चलो जी एक और नया वर्ष जुड़ गया जीवन की कहानी में !
अनुभवों की नूतन कड़ी फिर एक मिली इस श्रंखला पुरानी में !!
कुछ खुशनुमा, ग़मगीन कुछ, लम्हे मिले हर मोड़ पर !
हो रही है अग्रसर जीवन डगर, सुख में या आँखों के पानी में !!
मैं करूँ जाहिर खुशी कैसे " विनय " या दुख करूँ !
हो गया जीवन बड़ा या कम हुआ एक साल फिर इस जिन्दगानी में !!
विनय मिश्रा