीनों ही धीरेन्द्र की किस्मत से जलते थे। उसे तो हीरा मिल गया। उस पर तुम हममें से किसी को भाव नहीं देती थीं। कहते हुए , मेरे बदन को निहारा ,तब मैं अपनी योजना के आख़िरी पड़ाव पर थी। मैं मन ही मन सोच रही थी -जिसे मेरी क़ीमत समझनी चाहिए थी ,उसके लिए तो मैं कुछ भी नहीं थी। मैं उसे अंदर ले आई और बिस्तर पर लेट गयी और उससे पूछती रही उसने कब कैसे योजना बनाई ? उससे मैं कुछ देर खेलती रही और उसे भी वही ड्रिंक दिया।
तभी अचानक जैसे हवा के झोकें से या फ़िसलकर मेरा फोन गिर गया।
क्या ??? फिर तो वो टूट गया होगा।
नहीं ,नीलिमा मुस्कुराते हुए बोली -यदि वो टूट जाता तो मैं भी टूट ही जाती ,हो सकता है ,आज तुम्हारे सामने इस तरह न खड़ी होती। वो फ़िसलकर नीचे नहीं गिरा बल्कि ख़िसककर वहीं पड़ा रहा किन्तु उसकी आवाज से ,मुझे अवश्य ही पसीने छूट गए।
तभी सुरेंद्र बोला -जब से तुम्हारे साथ का एहसास हुआ ,तुम समझ नहीं सकती ,मेरा एक -एक पल कैसे बिता ?और जब आज तुम्हारा फोन आया तो अपने को रोक नहीं सका। मैंने देखा ,इसने अभी तक वो ड्रिंक नहीं पी। तब मेरा एक उद्देश्य उसे बेहोश करना भी रह गया। तब मैंने शीघ्रता से अपनी नाइटी उतारकर ,उसके ऊपर फेंकी ,जब तक वो उससे अलग होता , मैंने अपना फोन सही जगह पर रख दिया। ये सभी कार्य ,मुझे तीव्रता से करने थे ,थोड़ी सी चूक होते ही ,मैं फँस सकती थी। मैं मन ही मन सोच रही थी ,धीरेन्द्र के बोये जहरीले बीज़ अब मैं काट रही हूँ। जब तक सुरेंद्र बेहोश नहीं हो गया ,तब तक मुझे उसे झेलना पड़ा। उसके बेहोश होते ही मैं भी ,उसे इसी तरह छोड़कर बाहर आ गयी।
उसके पश्चात ,क्या हुआ ? मेम ! आपकी इस सीधी सी कहानी में इतना रोमांचकारी मोड़ भी आ सकता है। आपको देखकर कोई कह नहीं सकता ,कि आप इस तरह की योजना भी बना सकती हैं। आज आपका ये नया रूप बिलकुल ही किसी ग्लैमरस हीरोइन की तरह नजर आ रहा है। कैसे ये सब ,मैं कैसे कल्पना करूं ,यहां आप इतनी पुरानी तो नहीं कह सकती ,जो सूती साड़ी में ,कसा हुआ जूड़ा ,ऐसी कोईं समाज -सेविका भी नहीं ,यहाँ तो आप जींस भी पहनती हो और सूट भी।
हाँ.... इससे क्या फ़र्क पड़ता है ? ये तो मेरे पति की इच्छा थी कि मैं अपने पहनावे को बदलूँ। पहनावे से आदमी की सोच और फ़ितरत नहीं बदलती। वो कुछ भी पहन ले ,किन्तु उसकी जो सोच है ,वही रहेगी।
किन्तु मैम ! इस बात को हम इस तरह भी कह सकते हैं ,जैसा इंसान होगा ,वो उसी तरह के कपड़े पहनेगा।
नहीं ,कतई नहीं ,सादगी से रहने वाली औरत का दिल क्या रंगीन नहीं हो सकता ?कहकर नीलिमा हंसी।