एक रहस्य भरी कहानी
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Very nice.
पारिवारिक सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित बहुत सुंदर,रोचक,रोमांचक,हृदयस्पर्शी कहानी .....शानदार,मजेदार,धुआंधार लेखन ...अशेष शुभकामनाएँ !!!!!!!!!
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ .या देवी सर्वभूतेषू जाति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः टुनटुनटुनटुनटुनटुनटुनटुन "लता !!लता
जिज्ञासा व सभी लोगों ने देखा अपने माँ और पिता के साथ आते हुये लड़के का पैर ढ़पक रहा था जिससे साफ पता चल रहा था कि उसके पैर में पोलियो है !! वो अंदर आ रहे थे और लता व सुरेंद्र राय असमंजस में थे कि इन्
मालविका ने स्वयं को सँभाला किसी भाँति और सड़क पर आ गयी ।छोटू होटल पर काम कर रहा था ,उसने मालविका को सड़क पर देखा तो जान गया कि दीदी अनाथालय ही जा रही होंगी ,वो नित्य जाती हैं न शाम को ,आज सुबह ही जा
जिज्ञासा अपने कमरे में लेटी हुयी थी ।जयेश का मैसेज आया -टुन टुन टुन टुन उसने फोन उठाकर देखा तो जयेश का मैसेज था ।जिज्ञासा , सो गयी हो क्या !!!उसने मैसेज किया --नहीं जयेश बहुत मिस कर रहा हूँ
सुरेंद्र राय ने अपना फोन उठाकर धीरे से लता की तरफ देखा जो अभी भी गहरी नींद में सो रही थी ।सुरेंद्र राय अपना फोन लेकर दूसरे कमरे में चले गये । जिज्ञासा अपने कमरे में करवटें बदलती हुयी मुस्कुरा रही थी
रात हो गयी थी और लता रसोंई का काम समेटकर अपने कमरे में गयी जहाँ सुरेंद्र राय अपना फोन लिये बैठे कुछ कर रहे थे । "क्या देख रहे हो फोन में आप !!!"लता ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा । "कुछ नहीं लता , बस ऐस
सुरेंद्र राय फोन उठाकर दूसरे कमरे में जाकर बोले -लता है कमरे में ,मैं इस समय न आ सकता , तुम क्यों मेरे पीछे पडे़ हो ,कितने साल से तो तुम्हें रुपये पहुँचा रहा हूँ ,अब मेरा पीछा छोड़ दो न !!! उधर से आव
जब से सुनंदा ब्याह कर आई है उसे कहीं घुमाने न ले गया।अच्छा न लगता है कि पत्नी को घुमाने ले जा रहे हैं ,पर सुनंदा ने कभी शिकायत भी न की कि मुझे बाहर ले जाओ ,बाबू ,भाई साहब ,भाभी कहते रहते हैं कि इसे क
सुरेंद्र राय उससे कहते हुये अंदर आकर बैठ गया और आगंतुक अपने जूते बाहर उतार कर घर के अंदर आया और सुरेंद्र राय से बोला -"नमस्कार सर !!!" "नमस्कार राधे ,आओ बैठो !!" कहते हुये सुरेंद्र राय ने लता को आवाज
जिज्ञासा अपने कपडे़ निकाल निकाल पर बेड पर रख रही थी और प्रतीक्षा ,जिसको अपने कमरे में बुला लिया था ,उससे पूछ रही थी -"प्रतीक्षा ये सलवार सूट कैसा रहेगा !!!ये रखूं !!! ये वाला ,देखो बहुत हल्का तो न ल
अगली सुबह जब प्रतीक्षा उठी तो उसे आज सुबह बहुत सुहावनी लग रही थी ।घडी़ देखी तो पौने चार था ।नहा लूं जाकर फिर भगवान की आरती के समय नीचे पहुंच जाऊं नहीं तो मां कहेगी कि मालविका चली गयी तो प्रतीक्षा को आ
शाम हो गयी थी पर मनीषा ,मालविका ,व जिज्ञासा की बातें तो जैसे खत्म ही न हो रही थीं ।वसुधा शाम का नाश्ता बनाने में लगी थी और मनीषा की मां संध्या की आरती ,वंदन में रत थी । "अच्छा मालविका दीदी ,जिज्ञासा
