किस्सा कोई दो-तीन साल पुराना है, किस्सा है 72-73 वर्ष की अमरावती का | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी नहीं रहे, उनको गुजरे कोई 7-8 साल हो चुके हैं | दुनिया अमरावती को सहानुभूति की नजर से देखती है परंतु अमरावती का नजरिया थोड़ा अलग है |
अमरावती सुबह-सवेरे आम के पेड़ की छांव में बैठ कर चाय पी रही थी तभी पिछली गली वाले गुप्ता जी की बेटी अमरावती के घर के सामने से गुजर रही थी |
नम्रता ( मुस्कुराकर ) - प्रणाम चाची जी कैसी हैं, मैं मां को अपने साथ बनारस ले जा रही हूं, घर पर अकेले रहना तो मुश्किल है ना ? पता नहीं आप कैसे रह जाती हैं, आपके लिए सोच सोच कर मुझे बहुत बुरा लगता है |
और नम्रता वहां से चली जाती है |
अमरावती ( बड़बड़ाते हुए) - चल जा गुप्ता की बच्ची ! तुझे क्या पता, मैं बहुत मजे में हूं, मुझे किसी की जरूरत नहीं है मैं रानी हूं यहां की, पूरा राजपाट मेरा है |
दरअसल राम अमोल पाठक जी के गुजर जाने के बाद अमरावती खुद को पति के बनाए हुए साम्राज्य की महारानी समझती थीं और अमरावती की प्रजा थे - आम के तीन पेड़, कटहल के दो पेड़, तीन बहुएँ और प्रतिज्ञा जो घर की साफ सफाई करती थी घर की देखभाल करती थी और अमरावती के घर के पीछे बने कमरे में अपने पूरे परिवार के साथ रहती थी |
आम के पेड़ की छांव अमरावती को बड़ी प्रिय थी, पूरे साल हर मौसम में अमरावती आम के पेड़ के नीचे ही बैठी नजर आती, चाहे सुबह दोपहर हो या शाम | आम की छांव में बैठ अपनी बेटी पूर्णिमा को फोन मिलाती और अपने साम्राज्य को चलाने के नीति-नियम बनाती, अपनी बेटी पूर्णिमा की टिप्पणी और सलाह के आधार पर निर्णय लेती |
पूरे वर्ष अमरावती को गर्मियों के मौसम का इंतजार रहता, गर्मियों का मौसम अमरावती के लिए ढेरों खुशियां भी लेकर आता और साथ ही साथ परेशानियां भी, पूछो कैसे ?
गर्मियों के मौसम में अमरावती के बागान में आम और कटहल फलते, यह फल ही थी उनकी खुशी की वज़ह | और यह फल ही अमरावती की परेशानी की भी वज़ह भी थे क्योंकि अमरावती को लगता कि पूरी दुनिया उनकी आम और कटहल के पीछे पड़ी है |
अप्रैल का महीना था पेड़ में छोटे-छोटे आम फल चुके थे, कटहल के पेड़ पर भी ढेरों कटहल फले थे | अमरावती को सुबह-शाम कटहल और आम की चिंता लगी रहती, प्रतिज्ञा बहुत इमानदारी से अपना काम करती, घर के किसी भी फल को हाथ तक नहीं लगाती | अमरावती को प्रतिज्ञा पर तनिक भी भरोसा ना था, बेचारी रोज सुबह उठती और कटहल के दोनों पेड़ों में फले कटहल की गिनती करती, शाम ढलने के पहले कटहल की दोबारा गिनती करती | रोज जब गिनती बराबर मिलती तब जाकर अमरावती को चैन की नींद आती |
आम ने भी अमरावती को कम परेशान नहीं कर रखा था, आम की एक बेईमान डाल चारदीवारी के बाहर चली गई थी और वो भी पड़ोसन के घर की ओर | और तो और उसी डाल पर सबसे ज्यादा आम थे | पूरी दोपहर अमरावती उस डाल की पहरेदारी करती, अमरावती को पड़ोसन पर शक था, उसे भय था कि कहीं उनकी पड़ोसन डाल में फले सारे आम गायब न कर दे |
एक और महीना बीत गया, अब आम और कटहल पकने वाले थे |
आखिरकार अमरावती ने बेटी पूर्णिमा से इस विषय में चर्चा की |
पूर्णिमा ( अमरावती से ) - इस समस्या को जड़ से खत्म करो, आम और कटहल तुड़वा लो और घर में रखवा लो |
अमरावती ( पूर्णिमा से ) - पूर्णिमा तुम्हारी सलाह तो सही है, आम तुड़वा लेती हूं, पर कटहल को तो तुड़वाया नहीं जा सकता अभी |
