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आखिर खता क्या थी मेरी? (भाग -1)

21 नवम्बर 2022

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यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है। लेकिन पात्रों के नाम व पृष्ठभूमि को बदल दिया गया है।हो सकता है परिवेश का नाम काल्पनिक हो इसे अन्यथा ना ले। धन्यवाद।

राजस्थान का छोटा सा गांव सुजानगढ़।भोर हो गयी थी चिड़ियों का कलरव अपनी चरम सीमा पर था। ठाकुर महेन्द्र प्रताप का हर रोज का नियम था सुबह सवेरे उठते , नित्यकर्म से निवृत्त हो कर घर से कुत्तों के लिए रोटी और चिड़ियों के लिए दाना लेकर दूर खेतों की तरफ निकल जाते थे सब को दाना चुगा डालकर इधर बाजार की तरफ से निकल आते थे क्योंकि बाजार में उनकी बहुत बड़ी मिठाई की दुकान थी। दुकान का डंका चारों तरफ़ बजता था आस-पास के तीन सौ गांव के लोगों की जरूरत को ठाकुर महेन्द्र प्रताप की यह दुकान पूरा करती थी। क्या दही क्या दूध एक से एक तरह की स्वादिष्ट मिठाई मिलती थी।बस ठाकुर साहब का हर रोज का नियम था की सुबह की सैर करते हुए एक बार दुकान का चक्कर लगा आते थे।
   भगवान की दया से ठाकुर महेन्द्र प्रताप का भरा-पूरा परिवार था। दुकान तो बेटों ने ही सम्भाल रखी थी।नौ बेटों का परिवार था चार विदेश में थे ।दो बेटे महानगरों में रहते थे। तीन बेटे ही उनके पास रहते थे।एक का नाम भगवान सिंह दूसरा ईश्वर सिंह और छोटा सब से लाडला भवानी सिंह था। ठाकुर साहब तो अपने परिवार को निहारते थकते ही नहीं थे बस भगवान से यही प्रार्थना करते थे कि इसे किसी की नजर ना लगे।
शाम को हर रोज का नियम था कि तीनों बेटे बारी बारी से जब भी दुकान से आते सारे दिन की बातें अपने पिता को बताते थे।आज भवानी थोड़ा जल्दी आ गया था। क्योंकि आज उसे सब से पहले अपने मन की बात अपने पिता को बतानी थी।
"क्यों ये भवानी मन नहीं लगता क्या तेरा दुकान पर जो सांझ से पहले ही भाग आया"। महेंद्र प्रताप ने लाड़ लडाते हुए कहा।"नहीं पिता जी आज आप से कुछ बात करनी थी दुकान के विषय मे । मुझे लगा बड़े भाई साहब मना ना कर दे इस लिए जल्दी आ गया।
वो,वववो पिता जी दुकान की बगल वाला मकान है ना गणपत साहू का बिक रहा है। कौड़ियों के भाव बेच रहा है में बाजार में ही हैं थेह तौ जानौ हो किता बढ़िया मकान है।"महेन्द्र प्रताप तुनक कर बोले,"मंशा बता अपनी"।"पिता जी क्यूं ना हम वो मकान खरीद लें। मैं बड़ भाईसाहब के पास गया था वहां पर मैंने बड़े बड़े शादी के हाल देखें है ।आपा भी बना लेसी तो कित्तो चौखो हो जा सी।आपनो बयपार बढ़ जाएगा।तीन सौ गांवों में अपनी दुकान नु सब जाने है फेर ब्याह सादी भी अपने बने बंकटहाल में करागे लोग-बाग। भवानी अपने मन की बात एक ही सांस में बोल गया।इतने में भगवान सिंह खांसता हुआ अन्दर आ गया बहू बेटियों का घर है उस का खांसना बनता था।"कांयी रे थेह आंता ही पिता जिया के कान मह बांत डाल दी।थावस कोणी कै। भगवान सिंह जब जोर से बोला तो छोटा भवानी पिता के पीछे जा कर बैठ गया। महेंद्र प्रताप बड़े से बोले"या कयी कह रहयो है।"भगवान सिंह ने जो बात अपने पिता को बताई उस से महेन्द्र प्रताप अंदर तक कांप गये।,महेन्द्र प्रताप सिंह का भरा-पूरा परिवार था ।नौ बेटे, अभी तीन ही उनके पास रहते थे। गांव के मेन बाजार में उनकी मिठाई की प्रसिद्ध दुकान थी। ठाकुर साहब के छोटे बेटे ने दुकान से लगता गनपत साहू का मकान खरीदने को कहा तो बड़े बेटे भगवान सिंह की बात सुनकर ठाकुर साहब सिहर उठे। 
        बात ही कुछ ऐसी भगवान सिंह ने कहा दी थी कि ठाकुर साहब का सहमना लाजमी था। भगवान सिंह ने बताया ,"पिता जी उस घर में भूत प्रेत का साया है सब लोग यही कहते हैं जब ही गनपत उसे औने पौने दामों में बेच रहा है। यो भवानी तो माननै ही कोनी"।
      ठाकुर साहब को इन सब चीजों का ज्ञान था अगर घर गृहस्थी में ना होते तो बहुत बड़े तान्त्रिक या पुजारी होते। कितनी ही बार आत्माओं से बातचीत करते थे।बचपन में और बच्चे गिल्ली डंडा, पतंग बाजी करते पर ठाकुर महेन्द्र प्रताप किसी ना किसी तान्त्रिक बाबा के पास बैठकर उनसे आत्मा से साक्षात्कार,उनको मुक्ति कैसे दिलानी है यह सीखते।एक बार इसी तरह का कर्म कांड करते समय ठाकुर साहब की जान जातें जाते बची थी तो उनकी मां ने उनको अपनी जान की कसम देकर रोका था ताकि आगे से ना ये ऐसे काम करेगा ना जान पर बनेगी। बहुत सी किताबें अभी भी उनकी अलमारी में रखी थीं पर मां की कसम लेने के बाद ठाकुर साहब ने उनको देखा भी नहीं।
"क्यूं र भवानी क्यूं जीते जी मौत को मुंह लगाना चाहता है।कायी समझ कोनी आवै के। थेह जाने है वो भूत प्रेत वासरो ढूंढ है फेर कायी जिद बांध रहयो है।"
      "पिता जी थेह भी कायी बांता मह आगे।आजकल रो जमानों में कौन भूत प्रेता नै मानै है।फेर अगर होसी तो ताहरो तो ज्ञान(अलमारी की तरफ इशारा करके)कयई काम आसी।"
 महेन्द्र प्रताप छोटे बेटे को शान्त करवा कर उसे उसके कमरे में भेज देता है इधर भगवान सिंह भी पिता के पास बैठकर दुकान की रोकड मिला कर तिजोरी में पैसे रखकर चला जाता है। महेन्द्र प्रताप भी खाना खा कर सोने की तैयारी करते हैं।रात के दो पहर ही बीते होंगे कि महेन्द्र प्रताप को किसी के रोने की आवाज़ आती है वो एक दम उठ बैठते हैं और आवाज़ की दिशा में देखते हैं हवेली के मुख्य दरवाजे के बाद जो दलान है वहां पर कोई उन्नीस बीस साल की लड़की घुटनों में मुंह दे कर रो रही है। ठाकुर साहब उसकी ओर चल दिए।

