आगे..
राजकुमार अपने बहादुर घोड़े हवाई के साथ आगे बढ़ते जा रहा था।
कुछ ही देर में वह अपने राज्य की सीमा से बाहर राज्य की दक्षिणी सीमा के पास पहुंचने वाला था।
लगातार चलते रहने के कारण वह और उसका घोड़ा दोनों ही थक गए थे।राजकुमार ने एक साफ सुथरी जगह देखकर घोड़े को एक पेड़ से ब़ाध दिया ,फिर थोड़ा घास काटकर घोड़े को खाने के लिए दिया।
वह भी भूखा था।वह इधरउधर देखा।वहां बड़े बड़े पेड़ों पर लाल लाल सेब लटके थे। वह डरते डरते एक फल तोड़कर खाया।वह बहुत ही मीठा और स्वादिष्ट था।राजकुमार ने कुछ और सेब तोड़े।कुछ खा लिए और कुछ आगे के लिए रख लिए।
मेघमवन शुरू होने ही वाला था।वह आगे के लिए निकल पड़ा।थोड़ी देर में शाम ढलने लगी थी।राजकुमार को डर था कि कहीं जंगली जानवर उसपर और उसके घोड़े पर हमला न कर दें,इसलिए वह एक सुरक्षित जगह तलाश रहा था जहां रात बिताया जा सके।
थोड़ा आगे बढ़ने पर उसे एक झोपड़ी दिखी...वह आश्चर्यचकित हो गया।,,इस गहरे वन में एक पर्णकुटी..!!
खैर,उसने निडर होकर आवाज दी
"कोई है अंदर..रातभर के लिए शरण मिलेगी क्या?"
थोड़ी देर में एक वयोवृद्धा महिला बाहर आईं।वह एक अलौकिक ज्वाला की तरह जगमगा रही थीं।
राजकुमार ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी सारी बात बताकर रातभर रूकने की इजाजत माँगी।
वह तैयार हो गईं।
राजकुमार ने अपना घोड़ा वहीं एक वृक्ष के नीचे बाँध दिया।उसे थोड़ा घास खाने को डाल खुद झोपड़ी के अंदर आ गया।अपने साथ लाए सेब कुछ उन महिला को भी दिया और कुछ खा लिए।फिर सो गया।
आधी रात में जब वह उठा तो उसने देखा कहीं भी वह वृद्ध महिला नहीं दिख रही थी,बल्कि एक सफेद प्रकाश पूरी झोपड़ी में व्याप्त था।
राजकुमार घोर आश्चर्यचकित रह गया।
दूसरे दिन राजकुमार जब सूर्योदय उठा तो वह वृद्धा वनदेवी के रूप में आ गई।उन्होंने राजकुमार को ढेर सारा आशिर्वाद दी और कुछ दिव्य शक्ति भी दिया।
अब राजकुमार के पास एक अलौकिक शक्ति आ गई थी।वह किसी को भी देखकर उसके मन की बात समझ सकता था।
राजकुमार वनदेवी को प्रणाम कर अपने घोड़े हवाई के साथ आगे बढ़ने लगा।
रास्ते में तमाम उलझनों और बाधाओं को पार करते हुए वह आखिरकार उस अलौकिक जल स्त्रोत के पास पहुंच ही गया।
वह जल लेना चाहता तो था,पर सूर्यास्त हो चुका था।कुलगुरु सुभद्र ने सख्ती से सूर्यास्त के बाद जल इकट्ठा करने को मना किया था।
अब मजबूरी थी,राजकुमार को रातभर रूककर इंतजार करने की।वह सरोवर के निकट ही एक वृक्ष के नीचे घोड़े को बांध वृक्ष के ऊपर चढ़ गया।वह थका हुआ था।एक बहुत मोटी डाली पर वह सो गया।
आधी रात में जब वह गहन निद्रा में था,तब उसने भी वही स्वप्न देखा
....एक गहरा सरोवर..एक लड़की..डूबती हुई..हाथ पैर मारती..बचाने के लिए..वह चिल्ला कर बोल रही थी.."राजकुमार..अच्युत..बचाइए..!!"