अमरावती अपनी पहली समस्या पड़ोसन का हल निकालती है, सुबह 4:00 बजे प्रतिज्ञा का दरवाजा खटखटाती है और प्रतिज्ञा के बेटों को पड़ोसन के घर की ओर गई डाल के सारे आम तोड़ने को कहती है | और तो और आम तोड़ने के बाद पूरी डाली कटवा देती है |
अमरावती की एक समस्या तो ख़त्म हुई | अब दूसरी समस्या थी प्रतिज्ञा |
अगली सुबह प्रतिज्ञा के कमरे के बाहर वाले पेड़ के सारे आम प्रतिज्ञा के बेटों से तुड़वा लेती है, उनसे सारे आम अपने घर मंगवाती है, सारे अच्छे आम अपने लिए रख लेती है और एक थैली में सारे सड़े-गले आम भर कर प्रतिज्ञा के घर पहुंचाती है और कहती है |
अमरावती ( प्रतिज्ञा से ) - प्रतिज्ञा बड़े मीठे-मीठे ढेर सारे आम दिए हैं मैंनेतुम्हें खा लेना |
प्रतिज्ञा सड़े गले आम से भरे थैले को देखती है और मुस्कुराती है पर कुछ कहती नहीं |
अमरावती अपने दो खास समस्याओं का हल बड़ी खुश थी तभी दरवाज़े के खड़कने की आवाज हुई |
अमरावती ने बाहर की ओर झांक कर देखा तो मंझला बेटा नंदन बीवी-बच्चे समेत पहुंचा हुआ था |
मंझले बेटे को सपरिवार देखकर अमरावती के चेहरे की हवाइयां उड़ गई |
अमरावती ( मन ही मन में नाराज़ होते हुए ) - अभी-अभी तो समस्या ख़त्म हुई थी कि तब तक आम के और भी दावेदार आ टपके |
हर वक्त अमरावती के चेहरे पर परेशानी रहती, बेटे-बहू के साथ बर्ताव भी अच्छा न था क्योंकि बेटे-बहू तो आम के दुश्मन दिखाई दे रहे थे अमरावती को |
अवसर मिलते ही आम की छांव में पूर्णिमा को फोन मिलाया अमरावती ने अपनी समस्या पर चर्चा परिचर्चा की,
पूर्णिमा ने पूर्णिमा ( मन ही मन में ) - सही मौका है माँ को आम लेकर यहीं बुलवा लेती हूँ |
पूर्णिमा ( अमरावती से ) - मां ! तुम एक काम करो सारे पेड़ के आम तुड़वा लो और अच्छे-अच्छे आम भरकर यहां चली आओ |
अमरावती ( पूर्णिमा से ) - चल-चल जल्दी फोन रख, नंदन इधर ही नहीं आ रहा है |
फोन रखने के बाद अमरावती बड़बड़ाते हुए कहती है |
अमरावती ( बड़बड़ाते हुए ) - वाह ! बिटिया रानी तुम तो बड़ी चतुर हो सारे अच्छे-अच्छे आम तुम खाओगी |
अमरावती अगली सुबह अपने बेटे नंदन को बताती है कि मैं पूर्णिमा के घर जा रही हूं और सबसे पहले यह सारे पेड़ के आम तुड़वाती है | बढ़िया वाले 40-50 आम अपने बेड बॉक्स में चादर की तरह बिछा देती है, फिर उस पर पुराने कंबल रखना शुरु करती है, 2-3 कंबल उस पर ढक देती है और बेड बॉक्स बंद कर देती है | बेकार से 10-15 आम बेटे-बहू के लिए रख छोड़ती है | पूर्णिमा के घर जाने की खातिर अपना सामान बांधती है और 15-20 आम एक थैले में रख लेती है |
अमरावती पूर्णिमा के घर जा रही थी पर वह बहुत खुश थी कि उसने ढेरों आम बचा लिए हैं, दो - तीन बाद बाद लौटकर सारे आम खाने वाली है |
पर पूर्णिमा के घर पहुंचते ही अमरावती को तेज बुखार हो जाता है, अमरावती का इरादा सिर्फ दो-तीन दिन ठहरने का था, बुखार की वजह से उसे 15-20 दिन पूर्णिमा के घर ही ठहर जाना पड़ता है |
अमरावती जब लौटकर आती है तो बेड बॉक्स में रखे सारे आम सड़ चुके थे और कंबल पूरी तरह गंदा हो चुका था |
देर रोज रात अमरावती सबके सोने के बाद अपने कमरे का दरवाजा बंद कर बेड बॉक्स खुलती है, रात के अंधेरे में अफ़सोस करते हुए, खुद को कोसते हुए , सड़े गले आम बाहर फेंकती है | अगली सुबह उठकर कम्बल धोती है |
अमरावती ने जाते हुए हिदायत दी थी कि कोई भी कटहल ना तोड़े, इसलिए किसी ने भी कटहल को हाथ तक नहीं लगाया और सारे कटहल पक-पक कर पेड़ से ज़मीन पर गिर गए थे | कटहल की हालत देख अमरावती का चेहरा देखने लायक था |