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अजमेर शरीफ का इतिहास Part 4

20 फरवरी 2022

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अजमेर शऱीफ में रखे दो बड़े-बड़े कढ़ाहे (देग):

अजमेर शरीफ की प्रसिद्ध दरगाह के अंदर दो काफी बड़े-बड़े कढ़ाहे रखे गए हैं,चितौड़गढ़ से युद्ध जीतने के बाद मुगल सम्राट अकबर ने इसे बड़े कढ़ाहे को ददान किया था, जबकि जहांगीर द्धारा छोटा कढाहा भेंट किया गया था।

बड़े कढ़ाहे में एक बार में करीब 31.8 किलो चावल पक सकते हैं, जबकि छोटे कढ़ाहे में 12.7 किलो चावल पकाए जा सकते हैं। कढ़ाहे में रात में खाना बनाया जाता है, और रोज सुबह प्रसाद के रुप में यहां आने वाले भक्तों को बांटा जाता है।

महफिलखाना या फिर शामखाना:

अजमेर शरीफ के हॉल महफि़ल-ए-समां या महफिलखाना में सूफी गायकों के द्धारा रोजाना नमाज के बाद बेहद खूबसूरत दिल छू लेने वाली कव्वाली गाईं जाती हैं, जिसका यहां आने वाले भक्त लुफ्त उठा सकते हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की इस दरगाह में सनडली मस्जिद, ऑलिया मस्जिद, बाबाफिरिद का चिली, बीबी हाफिज जमाल की मजार समेत अन्य स्मारक भी बने हुए हैं।

इसके साथ ही इस दरगाह के अंदर एक बेहद शानदार नक्काशी किया हुआ चांदी का कटघरा है, जिसके अंदर ख्वाजा मुईउद्दीन चिश्ती की भव्य मजार बनी हुई है। इस चांदी के कटघरा का निर्माण जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने करवाया था।

दरगाह के अंदर बना जहालरा ख्वाजा गरीब नवाज के समय से हैं, जो कि पहले पानी का प्रमुख स्त्रोत होता था। वहीं वर्तमान में इसका इस्तेमाल दरगार के पवित्र कामों के लिए किया जाता है।

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इस दरगाह से सभी धर्मों के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इसे सर्वधर्म सद्भाव की अदभुत मिसाल भी माना जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह में हर मजहब के लोग अपना मत्था टेकने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी ख्वाजा के दर पर आता है कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है, यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है। उनकी ख्याति इस्लाम के महान उपदेशक के रुप में भी विश्व भर में फैली हुई थी। उन्होंने अपने महान विचारों और शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया एवं उन्हें भारत में इस्लाम का संस्थापक भी माना जाता था। उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता था। उनकी अद्भुत एवं चमत्कारी शक्तियों की वजह से वे मुगल बादशाहों के बीच भी काफी लोकप्रिय हो गए थे। उन्होंने अपने गुरु उस्मान हरूनी से मुस्लिम धर्म की शिक्षा ली एवं इसके बाद उन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई यात्राएं की एवं अपने महान उपदेश दिए। ख्वाजा गरीब नवाज ने पैदल ही हज यात्रा की थी। इस सूफी संत के महान उपदेशों और शिक्षाओं के बड़े-ब़ड़े मुगल बादशाह भी कायल थे। उन्होंने लोगों को कठिन परिस्थितियों में भी खुश रहना, अनुशासित रहना, सभी धर्मों का आदर करना, गरीबो, जरुरतमंदों की सहायता करना, आपस में प्रेम करना समेत कई महान उपदेश दिए। उनके महान उपदेश और शिक्षाओं ने लोगों पर गहरा प्रभाव छोड़ा और वे उनके मुरीद हो गए। इस महान सूफी संत ने ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने करीब 114 साल की उम्र में ईश्वर की एकांत में प्रार्थना करने के लिए खुद को करीब 6 दिन तक एक कमरे में बंद कर लिया था और अपने नश्वर शरीर को अजमेर में ही त्याग दिया। वहीं जहां उन्होंने अपनी देह त्यागी थी, वहीं ख्वाजा साहब का मकबरा बना दिया गया, जो कि अजमेर शरीफ की दरगाह, ख्वाजा मुईनुउद्दीन चिश्वती की दरगाह और ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के रुप में मशहूर है। इस दरगाह में प्रवेश के लिए चारों तरफ से बेहद भव्य एवं आर्कषक दरवाजे बनाए गए हैं जिसमें निजाम गेट, जन्नती दरवाजा, नक्कारखाना (शाहजहानी गेट), बुलंद दरावजा शामिल हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के अंदर बेहद सुंदर शाह जहानी मस्जिद भी बनी हुई है। यह मस्जिद मुगलकालीन वास्तुकला की एक नायाब नमूना मानी जातीहै। इस आर्कषक मस्जिद की इमारत में अल्लाह के करीब 99 पवित्र नामों के 33 खूबसूरत छंद लिखे गए हैं.
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