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तुम   हो 

16 अप्रैल 2022

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व्यूह  ध्वस्त  कर तिमिर  रात्रि  का ,
अरुणोदय  का   वंदन  तुम   हो l
झंकृत  कर   जीवन  वीणा  के ,
तारों    का    स्पंदन    तुम   हो ll
कविता में  तुम  , छंद में  हो  तुम
जीवन  के  प्रति द्वन्द  में  हो तुम ,
रक्षा  कवच   कुत्सित  दृष्टि   का  
चक्षु   समाहित   अंजन  तुम  हो l
झंकृत   कर   जीवन  वीणा  के ,
तारों   का   स्पंदन    तुम   हो ll
पुष्पों   के   मकरंद  में   हो  तुम ,
भीनी   मधुर  सुगंध  में  हो  तुम ,
प्रस्फुटित   कलियों  के तन  पर ,
मोहित  भ्रमर  का गुंजन  तुम हो l
झंकृत  कर   जीवन  वीणा   के ,
तारों   का    स्पंदन    तुम    हो ll
पथ  भी  तुम  ,गंतव्य भी   हो तुम 
विस्तृत  नभ  सी भव्य  भी हो तुम ,
आहत   पीड़ित   तप्त   हृदय  को 
शीतल   करती   चन्दन   तुम   हो l
झंकृत   कर   जीवन   वीणा   के ,
तारों    का    स्पंदन    तुम     हो ll

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