जी करता हैं कि
आसमान छू लें हम
क्या पता कल हों ना हों हम
आसमान को छूने की चाह हैं मेरी
बनकर पक्षी उड़े आसमान में
बादलों से बातें करो मैं
दूर हों के भी पास हों जाऊं मैं
इन हवाओं को क़रीब से जानू मैं
एक दिन हम आसमान को छू लेंगे
सबके करीब हों के भी सबसे दूर होंगे हम ।
✍️✍️ जयश्री पाण्डेय