सुबह मालविका व जिज्ञासा उठीं तो देखा कि बाकी सब तो अभी सो ही रहे हैं !!! "चलिये दीदी नहा धो लेते हैं !!"जिज्ञासा ने कहा । मालविका व जिज्ञासा अपने अपने कपडे़ लेकर नहाने के लिये चली गयीं और फिर नहाने क
शाम का समय था । मनीषा ,जिज्ञासा को अपने पास बिठाये अपने बचपन की फोटो दिखा रही थी । मनीषा की माँ भी वहीं बैठी थीं ।मालविका अभी आती हूँ कहकर बाहर काॅरीडोर में आ गयी ।टहल ही रही थी कि तब तक अनिमेष का फो
मालविका पिता की डायरी रखकर लेट गयी ।उसकी आँखों से आँसू झरने लगे और अतीत का वो दिन उसके समक्ष आकर खडा़ हो गया -- आज छोटे की विवाह की वर्षगांठ है , आज तो उसे अपनी पत्नी को लेकर कहीं घूमने जाना चाहिए ना
राधे चिल्लाया -मैडम जी और गाडी़ की स्टेयरिंग अपने हाथों से सही करते हुए कहा -"क्या कर रही हैं आप मैडम जी !!! अभी दुर्घटना हो जाती !!!सामने से आ रहा आदमी आपको न दिखा !!!! ध्यान कहाँ रहता है आपका ,,, गा
संध्या गहराकर रात में परिवर्तित होती जा रही थी ।राधे बाहर कमरे में तखत पर आँखें बंद करके लेट गया था । हा हा हा हा हा हा । राधे ने आँखें खोलीं फिर दो मिनट के बाद अपनी आँखें बंद कीं - हा हा हा हा हा हा
कवि संतोष कुमार 'छुहारा'बोले -" सुनिये बात तब की है जब मेरा ये लंगोटिया यार छठी कक्षा में पढ़ता था । देशभक्त चंद्र शेखर 'आजा़द 'का ये बहुत बडा़ भक्त ,,, इतना बडा़ कि स्कूल में अपना नाम चंद्र शेखर ही
राधे दो कप काॅफी लेकर आ रहा था ।अकस्मात उसके पैर के नीचे कुछ आया और वह एकदम से लड़खडा़या , और तभी पास वाली कुर्सी पर बैठा हुआ युवक चलने के लिए उठा और राधे के लड़खडा़ने के कारण उसके हाथों की काॅफी उस य
मैं पूजा को लेकर निकल गया था पर समस्या थी कि हम दोनों जाएं कहाँ ?? आधी रात का समय !!!अकेला होता तो कहीं भी सड़क किनारे पडा़ रहता पर पूजा !!! उसे तो ऐसे न रख सकता था !! रैनबसेरों में पडा़ रहता ।उसे
मनीषा का आज विवाह था और सब तैयारी में लगे हुए थे। मनीषा के मेंहदी लगने के बाद हाथों पर मेंहदी का रंग खुलकर बहुत गहरा आया था ।जिज्ञासा कहने में लगी पडी़ थी -"मनीषा दीदी ,जीजू आपको बहुत प्यार करेंगे ,रं
राधे मुँह धुलने चला गया ।मुँह धुलकर आया तो प्रतीक्षा बोली -"अब आओ पूजा के पास चलते हैं ।" राधे व प्रतीक्षा पूजा के पास गए ।पूजा ने उन दोनों को देखा तो उठने का प्रयास किया । "लेटी रहो ,लेटी रहो ,,, "
रात्रि को पराजित कर अपनी विजय पर प्रसन्न होती हुई भोर ,आसमान के अपने दरबार में आकर मुस्कुरा रही थी। खग कोलाहल करते हुए जैसे कह रहे थे -भोर साम्राज्ञी की जय हो । पवन ,भोर की विजय पताका के रूप में
राधे , कारचालक होना कोई गुनाह है क्या !!! तुम ये सोच निकाल दो ,तुम तो ऐसे सोचते हो जैसे कार चालक इंसान न होकर कीडे़ -मकौडे़ हों !!!प्रकुल ने बताया ना कि उसके घर वाले खुली सोच के हैं तो फिर तुम चिंता क
