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अजमेर शरीफ का इतिहास Part 5

20 फरवरी 2022

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अजमेर शरीफ दरगाह के नियम –

ख्वाजा की मजार पर कोई भी व्यक्ति सिर खोलकर नहीं जा सकता है।
मजार के दर्शन के लिए किसी भी तरह के बैग या सामान ले जाने की सख्त मनाही है।इसके साथ ही कैमरा ले जाने की भी रोक है।
ख्वाजा के दर पर बिना हाथ-पैर साफ किए प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, यहां आने वाले भक्तों को पहले यहां मौजूद जहालरा में अपने हाथ-पैर साफ करने पड़ते हैं।

अजमेर शरीफ की दरगाह से जुड़ी कुछ रोचक एवं दिलचस्प बातें
अजमेर शरीफ की दरगाह में प्रवेश करने वाला पहला शख्स मोहम्मद बिन तुगलक हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती था, जिसने 1332 ईसवी में इस पवित्र तीर्थ स्थल की यात्रा की थी।
निजाम सिक्का नामक एक साधारण शख्स ने एक बार मुगल सम्राट हुमायूं को बचाया था। जिसके बाद इनाम के तौर पर उसे यहां का एक दिन का नवाब भी घोषित किया गया था। वहीं ख्वाजा गरीब नवाज की इस दरगाह के अंदर निजाम सिक्का का मकबरा भी बना हुआ है।
अजमेर शरीफ की दरगाह में रोजना शाम की नवाज से 15 मिनट पहले दैनिक पूजा के रूप में दरगाह के लोगों द्वारा दीपक जलाते हुए ड्रम की धुन पर फारसी छंद गाये जाते हैं। इस छंद गायन के बाद ये दीपक मीनार के चारों तरफ रखे जाते हैं। दरगाह में इस रिवाज को को ‘रोशनी’ कहते हैं।
ख्वाजा मोइउद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि पर मनाए जाने वाले उर्स के दौरान अल्लाह के मुरीदों के द्वारा गरम जलते कढ़ाहे के अंदर खड़े होकर भक्तों को खाना बांटा जाता है।
भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह, भारत सरकार द्धारा दरगाह ख्वाजा साहेब एक्ट 1955 के तहत मान्यता प्राप्त है। लाखों लोगों की आस्था से जुड़ी इस दरगाह के लिए भारत सरकार द्धारा एक समिति भी बनाई गई है, जो की इस दरगाह में चढ़ने वाले चढ़ावे का लेखा-जोखा रखती है एवं दरगाह की व्यवस्थाओं का ध्यान रखती है। हालांकि, इस दरगाह की अंदर की सभी व्यवस्थाएं खादिम देखते हैं और भक्तों की सभी सुख-सुविधाओं का भी पूरा ध्यान रखते हैं

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इस दरगाह से सभी धर्मों के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इसे सर्वधर्म सद्भाव की अदभुत मिसाल भी माना जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह में हर मजहब के लोग अपना मत्था टेकने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी ख्वाजा के दर पर आता है कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है, यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है। उनकी ख्याति इस्लाम के महान उपदेशक के रुप में भी विश्व भर में फैली हुई थी। उन्होंने अपने महान विचारों और शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया एवं उन्हें भारत में इस्लाम का संस्थापक भी माना जाता था। उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता था। उनकी अद्भुत एवं चमत्कारी शक्तियों की वजह से वे मुगल बादशाहों के बीच भी काफी लोकप्रिय हो गए थे। उन्होंने अपने गुरु उस्मान हरूनी से मुस्लिम धर्म की शिक्षा ली एवं इसके बाद उन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई यात्राएं की एवं अपने महान उपदेश दिए। ख्वाजा गरीब नवाज ने पैदल ही हज यात्रा की थी। इस सूफी संत के महान उपदेशों और शिक्षाओं के बड़े-ब़ड़े मुगल बादशाह भी कायल थे। उन्होंने लोगों को कठिन परिस्थितियों में भी खुश रहना, अनुशासित रहना, सभी धर्मों का आदर करना, गरीबो, जरुरतमंदों की सहायता करना, आपस में प्रेम करना समेत कई महान उपदेश दिए। उनके महान उपदेश और शिक्षाओं ने लोगों पर गहरा प्रभाव छोड़ा और वे उनके मुरीद हो गए। इस महान सूफी संत ने ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने करीब 114 साल की उम्र में ईश्वर की एकांत में प्रार्थना करने के लिए खुद को करीब 6 दिन तक एक कमरे में बंद कर लिया था और अपने नश्वर शरीर को अजमेर में ही त्याग दिया। वहीं जहां उन्होंने अपनी देह त्यागी थी, वहीं ख्वाजा साहब का मकबरा बना दिया गया, जो कि अजमेर शरीफ की दरगाह, ख्वाजा मुईनुउद्दीन चिश्वती की दरगाह और ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के रुप में मशहूर है। इस दरगाह में प्रवेश के लिए चारों तरफ से बेहद भव्य एवं आर्कषक दरवाजे बनाए गए हैं जिसमें निजाम गेट, जन्नती दरवाजा, नक्कारखाना (शाहजहानी गेट), बुलंद दरावजा शामिल हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के अंदर बेहद सुंदर शाह जहानी मस्जिद भी बनी हुई है। यह मस्जिद मुगलकालीन वास्तुकला की एक नायाब नमूना मानी जातीहै। इस आर्कषक मस्जिद की इमारत में अल्लाह के करीब 99 पवित्र नामों के 33 खूबसूरत छंद लिखे गए हैं.
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