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अलमस्त परिंदे

25 अप्रैल 2022

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इक दबी हुई चिंगारी से
कुछ शोले भड़काने के लिए , 
अलमस्त परिंदे जो ठहरे
आये है चले जाने के लिए I 
कल याद न आए तुमको गर
तो क़सूर नहीं कोई तेरा ,
मैं आज छिड़ा ऐसा नग़मा
कल तलक भूल जाने के लिए I

खुशियों की कुछ सौगातें संग
बेइन्तेहाँ दर्द के मेले है ,
जो ठहरा शबनमी मोती सा
नज़रों से गिर जाने के लिए I 
मेरी तन्हा सी राहों में
गुलों के ज़िस्म थिरकते है ,
कांटे उनके भी दामन में
कुछ ज़ख्म सजा जाने के लिए I

मौसम की फ़ितरत कुछ ऐसी
रंग अपना बदले घडी घडी ,
हर सुबह ज्यों निकले सूरज
शाम को ढल जाने के लिए I

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अलमस्त परिंदे

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इक दबी हुई चिंगारी सेकुछ शोले भड़काने के लिए , अलमस्त परिंदे जो ठहरेआये है चले जाने के लिए I कल याद न आए तुमको गरतो क़सूर नहीं कोई तेरा ,मैं आज छिड़ा ऐसा नग़माकल तलक भूल जाने के लिए Iखुशियों की

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