shabd-logo

तुम   हो 

16 अप्रैल 2022

15 बार देखा गया 15
व्यूह  ध्वस्त  कर तिमिर  रात्रि  का ,
अरुणोदय  का   वंदन  तुम   हो l
झंकृत  कर   जीवन  वीणा  के ,
तारों    का    स्पंदन    तुम   हो ll
कविता में  तुम  , छंद में  हो  तुम
जीवन  के  प्रति द्वन्द  में  हो तुम ,
रक्षा  कवच   कुत्सित  दृष्टि   का  
चक्षु   समाहित   अंजन  तुम  हो l
झंकृत   कर   जीवन  वीणा  के ,
तारों   का   स्पंदन    तुम   हो ll
पुष्पों   के   मकरंद  में   हो  तुम ,
भीनी   मधुर  सुगंध  में  हो  तुम ,
प्रस्फुटित   कलियों  के तन  पर ,
मोहित  भ्रमर  का गुंजन  तुम हो l
झंकृत  कर   जीवन  वीणा   के ,
तारों   का    स्पंदन    तुम    हो ll
पथ  भी  तुम  ,गंतव्य भी   हो तुम 
विस्तृत  नभ  सी भव्य  भी हो तुम ,
आहत   पीड़ित   तप्त   हृदय  को 
शीतल   करती   चन्दन   तुम   हो l
झंकृत   कर   जीवन   वीणा   के ,
तारों    का    स्पंदन    तुम     हो ll

Alok Saxena की अन्य किताबें

6
रचनाएँ
पंखुड़ियां
0.0
कविताओं में ढले जज़्बात
1

कली   गुलाब   की

5 अप्रैल 2022
3
0
1

कली गुलाब की“ हसरत- ए – दीदार लेकर जाग उठी रात भी चादर- ए-शबनम में लिपटी एक कली गुलाब की ““ सावन की घटाओं में&

2

खिड़की 

8 अप्रैल 2022
2
0
0

ग़मों से तपती हुई धूप में जलता हुआ ,अश्क़ों के जाम में दर्द &nbsp

3

तुम   हो 

16 अप्रैल 2022
2
0
0

व्यूह ध्वस्त कर तिमिर रात्रि का ,अरुणोदय का वंदन तुम हो lझंकृत कर जीवन वीणा के ,तारों का &n

4

फूल 

17 अप्रैल 2022
1
1
2

चहक उठा नन्हा सा परिंदा मन का ,बिख़ेर ख़ुश्बू जब फ़िज़ा में मुस्कराया फूल एक अर्से से &nbsp

5

उस दिन

19 अप्रैल 2022
2
0
0

मद से लहराते क़दमों कोअनजान सी किसी डगर परमोड़ा था तुमनेजिस दिन ,सागर की गहराई कोदर्द की उठती लहरों सेतौला था हमने उस दिन

6

अलमस्त परिंदे

25 अप्रैल 2022
1
0
0

इक दबी हुई चिंगारी सेकुछ शोले भड़काने के लिए , अलमस्त परिंदे जो ठहरेआये है चले जाने के लिए I कल याद न आए तुमको गरतो क़सूर नहीं कोई तेरा ,मैं आज छिड़ा ऐसा नग़माकल तलक भूल जाने के लिए Iखुशियों की

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए