shabd-logo

और पूरी हुई उसकी आसमान की ख्वाहिश

10 सितम्बर 2022

22 बार देखा गया 22

वह बरतन धोता जा रहा था होटल की रसोईं में और आसमान को निहारता जा रहा था। उसे आसमान निहारना बहुत अच्छा लगता। उसे अपने पिता के प्यार की गोद न मिली थी। वह कब के गुज़र गये थे उसे याद भी नहीं ,वह बहुत छोटा था तब न। मां ने उसे पाला था। पर होश संभालते ही उसे घर चलाने के लिये कुछ करना था ,मां बीमार रहती थी ।उसने होटल में बरतन धोने का काम कर लिया था।  उसे आसमान के तारे बहुत अच्छे लगते पर वह इतने बडे़ कोई राजा के यहां तो पैदा न हुआ था कि वह राजा उसे अपने प्यार की गोद दे। वह कोई ध्रुव भी न था जिसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने अपनी गोद में बिठाला था । न आजकल इतनी गहन तपस्या करने का जमाना था । वह तो बस बरतन धोते आसमान को बस निहार ही सकता था। उसे आसमान में उड़ते हवाई जहाज देख कर बहुत रोमांच होता।उसका भी मन होता कि वह भी ऐसे ही आसमान में उड़ सकता ।उसके बालमन की यही एक ख्वाहिश थी जो वह जानता था कि पूरी न हो सकती।

वह अपने बडे़ से फ्लैट की खिड़की से सामने रसोई में बरतन धोते उस लड़के को देखता । उसके मां, पापा दोनों बडी़ सी कंपनी में काम करते थे। सुबह से जाते तो रात को ही आते। घर पर बस आया होती जो उसका ख्याल रखती। वह आठवीं कक्षा में था। बहुत मेहनती था। उसे पढ़ना बहुत अच्छा लगता। क्लास में जब सर पढा़ते तो उसका भी मन होता कि वह भी किसी को पढा़ये। वह शीशे के सामने शीशे को ही पढा़ता ।क्या करता ? अपनी पढा़ई,होमवर्क करने के बाद बोर होता तो खिड़की से इस लड़के को ही देखता ।
एक दिन उसने देखा कि वह लड़का प्लेटें धोकर ले जा रहा था और उसके हाथ से प्लेटें छूट कर गिर गयीं और टूट गयीं । एक प्लेट का टुकडा़ हाथ मे लगने से उसके हाथ से खून भी बह रहा था। होटल मालिक प्लेट टूटने की आवाज सुन रसोईं मे आया और प्लेटें टूटी देखकर उसे बेतहाशा मारने लगा। उससे रहा न गया और वह दौड़कर वहां पहुंचा। "क्यों मार रहे हो उसे?उसने जानबूझ कर न तोडी़ हैं। सुनो एक फोन कर दूंगा कि बच्चे से काम करा रहे हो तो जेल में सड़ जाओगे। पता नहीं बच्चों से काम कराना कानूनन अपराध है?मेरे सर बताते हैं। और वह बच्चे का हाथ पकड़कर बोला "तुम चलो मेरे साथ"। "हां हां ले जाओ। मैंने नहीं इसे बुलाया था। ये ही आया था मेरे पास कि काम देदो"।
वो उसे अपने कमरे में लेकर आया और पट्टी करने लगा। "तुम मुझे यहां क्यों ले आये? मैं मार खा लेता पर नौकरी से हाथ तो न धोना पड़ता?अब मैं कहां से पैसे लाऊंगा ,अपना घर चलाने को,मां का इलाज कराने को"।
"तुम्हें वहां काम करने की जरूरत नहीं। तुम वहां कितना कमा लेते थे?"उसने पूछा ।"पांच सौ रुपये।" "बस! मेरे पापा तो मुझे पांच हजार रुपये पाॅकेट मनी देते हैं ,वो जानते हैं कि उनका बेटा समझदार है ,पैसे का सही उपयोग करना जानता है। वो पैसे मैं तुम्हें दे दूंगा"। "नहीं,नहीं मां कहती है कि किसी से बिना काम के पैसे नहीं लेने चाहिये। मैं काम करूंगा तभी पैसे लूंगा"। " तुम्हें काम करना है? ठीक है मैं तुम्हे काम दूंगा जिसे तुम्हे पूरी इमानदारी से करना होगा।बोलो करोगे?" जी करूंगा पर काम क्या है? । तुम्हारा काम है आज से जो मैं पहनता हूं वो पहनो,जो मैं खाता हूं वो खाओ , यहां मैं रहता हूं यहां रहो अपनी मां के साथ,और तुम्हारा सबसे जरूरी काम है मैं तुम्हें पढा़ऊंगा और तुम पूरी इमानदारी से पढो़गे।
रात में उसके मां,पापा आये तो उसने सवाल उठाया " मां,पापा ,मेरे सर बताते हैं कि बालमजदूरी अपराध होता है,पर मजबूरी में आकर मां,बाप अपने बच्चों से काम कराते हैं,और कुछ बच्चे भी मजबूरी में काम करते हैं।क्या ऐसे बच्चों के लिये हम कुछ न कर सकते? हमारे सर हमें सिखाते हैं कि पैसा तभी सार्थक होता है जब वह किसी जरूरत मंद के काम आ सके वरना चाहे जितना अमीर हो क्या फायदा। पापा हम ऐसे बच्चों के लिये कुछ कर सकते हैं ना?" उसके मम्मी पापा आश्चर्यचकित रह गये। जीवन की भागदौड़ वाली जिन्दगी में उनका इस तरफ ध्यान ही न गया था कि हमें अपने साथ साथ दूसरों की भी मदद करनी चाहिये। वो बोले जरूर कर सकते हैं ।बताओ क्या और कहां से शुरू करें। उसने फिर उस बच्चे को बुलाया जिसे वो उसकी मां के साथ घर ले आया था और सारी बात बताई। उसके मां पापा ने खुश होते हुये कहा कि आज से आप दोनों यहीं रहेंगे । और मैं कल ही आपके बच्चे का स्कूल में दाखिला करवाता हूं।
वह अगले दिन छुट्टी लेकर अपने बच्चे के स्कूल गये और उस बच्चे के एडमिशन की बात की । वह बोले अब एडमिशन का समय निकल चुका है। अगले साल करा दीजिये।
अब वह बच्चा उस बच्चे को घर पर खुद अक्षर ज्ञान कराने लगा। वह बच्चा बहुत तीव्र बुद्धि का था जो एक बार पढ़ लेता वह भूलता नहीं।
समय बीत रहा था और अगला साल आ चुका था ।उस बच्चे को लेकर उसके पिता उसका एडमिशन कराने ले गये।उसका टेस्ट लिया गया तो उसे कक्षा तीन तक का सबकुछ याद था ।  उसे सीधे कक्षा चार में प्रवेश मिला ।
समय बीत रहा था। उसकी रुचि पायलेट बनने मे थी ,
और आगे चलकर वह पायलेट बना। उसकी आसमान की ख्वाहिश पूरी हो गयी थी और इस सब का श्रेय डाॅ सुजीत राय को जाता था जो उसे अपने घर लाया था और उसे पढा़या था ,उसकी जिन्दगी बनाई थी।  उसका सपना पूरा करने में उसके साथ  था।