मनीषा उठी तो घडी़ पर उसकी निगाह गई। अरेऐऐ नौ बज गए !!! मैं इतनी देर तक सोती रही !!!यहाँ सब चार बजे उठ जाते हैं सर्वेश ने बताया था ,,, सासू माँ क्या सोच रही होंगी !!!! स्वयं से बड़बडा़ते हुए मनीषा जल्द
" क्या ?"राधे ने पूछा । "राधे मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ ।"प्रतीक्षा ने राधे का हाथ थाम कर कहा। "प्रतीक्षा, मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ ।मैं एक साधारण कारचालक हूँ और तुम मालिक की बेटी ,,, मेरा
लता और सुरेंद्र राय ने कमरे से निकल कर देखा तो एक युवक खडा़ था । सुरेंद्र राय दरवाजे के पास गए और बोले -"क्षमा चाहता हूँ ,मैंने आपको पहचाना नहीं !!" "जी ,मैं अंदर आकर बात कर सकता हूँ ??" वह बोला
रात्रि हो चुकी थी । मालविका अपने कमरे में थी और जिज्ञासा व प्रतीक्षा अपने कमरे में थीं । जिज्ञासा जयेश से बात करने में लगी थी वहीं प्रतीक्षा अपने कमरे में राधे को फोन पर बैंक की पढा़ई से संबंधित कुछ म
दिन में कैसे इतने रुपये लेकर आऊँ !! सब लोग हैं ,, तुम जो भी हो समझो !! दिन में फोन मत किया करो ,मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ ,घर में किसी को पता चल गया तो आफत हो जाएगी !! सुरेंद्र राय लगभग गिड़गिडा़ते
अनिमेष ने वो पेनड्राइव बहुत सँभाल कर अपनी तिजोरी के अंदर डाल दी और बाकी सामान व्यवस्थित करने लगा। तब तक दादी आ गईं और बोलीं -"घर तो तूने बहुत अच्छा लिया है और बडा़ भी खूब है ,,, पर इतने समय अनाथालय मे
मनीषा का दिल बैठने लगा और वो सोचने लगी - ये ,,,ये क्या हो गया !!!धोखा ,,,, बहुत बडा़ धोखा हुआ है उसके साथ !!!! ये ,,, ये कोई सर्वेश नहीं है ,,,, ये ,,, ये तो कोई मुन्ना है ,,, ये क्या हो गया मुझसे ,,,
मनीषा लेटी तो उसके ऊपर पानी की बूँदें गिरीं और मनीषा उठ बैठी । एक तो बिस्तर से सीलन की बदबू उसे परेशान किए थी और अब ये बूँदें उसे अचरज में डाल गईं और वो उठकर बैठते हुए बोली -"मुन्ना ये पानी की बूँदें
"सुन वसुधा , मुझे कुछ सही न लग रहा है ,,पता नहीं क्यों मन बहुत अजीब सा हो रहा है ,, मनीषा को फिर फोन मिलाऊँ !!!"मनीषा की माँ ने वसुधा से कहते हुए मनीषा को फिर फोन मिलाया । मनीषा चापाकल पर नहा रही थी
मंडप में पंडित जी पधार चुके थे और वो लता को जो सामान बताते जा रहे थे लता वो सामान लाकर उनके पास रख रही थी । मंडप में अनिमेष आकर बैठा था ,उसके पास उसकी माँ व दादी बैठी थीं और वहीं कुर्सी पर अनिमेष के
"जी ये तो बहुत हर्ष की बात है "सुरेंद्र राय ने कहा और लता को इशारा किया चाय -पानी लाने के लिए ।लता चाय-पानी लेने चली गई और जिज्ञासा जयेश को देखकर बोली -"हेलो जयेश ।" "हाय "जयेश ने मुस्कुराकर कहा ।स
मालविका ने फोन उठाकर कहा हेलो ! हेलो , मैं अस्पताल से बोल रही हूँ ,डाॅक्टर अनिमेष का फोन लग न रहा था तो विवश होकर बेसिक फोन पर किया । डाॅक्टर अनिमेष को आज रात के लिए उनके वरिष्ठ चिकित्सक संजीव खरे
मालविका ने देखा कि अनिमेष अंदर एक लड़की के साथ खडा़ है ।वो उनकी बातें सुनने लगी-- "आज देर कर दी आने में ,कब से तुम्हारी राह देख रही थी ,देखो आज तुम्हारी पसंद का बादाम का हलवा बनाया है मैंने !!"
