किस्सा है अमरावती का, किस्सा कोई बरसों पुराना नहीं बल्कि हाल-फ़िलहाल का है | अमरावती जो 72-73 वर्ष की हैं | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी प्रकाश पब्लिकेशन में एडिटर थे, बड़े ही सज्जन और ईमानदार व्यक्ति थे, सभी की नज़रों में उनका बड़ा सम्मान था परन्तु अमरावती राम अमोल पाठक जी ठीक विपरीत थी | राम अमोल पाठक जी की नौकरी बहुत कम उम्र में चली गई | पर बड़े संयम और संगर्ष से आख़िरकार राम अमोल पाठक जी अपनी बेटी पूर्णिमा की पढ़ाई पूरी कर शादी करवाने और तीन बेटों बड़े बेटे चन्दन, मंझले बेटे नंदन, छोटे बेटे चम्पक को अपने पैरों पर खड़ा करने में सफल रहे | पर आज से कोई दस बरस पहले राम अमोल पाठक जी गुज़र गए |
राम अमोल पाठक जी के गुज़रने के बाद अमरावती का जीवन कुछ सालों तक ठीक चला, पर अब अमरावती चिंतित रहने और परेशान रहने लगी |
ईश्वर ने तो अमरावती को किरदार तो कौसल्या का दिया था परन्तु पर अमरावती को किरदार तो मंथरा का ही पसंद था इसलिए कर्म भी मंथरा वाले ही थे |
कहानी के आगे बढ़ने के पूर्व पिछले पन्नों को याद करना ज़रूरी है, इसलिए थोड़ा फ्लैश बैक | अमरावती ने शुरुआत के करीब दस सालों तक बड़े बेटे चन्दन जो कि सीधे सरल स्वाभाव के हैं उसकी बीवी मोना पर ढेरों अत्याचार किया था तो एक वक़्त के बाद मोना ने ऐसी सास और ऐसे ससुराल से जरुरी दूरी बनाए रखना सही समझा |
मंझला बेटा नंदन अमरावती के हाथों की कठपुतली था, अमरावती जो भी उलटी-पुलटि बात या व्यवहार अमरावती नंदन को सिखाती, नंदन उन सीख को ही परम ज्ञान मान कर वैसा ही व्यवहार करता, और बहु ही आसानी से अमरावती अपनी मंझली बहु ईशा की ज़िन्दगी में बराबर ज़हर घोलती रहती |
अमरावती का छोटा बेटा बड़े भाइयों की गलतियों से सबक ले चूका था और माँ (अमरावती ) के पैतरों से पूरी तरह परिचित था, इसलिए चम्पक के आगे अमरावती की दाल नहीं गलती | और तो और चम्पक की बीवी बड़े सख्त स्वाभाव की थी और चम्पक अपनी बीवी की बात कभी नहीं काटता बल्कि हाँ में हाँ मिलाता |
अमरावती अक्सर अपने छोटे-बड़े मुद्दों पर अपनी बेटी पुर्णिमा से ही चर्चा-परिचर्चा (चुगलियां) किया करती थी | एक शाम अमरावती ने परेशान होकर पूर्णिमा को फ़ोन मिलाया |
अमरावती (पूर्णिमा से) - हेलो !
पूर्णिमा (अमरावती से) - मां कैसी हो ??
अमरावती (पूर्णिमा से) - (परेशान होकर)तुम मेरा हाल क्या पूछ रही हो ? मेरे तो बुरे दिन शुरू हो गए हैं,
मुझे तो लगता था कि इनके जाने के बाद कम से कम पैसे होंगे मेरे हाथों में, बेटे मेरे हाथों
में पैसे दिया करेंगे | पर मेरा हाल भिखारियों वाला हो गया है |
तीन-तीन बेटे हैं पर मेरा हाथ खाली का खाली |
पूर्णिमा (अमरावती से) - ((आशंका से) माँ कहीं मुझे पैसे नहीं देने की खातिर बहाना तो नहीं कर रही हो ??
अमरावती (पूर्णिमा से) - पागल हो गयी हो क्या ?? मैं तुमसे कहाँ कुछ छुपाती हूँ |
पूर्णिमा (अमरावती से) - हक़ से तीनों बेटों से कहा करो पैसे भेजने को |
अमरावती (पूर्णिमा से) - कोई एक पैसे भेज देता है, तो बाकि दोनों उसके पैसे भेजने का गाना गाते हैं |
पूर्णिमा (अमरावती से) -(झुंझलाकर) माँ सीधे-सीधे बताओ आखिर बात क्या है ? चम्पक ने पैसे भेजे थे ना ?