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

सुंदर सकारत्मक और प्रेरणादायक लिखा आपने 👌👍💐

15 सितम्बर 2022

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

15 सितम्बर 2022

धन्यवाद 🙏🙏

sayyeda khatoon

sayyeda khatoon

सुंदर भाव अभिव्यक्ति 👌👌👌👌

10 सितम्बर 2022

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

15 सितम्बर 2022

धन्यवाद 😊🙏

1

और वह चल दी आकाश की ओर

10 सितम्बर 2022
4
2
2

यहां खडी़ आकाश को क्या ताक रही हो? जिज्ञासा की मां ने पूछा। "मां आकाश के परे क्या है?"। मुझे क्या पता ? मैं वहां गयी थोडे़ हूं ,। मां मुझे जाना है आकाश के परे। "वहां क्या करेगी जाकर?"। मुझे जानना है क

2

आसमान की ख्वाहिश

10 सितम्बर 2022
2
2
0

वह एकटक धरा को निहारा करता । बेइंतहा प्यार जो करता था उससे । उसकी एक ही ख्वाहिश थी कि उसकी धरा साफ ,स्वच्छ और प्रदूषण रहित हो ,हरी भरी रहे।पर अपनी प्रियतमा धरा की दुर्दशा देख वह बहुत दुखी था।अपनी आंखो

3

और पूरी हुई उसकी आसमान की ख्वाहिश

10 सितम्बर 2022
2
2
4

वह बरतन धोता जा रहा था होटल की रसोईं में और आसमान को निहारता जा रहा था। उसे आसमान निहारना बहुत अच्छा लगता। उसे अपने पिता के प्यार की गोद न मिली थी। वह कब के गुज़र गये थे उसे याद भी नहीं ,वह बहुत छोटा

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए