इक दबी हुई चिंगारी से
कुछ शोले भड़काने के लिए ,
अलमस्त परिंदे जो ठहरे
आये है चले जाने के लिए I
कल याद न आए तुमको गर
तो क़सूर नहीं कोई तेरा ,
मैं आज छिड़ा ऐसा नग़मा
कल तलक भूल जाने के लिए I
खुशियों की कुछ सौगातें संग
बेइन्तेहाँ दर्द के मेले है ,
जो ठहरा शबनमी मोती सा
नज़रों से गिर जाने के लिए I
मेरी तन्हा सी राहों में
गुलों के ज़िस्म थिरकते है ,
कांटे उनके भी दामन में
कुछ ज़ख्म सजा जाने के लिए I
मौसम की फ़ितरत कुछ ऐसी
रंग अपना बदले घडी घडी ,
हर सुबह ज्यों निकले सूरज
शाम को ढल जाने के लिए I