( उड़ीसा और पश्चिमी बंगाल की हो जनजाति की कथा पर आधारित. इस जनजाति की बोली कोलारियन भाषा समूह के अंतर्गत आती है.)हो लोककथा——सियार का बदला (भाग-२)
ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
एक बार की बात है. एक जंगल में एक चतुर सियार रहता था. एक दिन वह गुफा से बाहर निकल रहा था. तब उस की दरवाजे के पास निगाहें गई. वहा पर उसे एक मकड़ी का जाला नजर आया. उस में एक मधुमक्खी फंसी हुई थी.
मधुमक्खी को जालें में फंसा देख कर सियार को दया आ गई. उस ने मधुमक्खी को मकड़ी के जाले से मुक्त कर दिया.
आजाद हो कर मधुमक्खी बहुत खुश हुई. उस ने सियार को ढेर सारा शहद इनाम में दे दिया, '' यह मेरे छत्ते का सब से बढ़िया शहद है.''
'' शुक्रिया !'' सियार ने शहद लिया और चल दिया.
'' यह मेरे किस काम का ? मैं शहद तो खाता नहीं हूं,'' यह सोच कर वह अपनी गुफा की ओर जा रहा था. रास्ते में उसे एक चरवाहा मिला. वह भेड़ चरा रहा था. उस ने वह शहद चरवाहे को दे दिया.
शहद बहुत बढ़िया था. चरवाहा प्रसन्न हो गया.
'' इस शहद के बदले क्या चाहिए ? बोलो ?'' उस ने सियार से पूछा.
सियार ने उस से एक भेड़ मांग ली.
चरवाहें ने उसे खुशीखुशी एक भेड़ दे दी. वह उसे ले कर गुफा की ओर चल दिया. उस वक्त उस का पेट भरा हुआ था. उस ने भेड़ को गुफा में एक खूटे से बांध दिया .
उसी गुफा के पास दो लोमड़िया रहती थी. वे बहुत चालाक थी. उन्हों ने सियार को भेड़ लाते ओर बांधते हुए देख लिया था.
पहली चालाक लोमड़ी बोली, '' चलो ! आज हम भेड़ की दावत उड़ाते हैं.''
तब दूसरी लोमड़ी ने कहा, '' यदि सियार को पता चल गया तो क्या होगा ?''
पहली लोमड़ी बोली, '' उसे पता नहीं चलेगा. मेरे पास एक तरकीब है,'' कहते हुए दोनों लोमड़ी सियार की गुफा में चुपचाप घुस गई. फिर भेड़ को मार कर खा गई. इस के बाद उन लोमड़ियों ने भेड़ की खाल में भूसा भर दिया. फिर भेड़ को वैसे ही खड़ा कर दिया जैसे वह पहले खड़ी थी.
शाम को सियार वापस आया. उस ने भेड़ का देखा. मगर, यह क्या ? वहां भूसा भरी हुई भेड़ खड़ी थी. जमीन पर लोमड़ियों के पैर के निशान बने हुए थे.
इन्हें देख कर सियार समझ गया कि उस की पड़ोस की लोमड़ियों ने उस के साथ चालाकी की है. इसलिए सियार ने चालाक लोमड़ी को सबक सिखाने की सोचा.
तब सियार ने भेड़ की खाल उतारी. उस से एक ढोलक बना लीं. फिर उसे बजाने लगा. लोमड़ियों को नाचने का शौक था. ढोलक की थाप सुन कर वे नाचने लगी.
जब ढोलक बजना बंद हो गई तब पहली वाली चालाक लोमड़ी ने सियार से पूछा,'' यह ढोलक तुम्हें कहां से मिली ?''
इस पर सियार ने जवाब दिया, '' यही पास में एक कुआं है. उस में बहुत सारी ढोलक पड़ी हुई है. तुम चाहो तो वहां से ढोलक ला सकती हो. '' '' अच्छा !'' दूसरी चालाक लोमड़ी ने कहा, '' हमें वह कुआं बता सकते हो ?''
सियार यही चाहता था. उस ने कहा, ''हांहां. क्यों नहीं. अभी चलो !'' कहते हुए सियार उन्हें कुंए के पास ले गया.
सब से पहले सियार ढोलक सहित कुंए की मुंडैर पर चढ़ गया. फिर लोमड़ियो को ऊपर बुला कर बोला, '' वह देखो. वहां ढोलक नजर आ रही है. तुम जितनी चाहे उतनी ढोलक ले सकती हो .''
लोमड़ी ढोलक पाना चाहती थी. वे तुरंत कुएं में कूद गई.
कुंए में पानी भरा था. उस में सियार के गले में लटकी ढोलक की परछाई दिख रही थी. उसे असली ढोलक समझ कर लोमड़ी पानी में कूद गई थी. उन्हें तैरना नहीं आता था, इसलिए वे पानी में डूब कर मर गई.
इस तरह चतुर सियार ने चालाक लोमड़ी से अपना बदला ले लिया.
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