(क्रमशः)

3 फरवरी 2023

Laxmi Tyagi

Laxmi Tyagi

अच्छी शुरुआत 👌👌👌

28 दिसम्बर 2022

1213 Os Goel

1213 Os Goel

Wonderful story

27 नवम्बर 2022

arpita goyal

arpita goyal

Nice story

27 नवम्बर 2022

Ayush

Ayush

Bahut hi khubsurat likha hai 🙂

27 नवम्बर 2022

Harsh

Harsh

Ati sundar 🙂

27 नवम्बर 2022

Hardik

Hardik

Beautifully written ❤️❤️

27 नवम्बर 2022

bindu goyal

bindu goyal

Nice thought

27 नवम्बर 2022

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रचनाएँ
आखिर खता क्या थी मेरी ?
4.6
एक ऐसी लड़की की कहानी जो मर के भी मर ना सकी और अपने प्यार के लिए सब कुछ कुर्बान कर गयी । आईए आप भी पढ़ें कनक की कहानी कनक की जुबानी
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आखिर खता क्या थी मेरी? (भाग -1)

21 नवम्बर 2022
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यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है। लेकिन पात्रों के नाम व पृष्ठभूमि को बदल दिया गया है।हो सकता है परिवेश का नाम काल्पनिक हो इसे अन्यथा ना ले। धन्यवाद।राजस्थान का छोटा सा गांव सुजानगढ़।भोर हो गयी थी

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आखिर खता क्या थी मेरी?(भाग-2)

