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अजमेर शरीफ़ दरगाह का इतिहास part 3

20 फरवरी 2022

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बुलंद दरवाजा –

बुलंद दरवाजा, अजमेर शरीफ की दरगाह में बने प्रमुख चारों दरवाजों में से एक है, यह एक भव्य और विशाल गेट है । जिसका निर्माण महमूद खिलजी और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा करवाया गया है।

उर्स महोत्सव की शुरुआत से पहले इस भव्य गेट के ऊपर ध्वज फहराया जाता है। यह दरवाजा, अजमेर शरीफ के सभी दरवाजों में सबसे ऊंचा है, इसलिए इसे बुलंद दरवाजा कहा जाता है।

चार यार की मजार –

अजमेर शरीफ की दरगाह में जामा मस्जिद के पास एक काफी बड़ा कब्रिस्तान बना हुआ है, जहाम कई बड़े-बड़े सूफियों, फकीरों, आलिमों और फाजिलों की कब्र बनी हुई हैं।

वहीं इस कब्रिस्तान में उन चार संतों की भी कब्रे बनी हुई हैं, जो कि ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के साथ भारत यात्रा पर आए थे, इसलिए इसे चार यार की मजार भी कहते हैं। यहां हर साल भव्य मेला लगता है, जिसे देखने दूर-दूर से सैलानी आते हैं।

अकबरी मस्जिद –

अकबरी मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट अकबर ने उस वक्त करवाया था, जब जहांगीर के रुप में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।

दरअसल,मुगल सम्राट अकबरने ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर पुत्र रत्न की दुआ मांगी थी, वहीं जहांगीर के जन्म के बाद वे आगरा से करीब 437 किमी. दूर पैदल चलकर नंगे पैर इस दरगाह पर आए थे और जियारत पेश की थी एवं उसी वक्त अकबर ने इस मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया था।

आज के समय इस मस्जिद में इस्लाम समुदाय के बच्चों को कुरान की तामिल दी जाती है।

सेहन का चिराग –

अजमेर शरीफ की दरगाह के इस सबसे ऊंचे बुलंद दरवाजे के थोड़ा सा आगे बढऩे पर सामने की तरफ एक एक गुम्बद की तरह सुंदर सी छतरी है। इसमें एक काफी पुराने प्रकार का पीतल का चिराग रखा है। इसको सेहन का चिराग कहते हैं।

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इस दरगाह से सभी धर्मों के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इसे सर्वधर्म सद्भाव की अदभुत मिसाल भी माना जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह में हर मजहब के लोग अपना मत्था टेकने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी ख्वाजा के दर पर आता है कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है, यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है। उनकी ख्याति इस्लाम के महान उपदेशक के रुप में भी विश्व भर में फैली हुई थी। उन्होंने अपने महान विचारों और शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया एवं उन्हें भारत में इस्लाम का संस्थापक भी माना जाता था। उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता था। उनकी अद्भुत एवं चमत्कारी शक्तियों की वजह से वे मुगल बादशाहों के बीच भी काफी लोकप्रिय हो गए थे। उन्होंने अपने गुरु उस्मान हरूनी से मुस्लिम धर्म की शिक्षा ली एवं इसके बाद उन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई यात्राएं की एवं अपने महान उपदेश दिए। ख्वाजा गरीब नवाज ने पैदल ही हज यात्रा की थी। इस सूफी संत के महान उपदेशों और शिक्षाओं के बड़े-ब़ड़े मुगल बादशाह भी कायल थे। उन्होंने लोगों को कठिन परिस्थितियों में भी खुश रहना, अनुशासित रहना, सभी धर्मों का आदर करना, गरीबो, जरुरतमंदों की सहायता करना, आपस में प्रेम करना समेत कई महान उपदेश दिए। उनके महान उपदेश और शिक्षाओं ने लोगों पर गहरा प्रभाव छोड़ा और वे उनके मुरीद हो गए। इस महान सूफी संत ने ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने करीब 114 साल की उम्र में ईश्वर की एकांत में प्रार्थना करने के लिए खुद को करीब 6 दिन तक एक कमरे में बंद कर लिया था और अपने नश्वर शरीर को अजमेर में ही त्याग दिया। वहीं जहां उन्होंने अपनी देह त्यागी थी, वहीं ख्वाजा साहब का मकबरा बना दिया गया, जो कि अजमेर शरीफ की दरगाह, ख्वाजा मुईनुउद्दीन चिश्वती की दरगाह और ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के रुप में मशहूर है। इस दरगाह में प्रवेश के लिए चारों तरफ से बेहद भव्य एवं आर्कषक दरवाजे बनाए गए हैं जिसमें निजाम गेट, जन्नती दरवाजा, नक्कारखाना (शाहजहानी गेट), बुलंद दरावजा शामिल हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के अंदर बेहद सुंदर शाह जहानी मस्जिद भी बनी हुई है। यह मस्जिद मुगलकालीन वास्तुकला की एक नायाब नमूना मानी जातीहै। इस आर्कषक मस्जिद की इमारत में अल्लाह के करीब 99 पवित्र नामों के 33 खूबसूरत छंद लिखे गए हैं.
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