अमरावती (पूर्णिमा से) - हाँ भेजा था ना चम्पक ने, पर उसने नंदन और चन्दन को ढिंढोरा पीट दिया, वो दोनों बस
एक ही बात की रट लगाते हैं कि चम्पक ने तो पैसे भेजे थे ना |
पूर्णिमा (अमरावती से) -(पूरी उत्सुकता से) - माँ मैंने इतिहास में MA किया है | अब समय आ गया मेरे ज्ञान के
सही इस्तेमाल हो |
पूर्णिमा (अमरावती से) -(पूरी उत्सुकता से) माँ मेरी बात ध्यान से सुनो, अपने तीनो लाडलों से ऐसे बात करो कि उन्हें
लगे बस वो ही होनहार है बाकी दोनों भाई निकम्मे हैं |
पूर्णिमा (अमरावती से) -(पूरी उत्सुकता से) माँ तुम समझ रही हो ना ! हमें फूट डालो और शासन करो की नीति
अपनानी पड़ेगी |
अमरावती (पूर्णिमा से) - (पूरी उत्सुकता से) अब तुम बस देखती जाओ मेरा कमाल |
बस क्या था अमरावती ने सडयंत्र शुरू कर दिया, एक-दो साल तक तो सब कुछ बड़ा मज़ेदार रहा अमरावती के लिए | पर जल्द ही बुरी नियत से बनाई गयी नीति के नतीजे आने लगे, वो कहते हैं ना साइड इफ़ेक्ट |
बड़े बेटे चन्दन और बहु मोना न किनारा कर लिया क्योंकि शायद उनलोगों ने अमरावती इरादा भांप लिया |
छोटे बेटे चम्पक की बीवी साधना को अमरावती की भी अम्मा थी, अमरावती का पाला अगर उस से पड़ता तो वो खूब नाच नचाती और बीटा चम्पक भी अपनी बीवी की हाँ में हाँ मिलाता |
बिचारि का इकलौता मनोरंजन और सहारा मंझला बेटा नंदन ही रह गया | अमरावती ने बचपन से नंदन को ऐसी सिख दी थी कि बस तीन लोग ही काबिल और उसके सगे भी, एक तो वो खुद, दूसरी उसकी माँ और बहन पूर्णिमा |
बाकि सब उसके दुश्मन हैं सभी से दुर्वव्हार करो | अपनी माँ और बहन पूर्णिमा की सीख सीखकर अपने और अपनों के ही ही जीवन में ज़हर घोल लिया | अपने परिवार को उसने इतना परेशान किया कि उसके बीवी बच्चे भी उस से दूर हो गए और मेट्रो सिटी की नौकरी छोड़ माँ अमरावती के पास घर आ बैठा |
अमरावती का पास यहाँ उल्टा पड़ गया जो दुर्व्यवहार और बदतमीज़ी अमरावती ने दूसरों के संग करने को सिखाई थी, वो ही बद्तमीज़याँ और दुर्व्यवहार माँ से करने लग पड़ा | अमरावती की दी हुई सालों की सीख तो अब नंदन का स्वाभाव थी |
अमरावती ने जो गड्ढा दूसरों के लिए खोदा था वो खुद ही उसमे गिर पड़ी है |
ना तो वो छोटी बहु साधना के साथ रह सकती है और ना ही बड़ी बहु मोना के साथ | छोटी बहु साधना के पास रहना पड़े तो उसके बच्चों की सेवा करनी पड़ती है, और तो और वो फ़ोन भी जब्त कर लेती पूर्णिमा से चुगलियाँ भी नहीं करने देती | बड़ी बहु मोना के पास किस मुँह से जाए तो वहां भी नहीं जा सकती |
बेचारी अमरावती करे तो करे क्या ? बेटे नंदन की बद्तमीज़यों और दुर्व्यवहार से अमरावती का जीवन बड़ा मुश्किल हो गया है | जब नंदन सूरजगढ़ वाले घर में होता है तो अमरावती भागकर गांव चली जाती, जब नंदन गांव आ जाता है तो भागकर वापस सूरजगढ़ आ जाती | जब नंदन वापस सूरजगढ़ आ जाता है तो भागकर बेटी पूर्णिमा के यहाँ पहुँच जाती | बिचारी अमरावती अपने कर्मों की सजा भुगत रही है और दर-बदर भटक रही है | अपने बेटे को दी हुई बुरी सीख ने उसे सबक सीखा दिया अमरावती को |
- तीषु सिंह ‘तृष्णा’