यहां खडी़ आकाश को क्या ताक रही हो? जिज्ञासा की मां ने पूछा। "मां आकाश के परे क्या है?"। मुझे क्या पता ? मैं वहां गयी थोडे़ हूं ,। मां मुझे जाना है आकाश के परे। "वहां क्या करेगी जाकर?"। मुझे जानना है कि आकाश के परे की दुनिया कैसी है?वहां कौन रहता है?। मां मैं जा रही हूं कहकर वह चल दी।
" अरेए कितनी बार कहा है स्वर्ग का दरवाजा खुला न छोड़कर जाया करो, देखो ये बच्ची यहां आ गयी सशरीर,पास से गुजरते किसी देव ने देखा तो द्वार पाल को डांटा । द्वारपाल बोला ,कौन है तू? यहां कैसे आ गयी शरीर ? जा यहां से।शोरगुल सुन देवेश आये तो बच्ची को देखकर थरथरा गये कि द्वारपाल की गलती से बच्ची सशरीर यहां आ गयी । अब ये न जाने कौन कौन सवाल करेगी? बच्चों के सवालों से धरती तो धरती तीनों लोक कांपते हैं। डर से वह वहां से खिसक लिये। और वह अंदर आ गयी। देखा वहां कुछ देवता पडे़ ऊंघ रहे थे। "अरे ,आज फिर कोई दूध की सारी मलाई चट कर गया !"कोई चिल्ला रहा था। तो कुछ स्वादिष्ट पकवान बनाकर कहीं ले जा रहे थे। कहां ये देखने वो पीछे पीछे चुपके से चल दी। वहां एक कमरा था ,जिसके दरवाजे पर लिखा था 'धरती से आये प्राणी'। वहां नो इंट्री का बोर्ड लगा था। उसे लगा यहीं उसकी दादी भी होंगी। पापा कहते थे कि मैंने स्वप्न में देखा कि उनके लिये स्वर्ग से विमान आया था क्योंकि उन्होनें बहुत अच्छे कर्म किये थे।
उसके भाई ने भी स्वप्न में उससे आसमां की तरफ इशारा कर बताया था कि वह वहां चला गया जब उसने पूछा था रोकर कि भाई तुम कहां चले गये ,मैं किसको राखी बांधू?।
वह वहां दरवाजे के पास जाकर चुपके से खडी़ हो गयी।
उसने देखा कि वहां बहुत सी आत्मायें बैठी थीं ।एक देवता किसी कर्मचारी को बता रहा था कि किस आत्मा को किस शरीर में डालना है।
एक की तरफ इशारा कर उसने कहा कि इसने सदैव जीवन में अपनी निगाहों को गंदा रखा है इसलिये इसकी आत्मा को मक्खी के शरीर में डालकर धरती पर फेंको।दूसरे की तरफ इशारा कर कहा कि इसने जीवन भर लोगों का खून ही पिया है ,इसकी आत्मा को मच्छर का शरीर देकर धरती पर फेंको। फिर एक की तरफ इशारा कर कहा कि इसने सदा आती जाती मां बहनों पर गिद्ध दृष्टि डाली तो इसकी आत्मा को गिद्ध के शरीर में डाल कर धरती पर फेंको। फिर एक की तरफ इशारा कर कहा कि ये भक्ष्य अभक्ष्य खाता रहा है तो इसकी आत्मा को सुअर के शरीर में डाल कर धरती पर फेंको। एक और की तरफ इशारा कर कहा कि इसने सदा कुर्सी में अपने प्राण छुपाकर रखे व जूते में दाल खाता रहा ,इसकी आत्मा को नेता के शरीर में डालकर धरती पर फेंको।इसी तरह वो बताता रहा ।फिर उसकी दादी का नम्बर आया । उसने उनकी आत्मा की तरफ इशारा कर कहा कि इन्होनें सदैव सद्कर्म किये हैं तो इनकी आत्मा को संत के शरीर में डालकर आदर सहित धरती पर पहुंचाकर आओ और,देखो इन्हें कोई तकलीफ न हो। फिर उन्होनें उसकी दादी को वो स्वादिष्ट पकवान खिलाकर आदर सहित विदा किया। फिर उसके भाई की आत्मा की बारी आई। उन्होनें कहा कि ये तो गलती से यहां आ गया ।इसने तो बहुत ईश्वर भक्ति की है इसलिये इसकी आत्मा को मंदिर के मठाधीश के शरीर में डाल कर आदर सहित धरती पर पहुंचाओ। उसने उनको भी स्वादिष्ट पकवान खिला कर विदा किया।
"अरे उठ ,जिज्ञासा,अरे कितनी देर से जगा रही हूं ? उठ नहीं तो अब मार पडे़गी।
उसने आंखें खोलकर खिड़की से आसमां देखा ,और वो जैसे मुस्करा रहा था
प्रभा मिश्रा 'नूतन'