कविताओं में ढले जज़्बात
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कली गुलाब की“ हसरत- ए – दीदार लेकर जाग उठी रात भी चादर- ए-शबनम में लिपटी एक कली गुलाब की ““ सावन की घटाओं में&
ग़मों से तपती हुई धूप में जलता हुआ ,अश्क़ों के जाम में दर्द  
व्यूह ध्वस्त कर तिमिर रात्रि का ,अरुणोदय का वंदन तुम हो lझंकृत कर जीवन वीणा के ,तारों का &n
चहक उठा नन्हा सा परिंदा मन का ,बिख़ेर ख़ुश्बू जब फ़िज़ा में मुस्कराया फूल एक अर्से से  
मद से लहराते क़दमों कोअनजान सी किसी डगर परमोड़ा था तुमनेजिस दिन ,सागर की गहराई कोदर्द की उठती लहरों सेतौला था हमने उस दिन
इक दबी हुई चिंगारी सेकुछ शोले भड़काने के लिए , अलमस्त परिंदे जो ठहरेआये है चले जाने के लिए I कल याद न आए तुमको गरतो क़सूर नहीं कोई तेरा ,मैं आज छिड़ा ऐसा नग़माकल तलक भूल जाने के लिए Iखुशियों की