किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती करीब 64-65 वर्ष की रही होंगी | झारखण्ड के एक छोटे से शहर सूरजगढ़ में अमरावती अपने पति राम अमोल पाठक के साथ रहती थी |राम अमोल पाठक जी और अमरावती के चार बच्चे थे - बेटी पूर्णिमा की शादी पास के शहर में ही हुई थी, बड़े बेटे चन्दन की शादी मोना से हो चुकी थी, उनके दो बच्चे थे, मंझले बेटे नंदन की भी शादी ईशा से होचुकी थी और उसका भी बच्चा था, छोटे बेटे की शादी तो नहीं हुई थी पर वह भी बाकि दोनों भाई की तरह महानगर में रहता था क्योंकि प्राइवेट नौकरी थी | पर उस रोज़ राम अमोल पाठक का निधन हो गया था, घर के सदस्य यानि राम अमोल पाठक जी और अमरावती के बच्चे और रिश्तेदार एक-एक कर घर पहुँच रहे थे | मोहल्ले के भी लोग दुःख प्रकट करने आ रहे थे, सभी को अमरावती के प्रति सहानुभति थी क्योंकि उसने सुहाग खोया था |
घर पर सभी राम अमोल पाठक जी की अच्छाइयों की बातें कर रहे थे क्योंकि राम अमोल पाठक जी वाकई बिल्कुल सरल, सच्चे और हंसमुख इंसान थे | जटिल स्वभाव की अमरावती के चेहरे पर अक्सर घमंड का भाव रहता था पर अब उस चेहरे पर सन्नाटे का भाव था और लोग खुद-ब-खुद उस भाव को दुःख की भावना से जोड़ ले रहे थे |
देखते-देखते क्रिया-कर्म समाप्त हो गया, बच्चों के वापस लौटने का समय हो गया | अमरावती ने बेटी पूर्णिमा के घर जाने का निर्णय लिया और कुछ महीने बेटी के घर पर रही | पर बेटी बहुत छोटे से घर में रहती ताहि तो अब अमरावती को बेटी के घर रहने में तकलीफ होने लगी लगी | ऐसे में बड़े बेटे चन्दन ने अपने घर चलने की बात कही | पहली बार अपने स्वभाव के विरुद्ध बेटे के घर जाने के लिए तैयार हो गयी क्योंकि वी किसी भी हाल में सूरजगढ़ जाने को तैयार नहीं थी |
अमरावती अपने बड़े बेटे चन्दन के घर चली तो गई, से लाचार अमरावती या तो बड़ी बहु मोना के साथ दुर्व्यवहार करती या फिर अपनी बेटी पूर्णिमा और मँझले बेटे नंदन को फ़ोन लगाकर मोना की बुराइयाँ करती | ये सिलसिला कुछ महीनों तक चलता रहा पर सूरजगढ़ लौटने का वक़्त आ गया |
अमरावती सूरजगढ़ पहुँच गई, अपने मकान के आगे खड़ी थी, पर उसके पाँव घर की तरफ बढ़ ही नहीं रहे थे | अमरावती जैसी जटिल औरत के चेहरे पर भय भाव रहता था |
एक शाम अमरावती घर के बाहर बैठी थी तभी राम अमोल पाठक जी के मित्र शशी वहां से गुज़र रहे थे अमरावती को बैठा देख वहां समाचार पूछने आ पहुंचे | अमरावती उन्हें देख थोड़ा ठिठक गई, शशि जी ने जाते हुए अमरावती से कहा - भाभी आपके डर की वजह मैं समझता हूँ, बेहतर होगा कि आप मौलवी को एक बार घर पर बुलवा लें |
शशी के जाते ही अमरावती ने राहत की सांस ली |
दरअसल बात ये थी कि राम अमोल पाठक जी की तबियत बिगड़ रही थी तो उन्होंने अमरावती को बताया था का साइन में तेज़ दर्द है डॉक्टर के पास जाना ज़रूरी है पर अमरावती ने राम अमोल पाठक जी की तबियत को अहमियत नहीं दी | आखिरकार राम अमोल पाठक जी मित्र शशी जी को लेकर डॉक्टर के पास पहुंचे | डॉक्टर ने फ़ौरन अस्पताल में भर्ती होने की हिदायत दी | राम अमोल पाठक जी घबराए से अमरावती के पास पहुंचे और अस्पताल में भर्ती होने वाली बात बताई | शशि जी भी वहां मौजूद थे अमरावली गुस्से में बड़बड़ाने लगी, कहने लगी कि तुमने फालतू का नाटक लगा रखा है | स्वार्थी और निष्ठुर अमरावती ने राम अमोल जी से कहा - कुछ ना हुआ है तुम्हें, अस्पताल में भर्ती होने ज़रूरत नहीं है बिल्कुल भी, बस गैस हो रखा है तुम्हें और कोई बात नहीं है | खाना खाकर दवाई खाओ और सो जाओ | बिचारे अमोल पाठक जी उस रोज़ भी कुछ नहीं बोले और रात का खाना खाने लगे, खाना अभी ख़त्म भी ना हुआ था और राम अमोल पाठक जी गिर पड़े और उनकी जान चली गई |
अगले रोज़ अमरावती ने मौलवी को बुलाया, मौलवी ने कहा कि घर बांध दूंगा तुम्हारा भय दूर हो जाएगा पर तुम्हें पूरी बात बतानी पड़ेगी उस हिसाब से मैं घर बांधूंगा | तुम्हें भय नहीं महसूस होना चाहिए क्योंकि जाने वाला तुम्हारा पति था इसलिए मुझे पूरी बात बताओ | तब अमरावती ने मौलवी को बताया कि मैंने जान-बुझ कर मैंने अपने पति का ईलाज नहीं होने दिया था, इतना ही नहीं मेरी आँखों के सामने ही जान गई, और मैंने सोच-समझकर उनकी जान बचाने की कोशिश ही नहीं की |
अमरावती के मुँह से निष्ठुरता की कहानी सुन मौलवी ने आश्चर्य से अमरावती को देखा और घर के चारों ओर सुरक्षा बंधन बाँध चला गया |