आईना
विधा- मुक्तक
हक़ीकत बंया कर जाता हूँ,आईना जो ठहरा,
धोखे की चादर भी दिखती है,हो कितना पहरा!
अंजाम कुछ हो मेरा मुझे परवाह नहीं उसका,
धर्म कर्म पर अपने मजबूती से गडा हूँ मैं गहरा!!
गुस्से में मुझे तोडते मै टुकड़ो में दिखाता सच्चाई,
बडे प्रिय लगते मुझे जिनमें होती है नेकी अच्छाई!
मै आईना हूँ बताता रहूंगा तुम्हे चीख चीख कर. ..,
चेहरे पे चेहरे लगाना छोडो, छोडो सब तुम बुराई!!
शैलेन्द्र गौड़
अम्बेडकर नगर (उत्तर प्रदेश)