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बालधारावाहिकःपरछाईं भाग-6

25 नवम्बर 2021

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बालधारावाहिकःपरछाईं भाग-6

भाग6..

आगे....

परी राजकुमारी सुलेखा अपनी छडी पाकर बहुत ही अधिक खुश रहने लगी थी।वह राजकुमार मध्यवर्द्धन जैसा बहादुर साहसी पति पाकर धन्य समझती थी ।


महाराज पटवर्द्धन और महारानी बैजंती भी सुलेखा जैसी विदुषी बहू पाकर बहुत खुश थे,खासकर महारानी बैजंती।

उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था।एक ही साल में दो दो पुत्रों का विवाह और उससे भी बड़ी बात कि दोनों पुत्रवधुएं एक से बढ़कर एक सुंदर ,विदुषी और भी गुणों से भरपूर।


***

पर इधर कुछ दिनों से महारानी बैजंती बहुत परेशान रहने लगी थीं।

लगभग छह महीने से वह राजकुमार सुमेर के व्यवहार में

लगातार परिवर्तन होता जा रहा था।राजकुमार सुमेर महारानी का बहुत ही लाडला था  परंतु उसकी गहरी उदासी और चुप्पी महारानी को अंदर से परेशान कर रही थी।


कई बार पूछने के बावजूद सुमेर ने कोई ठोस जवाब नहीं देता था।

पहले वह बहुत ही बातूनी,हँसमुख और हाजिरजवाब था,परंतु अब..!!

महारानी बैजंती कुलगुरु सुभद्र के आश्रम में जाकर बारबार प्रार्थना करतीं थीं कि जैसे बाकी दोनों पुत्रों का जीवन खुशियों से बस गया था,उसी प्रकार राजकुमार सुमेर का भी घर बस जाए।

कुलगुरु सुभद्र आशिर्वाद तो देते थे पर चुप हो जाते थे,प्रकट में कुछ भी नहीं कहते।

***

एक दिन बसंतीपुर में भारी बारिश हो रही थी।महारानी बैजंती राजकुमार सुमेर के शाही महल में आईं थीं।वह अपने महल लौटना चाह रहीं थीं परंतु बारिश के कारण वह वहीं सुमेर के पास ही रुक गईं।


रात्रिभोजन के उपरांत महारानी सुमेर के कक्ष में ही सो गईं।

अनिष्ट आशंकाओं और चिंताओं के कारण वह जागीं रह गईं और सुमेर सो गया।


वह हमेशा की तरह वही सपना...गहरी झील...चिल्लाती हुई लड़की...!!वह बड़बड़ा रहा था।

महारानी ने सब सुन लिया।उन्हें लगा कि उनका बेटा किसी गहरी मुसीबत में फँसा हुआ है।


दूसरे दिन सुबह सुमेर से पूछने पर उसने अपने सपने के बारे में बतलाया,तब बैजंती देवी को याद आया कि यह स्वप्न तो उन्हें भी आया था।

राजकुमार अच्युत ने भी यह सुनकर कहा कि यह स्वप्न तो वह भी देख चुका है।

अच्युत ने अपने भाई को कहा

"सपनों का कोई मतलब नहीं होता,इसे भूल जाओ।"


अब सुमेर ने हठ पकड़ लिया

बोला"मैं विवाह करूंगा तो उसी लड़की से..नहीं तो किसी से नहीं..।"

सबने बहुत समझाया पर सुमेर था कि मानता ही नहीं था।


राजा बहुत ही परेशान हो गए थे।उन्होंने राजदरबार में भी उस अनोखे स्वप्न  के बारे म़ें चर्चा की।यह एक सोचनीय प्रश्न था..आखिर इस स्वप्न का अर्थ क्या हो सकता है।


उन्होंने सभापतियों और तमाम ज्योतिषियों से इस स्वप्न का अर्थ निकालने के लिए कहा।


राजकुमार मध्यवर्द्धनने जब सुना कि महाराज ने ऐसे स्वप्न का उल्लेख किया है तो वह अपनी पत्नी सुलेखा से इसकी चर्चा की।

उधर जब सुकन्या को पता चला तो वह बहुत उदास हो गई।

राजकुमारी सुलेखा और सुकन्या दोनों के पास कुछ कुछ अद्भुत शक्तियां थीं।सुलेखा ने अपने जादुई आइने से उस स्वप्न के रहस्य के बारे में पूछा।


आईना ने बतलाया कि मत्स्य देश की ही तरह एक और जलपरी देश है जहां की राजकुमारी है सुगंधा।उसे एक राक्षस उठा कर कहीं अनजान जगह ले गया है।उसकी सारी शक्ति छीनकर उसे परछाईं बना दिया है।


अगर कोई साहसी व्यक्ति उसकी पड़ने वाली परछाईं को तोड़ दे तो वह आजाद हो जाएगी और राक्षस भी मारा जाएगा।


