अपने और बेगाने में फर्क है बस इतना,
बेगाने देते साथ अपने देते देखो कितना!
चंद दिनों के मेले हैं जीवन के झमेले हैं,
ज्ञानी बन के भी हम न सीख सके जीना!
कुछ कमियां दिखती है अपने ही अंदर,
झूठ की दीवारों पे उछल रहे बन बंदर !
दिन प्रतिदिन तोड़ते हां विश्वास की डोरी,
अपने और बेगाने की सोच पाले हैं अन्दर!
स्वरचित मौलिक रचना
शैलेन्द्र गौड़
अम्बेडकर नगर (उत्तर प्रदेश)