किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती कोई बीस वर्ष की रही होगी और बिहार के एक गांव, अपने ससुराल में अपने पति राम अमोल पाठक, नवजात शिशु चन्दन और जेठानी के संग रहा करती थी। राम अमोल पाठक जी की नौकरी जब सूरजगढ़ की प्रिंटिंग प्रेस में लग जाती है तो तो अमरावती भी बेटे चन्दन और अमोल जी के संग शहर में बस जाती है | राम अमोल पाठक जी सकारात्मक सोच वाले सीधे सज्जन इंसान हैं जिनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान बानी रहती है | परन्तु उनकी पत्नी अमरावती ठीक उनके विपरीत नकारात्मक स्वाभाव वाली महिला हैं |
नए शहर में राम अमोल पाठक जी के पड़ोसी एक सज्जन व्यक्ति भरत मिश्रा और उनकी पत्नी राधा मिश्रा हैं, बड़े ही अच्छे लोग हैं, राम अमोल पाठक जी अपने पड़ोसियों की प्रशंसा करते नहीं थकते परन्तु अमरावती उन्हें ज्यादा पसन्द नहीं करती थी |
एक रोज सुबह जब राम अमोल पाठक जी नाश्ता कर रहे थे कि तभी दरवाजे पर टक टक की आवाज आई, अमरावती ने जब जाकर दरवाजा खोला तो वह बहुत खुश हुई क्योंकि दरवाजे पर उसका सगा भाई महेश था |
अमरावती ( खुश होकर ) - महेश अचानक तुम यहां कैसे ?
महेश ( मुस्कुराकर ) - अमरावती से मैं अपनी बहन और जीजा जी से मिलने आया हूं और क्या |
महेश जूते उतारता है बैग नीचे रखता है फिर दीदी और जीजाजी के पाँव छूकर प्रणाम करता है |
राम अमोल पाठक जी नाश्ता कर रहे होते हैं |
राम अमोल पाठक जी ( महेश से ) - साले साहब अचानक कैसे आना हुआ ?
महेश ( राम अमोल पाठक जी से ) पास के ही के शहर में कंपनी वालों की तरफ से मेरी ट्रेनिंग थी तो सोचा की आप लोगों से मिलता चलूं |
राम अमोल पाठक जी ( महेश से ) - बहुत अच्छा किया |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - चंदन की मां ! साले साहब का भी नाश्ता लगाओ |
राम अमोल पाठक जी ( महेश से ) - अभी मेरा जाना जरूरी है लौटकर मिलता हूं |
महेश राम ( अमोल पाठक जी से ) - जी बिल्कुल जीजाजी |
राम अमोल पाठक जी के जाते ही अमरावती भाई महेश के लिए नाश्ता लगाती है, भाई महेश नाश्ता कर रहा होता है और दोनों भाई-बहन गप्पेें मारने में मशगूल हो जाते हैं |
तभी राम अमोल पाठक जी घर वापस लौट कर आते हैं और अपने दफ्तर के बैग से एक पोटली निकालकर अमरावती को देते हुए कहते हैं |
राम अमोल पाठक जी अमरावती से चंदन की मां यह कुछ पैसे हैं ऑफिस में सोशल वर्क के काम के लिए दिए हैं इनका इस्तेमाल मैं शाम में करूंगा इन्हें संभाल के रख दो |
अमरावती उस पोटली को लेकर जा रही होती है राम अमोल पाठक जी जोर डालकर बोलते हैं |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से) - चंदन की मां ! इसे खासतौर पर संभाल कर रखना यह ऑफिस के पैसे हैं |
पहले तो अमरावती अलमारी की दराज में सीधे ही रख रही थी पर उसे लगा कि मुझे ज्यादा संभाल कर रखना चाहिए तो अलमारी मैं एक की गठरी थी उसके अंदर उस पोटली को डाल दिया |
राम अमोल पाठक जी दफ्तर चले गए, अमरावती आंगन में कपड़े धो रही थी और उसका भाई महेश अपने भांजे चंदन के साथ खेल रहा था तभी दरवाजे पर दस्तक हुई | महेश ने दरवाजे की तरफ जाकर देखा तो एक औरत खड़ी थी | उस औरत ने बोला मैं धोबिन हूं भाभीजी को कपड़े देने को बोलो |
महेश ( अमरावती से ) - बहना कपड़े इस्त्री करने को देने हैं क्या धोबिन आई है |
अमरावती ( धोबिन से ) - ( तेज आवाज मैं ) आंगन से ही बोली उषा कल कपड़े ले जाओगी क्या ?