मालविका ने देखा कि अनिमेष के साथ वह लड़की भी है।मालविका सोचने लगी - बडे़ समय बाद तो ताऊ जी मेरी जिम्मेदारी से मुक्त हो पाए हैं ,, मैं दोबारा उनपर बोझ बनने को राय पैलेस न जा सकती हूँ ,,, मैं अनाथ उन पर
मालविका की आँखें फैली देखकर अनिमेष उसके पास आया और बोला -" क्या आया है जो तुम्हारी आँखें फैल गईं ,, मैं भी देखूँ जरा !!" मालविका ने लिफाफा अपने पीछे करते हुए कहा -"क,,,कुछ नहीं ,, है ,, "पर अनिमेष
प्रतीक्षा अपना पर्स लेकर कमरे से बाहर निकली तो देखा कि उसकी माँ काॅरिडोर में खडी़ थीं । "माँ आप यहाँ ?"प्रतीक्षा ने पूछा । " माँ मैं अपनी सहेली के यहाँ पढ़ने जा रही हूँ ,साथ में पढ़ते हैं तो ज्
खाना हो गया था और विवाह की रस्में प्रारंभ होनी थीं ।जिज्ञासा को लेकर मालविका व प्रतीक्षा विवाह के मंडप तक लाईं और उसे बैठा दिया गया । जयेष को लेकर उसके साथी आए और उसे मंडप में बैठाया और पंडित जी ने
जिज्ञासा को बहुत अजीब लगा और वह क्रोध में भरी सोचने लगी कि कहूँ कि आपके घर में ऐसे ही बहू का स्वागत होता है क्या !! फिर सोचने लगी कि नहीं !अभी तो घर में आई हूँ और अभी क्या कहूँ !! "चलो ,तुम्हें कमर
जयेश अपने पिता के साथ चाय पीकर अंदर आया तो देखा जिज्ञासा क्रोध में भरी हुई बैठी है ।जयेश ,जिज्ञासा के पास बैठते हुए बोला -"जिज्ञासा ,क्या हुआ ?तुम वहाँ से ऐसे क्यों चली आईं ??" "जयेश ये तुम्हारे पा
जिज्ञासा ने राय पैलेस जाते हुए जयेश को फोन मिलाया ।जयेश अपने आॅफिस में काम कर रहा था ,फोन बजा तो उसने फोन उठाकर कहा -हेलो जिज्ञासा ,इतने समय फोन किया !! जयेश क्या मैं आपके दो मिनट ले सकती हूँ !! जि
अब जिज्ञासा जयेश के आॅफिस जाने के पहले ही नाश्ते के साथ -साथ जयेश के पापा के लिए खाना भी बनाकर रख देती और जयेश के घर से निकलने के साथ ही राय पैलेस निकल जाती और जयेश के आने के समय ही वापस घर जाती थी ।
प्रतीक्षा व राधे के फेरे होने लगे थे और मालविका,जिज्ञासा व पूजा खडी़ होकर दोनों के ऊपर पुष्प वर्षा कर रही थीं ।फिर दोनों को बैठाया गया और राधे ने चाँदी के सिक्के से प्रतीक्षा की माँग भर दी और विवाह
राधे प्रतीक्षा के पास आकर बैठा और बोला - " जिस चाँद को देखा बार -बार , वो घूँघट में छुप कर रहा मुझे बेकरार !" और प्रतीक्षा का घूँघट हटा दिया । राधे ने देखा प्रतीक्षा सिर झुकाए हल्की मुस्कान अपने अध