इस बात की चर्चा जब राजकुमारी सुकन्या से किया गया तब उसने भी  बतलाया। 

सुगंधा उसकी रिश्ते की बहन भी थी और बहुत अच्छी सहेली भी ,एकदम छोटी बहन की तरह ।

कभी वह उसके जललोक में घूमने जाती कभी वह मत्स्य लोक में आती।

एक बार एक जलसैनिक की एक गलती से एक राक्षस उंभा  जललोक में घुस आया और राजकुमारी को उठाकर किसी अनजान जगह में ले गया।वह बहुत ही दुखी है..कहाँ है किसी को भी नहीं पता..।

****

राजमहल में सन्नाटा छा गया।

राजकुमार अच्युत ने कहा

"इतने  सारे राक्षस हैं अगर हम ठोस उपाय न करें तो एक दिन वे हमपर भी आक्रमण कर सकते हैं।इसलिए हमें कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा।


कुमार मध्य ने भी यही कहा।उसने भी अपनी कहानी बतलाया कि कैसे शीशे का पिटारा चुराकर ले आया था।

जब उल्फ्रा बर्फदानव वापस लौटकर आएगा  और देखेगा कि उसका शीशे का पिटारा खो गया है तो मुश्किल हो सकती है।


राजकुमार सुमेर ने कहा कि वह हर हाल में राजकुमारी सुगंधा की खोज करेगा।और जो भी बाधाएं आएंगी उनका मुकाबला भी करेगा।

उसने महाराज और महारानी से आज्ञा माँगा। दोनों ने उसे गले लगाकर आशिर्वाद दिया।


उसके दोनों भाईयों ने कहा

"युद्ध की हर बारीकियों को देखकर सीखना चाहिए..पहले तैयारी अच्छी तरह से हो फिर..आगे।


सुमेर अपनी बड़ी भाभी सुकन्या  के कक्ष में गया।उसने उससे उसके जादुई कर्णकुंडल मांगा।

सुकन्या ने अपने कर्णकुंडल लाकर सुमेर को दे दिया।

सुमेर ने उन कर्णकुंडल को चमकते धूप के सामने रखा।धूप की किरणें उसपर पड़तीं और राजकुमार सुमेर के अंदर प्रविष्ट हो जातीं।

कुछ देर बाद राजकुमार को एक अद्भुत शक्ति का एहसास हुआ।अब वह उस कर्णकुंडल में एक अदृश्य बिंब देख सकता था।उसमें कुछ चित्र उभर रहे थे..आसमान बादल..और लहराता समुद्र।और फिर सोई हुई राजकुमारी..!

सुमेर समझ नहीं पाया कि सुगंधा कौन सी जगह पर कैद है।

वह सुकन्या को प्रणाम करके मंझली भाभी सुलेखा के पास गया।सुलेखा के पास उसकी माँ का दिया एक जादुई आइना था।वह बोलता भी था।

राजकुमार सुमेर ने आइने से दिव्य शक्तियाँ मांगी तो वह बोला

"राजकुमार,जब भी आपको जिस शक्ति की आवश्यकता पड़ेगी आप मुझे याद करना मैं आपको दे दूंगा।"


सुलेखा के पास जादुई छड़ी थी।उसने अपनी जादू की छड़ी घुमाकर एक शीशे का ताबीज बना दियाऔर कहा

"राजकुमार सुमेर,अब आप की रक्षा यह ताबीज करेगा।आपकी यात्रा सफल हो।आप विजयी होकर ही वापस लौटें।

राजकुमार ने उन्हें भी प्रणाम किया।


अब वह गुरु सुभद्र के पास गया।उन्होंने कहा

"बेटा,तुम्हारी आवाज और संगीत दोनों  में भगवती सरस्वती का वास है।तुम बस अधीर मत होना और अपना गायन मत भूलना।बस अब जाओ और विजयी होकर ही लौटो।

सुमेर ने उन्हेंभी प्रणाम किया।


राजकुमार अच्युत और मध्यवर्द्धन दोनों ने उसे राज्य की सीमा तक छोडऩे आए थे।सुमेर  उन दोनों को भी प्रणाम कर अपने गंतव्य में आगे निकल गया था।

*****

मेघमवन अनंत रहस्यों से भरा हुआ था। सुमेर को लगता था कि शायद यहाँ से कोई रास्ता उसे सूझ जाए कि आगे क्या करना है,किधर जाना है।


****

स्वरचित...सीमा..✍️🍁

©®

क्रमशः



Anita Singh

Anita Singh

बढ़िया

27 दिसम्बर 2021

22 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

👌👌👌

19 दिसम्बर 2021

Papiya

Papiya

बहुत सुंदर

25 नवम्बर 2021

Seema Priyadarshini Sahay

Seema Priyadarshini Sahay

25 नवम्बर 2021

थैंक्यू

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बालसाहित्य पर धारावाहिक लिखने की मेरी कोशिश है। आशा है कि आप सबसे प्यार और स्नेह मिलेगा।
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