धोबिन ( अमरावती से ) - दीदी कोई कपडा धुला हो तो दे दो |
अमरावती ( भाई महेश से ) - भाई महेश अलमारी में एक लाल रंग की गठरी है उसमें जीजाजी के के धुले शर्ट हैं, ज़रा वो दे दो धोबिन को |
अमरावती का भाई महेश अलमारी से लाल गठरी निकाल कर धोबिन को दे देता है |
राम अमोल पाठक जी दफ्तर से लौटते हैं, उनके साथ दफ्तर का एक और स्टाफ भी होता है, राम अमोल पाठक जी उस स्टाफ को बरामदे में बिठा कर हैं और अमरावती से कहते हैं |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - चन्दन की माँ ! वो पैसे ज़रा निकल को दे दो |
अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) - जी ! देती हूँ |
10-15 मिनट तक जब अमरावती पैसे ढूंढती रही तो राम अमोल पाठक जी अंदर आए तो उन्हें पता चला की पैसे नहीं मिल रहे हैं तो स्टाफ से उन्होंनें कहा |
राम अमोल पाठक जी ( स्टाफ से ) - आप चिंता ना करें पैसे मैं ही पहुँचा दूंगा |
स्टाफ ( राम अमोल पाठक जी से ) - जी जरूर |
स्टाफ के जाने के बाद राम अमोल पाठक जी और अमरावती चिंता में थे कि आखिर पैसे कहाँ गए ?
राम अमोल पाठक जी से को चाय देते हुए अमरावती बोलीं |
अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) - आपको महेश के सामने मुझे पैसे नहीं देने चाहिए थे, और पैसे दे भी रहे थे तो उसके सामने आपको बताना नहीं था कि उसमें पैसे हैं |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - क्या मतलब ?
अमरावती ( राम अमोल पाठक से ) - हो ना हो वो पैसे महेश ने ही चुराए हैं, घर पर भी उसने दो बार आठ आने चुराए थे |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - क्या चन्दन की माँ, कुछ भी कहती हो | अपने ही भाई के लिए ऐसा सोचती हो, बचपन में दो बार चोरी की तो क्या वो चोर बन गया | हमें अपनी सोच को सकारात्मक रखना चाहिए नकारात्मक नहीं |
अमरावती ( राम अमोल पाठक से ) - मैं बिलकुल ठीक कह रही हूँ | आने दो उसकी खबर लेती हूँ |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - नहीं- नहीं, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी, मैं इंतेज़ाम कर के पैसे दे दूंगा जिसे देने हैं |
तभी बाजार से महेश आता है, महेश को देखते ही अमरावती बोले पड़ती है |
अमरावती ( महेश से ) - एक बात भाई !
बीच बात में लपक कर राम अमोल जी बोल पड़े |
राम अमोल जी ( महेश से ) - साले साहब दीदी पूछ रही हैं कि ट्रेन कितने बजे है ?
महेश ( राम अमोल पाठक जी से ) - 9 बजे, मुझे आधे घंटे में निकलना पड़ेगा |
राम अमोल पाठक जी ने अमरावती को अपनी बात कहने नहीं दी इसलिए अमरावती ने नाराज़ होकर राम अमोल जी को देखा और फिर खाना लगा दिया | खाना खाने के बाद महेश स्टेशन के लिए निकल पड़ा |
महेश के जाने के बाद अमरावती अपने आप ही बड़बड़ाती रही |
अमरावती ( बड़बड़ाते हुए ) - पूछ ली होती तो उसे पैसे देने पड़ते | बिना बात ही बिच में कूद पड़े और पैसे का नुकसान करा दिया, ऐसे लोग महान नहीं बेवकूफ होते हैं |
राम अमोल पाठक जी ( मुस्कुराते हुए अमरावती से ) - कुछ कह रही हो क्या चन्दन की माँ ?
अमरावती ( नाराज़ होते हुए राम अमोल पाठक जी से ) - आपकी महानता के गुणगान गए रही हूँ |
अगली सुबह रोज़ की दिनचर्या शुरू होती है | राम अमोल पाठक जी नाश्ता कर रहे होते हैं कि दरवाजे पर थक-थक की आवाज़ होती है |
धोबिन दरवाजे पर थी और दरवाजे पर से ही उसने बोला |
धोबिन - मैं धोबिन उषा, भाभी जी ने कपड़े दिए थे उन कपड़ों में ये पैसे की पोटली मिली |
पैसे की बात सुनते ही अमरावती बाहर आई और और धोबिन से पैसे की पोटली ली |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - चन्दन की माँ उषा को ईमानदारी के लिए 50 रुपये इनाम तो दो |
उषा धोबिन - अरे नहीं भैया, ईनाम की क्या बात है, मैं चलूंगी |
और धोबिन चली गई |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से हंसकर ) - महेश ने तो पैसे की पोटली को कपड़ो में नहीं डाला होगा चंदन की माँ, ये तुम्हारा ही करामात है |