दोपहर होने को आई थी ।प्रतीक्षा खाना बनाकर बरामदे में रखकर राधे व पूजा के लिए पाटे डालती हुई बोली -" सुनिए ,आप और पूजा खाना खा लीजिए आकर ।" पूजा अपने कमरे से निकली और राधे अपने कमरे से और दोनों ह
पार्टी में जहाँ एक तरफ सुरेंद्र राय अपने मित्रों के साथ थे वहीं दूसरी तरफ लता , सुरेंद्र राय के मित्रों की पत्नियों के साथ बातों में लगी थी ।जहाँ एक तरफ मालविका ,जिज्ञासा ,व सुरेंद्र राय के मित्रों
जयेश के पापा ने बेड पर बैठते हुए जिज्ञासा से कहा -"मेरी बाहों में आओ ।" जिज्ञासा ने घृणा भरी नज़रों से उनकी तरफ देखकर कमरे के दरवाजे के पास खडे़ ही खडे़ कहा -"आप..... "आं ,,,, आंं ,,,, तुम्हारे
मालविका को रह-रहकर जिज्ञासा व प्रतीक्षा की याद आ रही थी पर उसे समझ न आ रहा था कि जिज्ञासा व प्रतीक्षा से फोन करके पूछना उचित होगा या नहीं कि ताऊ जी के जन्मदिवस पर जयेश व राधे ने जो किया उसके बाद
जिज्ञासा !!! ये ,,, ये तुम्हें क्या हो गया है ???तुम इतने क्रोध में क्यों हो और ऐसे कैसे क्या बोल रही हो !!! सुरेंद्र राय घबरा कर बोले । सब पता चल जाएगा सुरेंद्र राय !!जहाँ बताया है वहाँ तुरंत पहुँचो
सुरेंद्र राय काँपते अधरों से बोले -"तु,,,तु,,,,तुम्हें,,,,ये सब ,,,कक,,क,,कैसे,,,पता,,,च,,,च,,चला ???" " वो महत्वपूर्ण नहीं है !!मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर दें ,,,क्यों आपने मालविका दीदी के माँ और पापा
सुरेंद्र राय टूटे ,हारे हुए ,बेबस ,बोझिल कदमों से घर की तरफ जा रहे थे और उनके सामने अतीत खडा़ हो गया था,जब वो अपने घर के बगीचे में मुँह लटकाए खडे़ थे । उनके साथ कोई खेलने वाला न था ।नित्य तो कहते थे ब
मेरे माँ और पापा की हत्या ता,,,ता,,, ताऊ जी,,,,, ने ,,,,,,करा ,,,,, क,,,रा,,,ई !! ये,,,ये,,, ता,,, ताऊ ,,,जी,,,,ने !!! नहींईईईईं,,,, नहींईईईईं ,,,, मुझे ,,, मुझे राय पैलेस जाना होगा ,,,, ताऊ जी
सुरेंद्र राय अपनी बदहवासी में ये भूल ही गए थे कि लता घर पर है और वो भगवान के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिडा़ रहे थे -- मेरे पाप की सजा मेरी जिज्ञासा को क्यों दी,,,, क्यों दीईईई ,, हांआंहांहांहांहां !!! लत