एक राजा के तीन पुत्र थे। तीनों का व्यक्तित्व अलग था।एक समय ऐसा आया जब राजा वृद्ध हो गया और अपने पुत्रों में से किसी एक को राजा बनाने की सोचने लगा।परंतु सबसे बड़ी समस्या थी कि तीनों में से किसे राजा बनाया जाये।
अंत में राजा को एक उपाय सुझा।राजा अपने तीनों पुत्रों के साथ एक महर्षि से मिलने एक जंगल में गया।जब महर्षि ने राजा को देखा तो उनके मन में ये प्रश्न उठने लगा कि आज महाराज अपने पुत्रों के साथ इस निर्जन वन में कैसे पधारे। राजा से पूछने पर उन्हें राजा की समस्या का पता चला।
कुछ समय पश्चात राजा के पुत्रों को महर्षि ने एक - एक केले खाने को दिया। जब तीनों ने केले खा लिए तो महर्षि ने राजा से कहा कि महाराज आप अपने सबसे छोटे पुत्र को राजा बना दीजिये।
राजा ने महर्षि से पूछा कि केले से किसी की योग्यता को कैसे परख जा सकता है और महर्षि को ये कैसे लगा कि छोटे वाले पुत्र को ही राजा बनाया जाना चाहिए।
महर्षि ने उत्तर दिया कि आपके सबसे बड़े पुत्र बहुत लापरवाह है क्योंकी उन्होंने केला खाकर उसके छिलके को वहीं फेंक दिया।
हो सकता है कोई उस पर फिसल जाये।
दूसरे पुत्र को प्रजा जो कहेगी वो वही करेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हीने केला खाकर छिलका कुड़ापात्र में डाल दिया जो अधिकतर लोग करते है।
लेकिन आपके सबस छोटे पुत्र ने अपने बड़े भाइयों से बिलकुल अलग कार्य किया।उसने केला खाया और छिलके को गाय को खिलाया।इसका सीधा सा यही मतलब निकलता है कि वो लोगों का ध्यान भी उसी तरह से रखेंगे जैसा कि गाय का रखे।
महर्षि की इस परख क्षमता पर राजा का को बहुत गर्व हुआ। महर्षि को कोटि - कोटि धन्यवाद दिया और अपने सबसे छोटे सुपुत्र को राजा बना दिया।पुत्र के राज्याभिषेक पर राजा ने ससम्मान महर्षि को बुलाया और पुत्र को आशीर्वाद दिलवाया।