22 नवम्बर 2022
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गतांक से आगे:-रोने की आवाज की तरफ चलते हुए ठाकुर साहब ने देखा एक उन्नीस बीस साल की लड़की उनके दलान(पहले के जमाने में मुख्य द्वार के बाद एक कमरा सा होता था जिसे दालान कहते थे अजनबी अतिथि वह

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आखिर खता क्या थी मेरी?(भाग:-3)

22 नवम्बर 2022
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गतांक से आगेजैसे ही ठाकुर साहब ने उसके जुडे़ हुए हाथ देखे उस को इशारे से अपने पास बुलाया। वो एक क्षण में उनके सामने खड़ी थी। "लाली ये तो मुझे पता चल गया कि तू कोई रुकी हुई आत्मा है मुझ से क्या चाहती ह

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आखिर खता क्या थी मेरी (भाग-4)

23 नवम्बर 2022
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गतांक से आगे.…. जल्दी-जल्दी कदम बढ़ा कर ठाकुर साहब उसी चबूतरे पर पहुंचे जहां कनक से उस की आपबीती जानने का वादा कर के आये थे।

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आखिर खता क्या थी मेरी (भाग-5)

23 नवम्बर 2022
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गतांक से आगे... दरवाजे पर हुई दस्तक से मन एक बार को कांप गया कही वो तो...।पर जब दरवाजा खोला तो सामने पिता जी खड़े थे ।आज शायद जल्दी आ गये थे।छोटी मां के जाने के

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आखिर खता क्या थी मेरी?(भाग-6)

23 नवम्बर 2022
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गतांक से आगे:-जैसे ही ठाकुर महेन्द्र प्रताप घर पहुंचे बड़ी बहू आंगन में झाड़ू लगा रही थी ससुर को इतनी जल्दी नित्य कर्म से हो कर आता देखकर हैरान रह गयी। ठाकुर साहब खंखार करके अपने कमरे में आ गये बहू भग

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आखिर खता क्या थी मेरी?(भाग:-7)

24 नवम्बर 2022
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गतांक से आगे.… मां पिता जी के कमरे में दहाड़ती हुई पहुंची मेरा दिल धड़क धड़क कर रहा था बस यही लग रहा था कि मैंने तो कोई ऐसी" खता" भी नहीं की जो मां ऐसा व्यवहार कर रही है पर

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आखिर खता क्या थी मेरी?(भाग:-8)

24 नवम्बर 2022
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गतांक से आगे... "ददू मेरी तो जान ही निकल गई जब मैंने रमा के मुंह से ये बात सुनी।"कनक की आत्मा पत्ते की तरह कांप रही थी वो पगली क्या जानती थी कि अब क्यों कांप रही है अब तो उस जगह पर थी वह जहां उस

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आखिर खता क्या थी मेरी?(भाग:-9)

24 नवम्बर 2022
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गतांक से आगे.. भगवान सिंह के बोलने पर ठाकुर साहब उसकी ओर देखते हुए बोले,"बता भगवाने कै बात है क्यूं तावल मचा रहिया है।"भगवान सिंह ने गनपत की हवेली के कागजात ठाकुर के सामने रखते हुए कहा,"पिताजी ज

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आखिर खता क्या थी मेरी?(भाग:-10)

26 नवम्बर 2022
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गतांक से आगे.… जिसका डर था वहीं बात बनी ।छोटी मां और कालू मुझे ऐसे ढूंढ रहे थे जैसे खोजी कुत्ते सुराग़ ढूंढते हैं।कालू ने मुझे पहचान लिया था।वो भुखे शेर की तरह

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आखिर खता क्या थी मेरी?(भाग:-11)

26 नवम्बर 2022
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गतांक से आगे… ठाकुर साहब का आज मन बहुत भारी था कनक की दुःख भरी दास्तां सुनाने के बाद बरबस आंखों से आंसू आये जा रहे थे।आज ठाकुर साहब ने कुल्ला करके नाश्ता भी नहीं किया ।भारी मन

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आखिर खता क्या थी मेरी?(भाग:-12) अंतिम

26 नवम्बर 2022
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गतांक से आगेकनक गला फाड़कर रो रही थी ,"ददू !यही फर्श के नीचे मेरा पार्थिव शरीर गढ़ा है। मुझे मुक्ति दिला दो ददू मेरे सैफ मेरा इंतजार कर रहे हैं।"ठाकुर साहब की आंखों में अविरल आंसू बह रहे थे जाप न

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