राजकुमार अच्युत नींद से जाग गया।वह स्वप्न के बारे में सोचने लगा ।
,,वह खुद से बोलने लगा.."राजमाता भी यही स्वप्न देखकर बेचैन हो उठीं थीं..और अब मैं भी...आखिर इस स्वप्न का क्या अर्थ हो सकता है…?"
वह जागते हुए पूरी रात गुजार दिया।सुबह हुई तो वह अपने साथ लाए स्वर्ण कलश में जल भरने के लिए कुंड के पास पहुंचा।
वह चौंक गया।?.......अर्...रे..!!,यही तो वह सरोवर है जिसे उसने स्वप्न में देखा था.. जहां एक लड़की डूब रही थी..कौन थी वह..!!,और इस सपने का क्या मतलब हो सकता है ।चकित होते हुए अच्युत जैसे ही पानी में पैर रखा किसी ने उसे पूरा ही सरोवर में खींच लिया।
अच्युत हैरान था..इतना बड़ा मगरमच्छ..अपना बड़ा सा मुँह खोले उसे खाने के लिए बढ़ रहा था।
अच्युत बिना डरे एक झटके में अच्युत ने उस मगर मच्छ का सिर काटकर अलग कर दिया।
पलक झपकते चारों तरफ घने कोहरे की चादर बिछ गई।अच्युत को तुरंत तो कुछ भी समझ नहीं आया..पर कुछ देर बाद वहां पर एक सुंदर सी युवती थी..वह हाथ जोड़कर खड़ी थी।
राजकुमार कुछ पूछता इससे पहले वह खुद ही बोलने लगी
"राजकुमार,आपको प्रणाम।मैं एक जलपरी सुकन्या हूँ।मेरा घर समुद्र के नीचे समुद्र महल में है।मुझे एक राक्षस भौंरामल चोरी से उठा लाकर यहां मगरमच्छ बना दिया था।
...आपका बहुत बहुत धन्यवाद,राजकुमार..आज आपने मुझे इस योनी से छुटकारा दिलाया..अब मैं अपने घर वापस लौट सकुंगी।"
राजकुमार अच्युत ने उसे ध्यान से देखा..यह वही सपनों वाली युवती थी।उसने उससे पूछा
"राजकुमारी,आप कैसे जाएंगी..वापस अपने घर।"
राजकुमारी बोली"बस यहां से तैरते हुए आगे निकल जाऊँगी..फिर समुद्र के बहुत अंदर हमारा महल है।"
राजकुमार अच्युत को लगा कि कहीं राजकुमारी फिर से किसी मुसीबत में न पड़ जाए,इसलिए वह बोला " चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ आता हूँ।..लेकिन पहले यह जल स्वर्ण कलश में भर लूँ..इसे पहले अपने राजमहल पहुंचाकर तब आपको आपके महल तक पहुचाऊंगा।"
राजकुमारी सुकन्या तैयार हो गई।राजकुमार अच्युत ने स्वर्ण कलश में जल भरकर सुकन्या को भी घोड़े पर बिठाकर हवा से बातें कर उड़ चला।
लगभग चलते चलते बहुत देर हो गई थी।राजकुमार भी थक गया था।वह एक वृक्ष के नीचे घोड़े को बांधकर जंगल में इधरउधर खाने की खोज करने लगा।झाड़ियों में मीठे बेर लगे थे।राजकुमार ने उन्हें तोड़कर कुछ राजकुमारी सुकन्या को खाने दिया और कुछ खाने लगा।
उसी समय वहां पर एक बीमार ,कृशकाय एक युवक आ रहा था।वह भूख से बिलख रहा था..।राजकुमार अच्युत को उसपर दया आ गई।वह अपनी सारी बेरियाँ उसे दे दिया।
बल्कि झाड़ियों में घुसकर और भी बहुत सारी बेरियाँ तोड़कर उसे दे दिया।
वह युवक बेरियां खाकर बहुत ही खुश हुआ।अब वह अपने असली रुप में आ गये।
वह वनदेव थे।उन्होंने राजकुमार को बहुत आशिर्वाद दिया और एक चमत्कारिक मंत्र भी दिया।
इस मंत्र को बोलने से बोलने वाला व्यक्ति जहाँ चाहे वहां पहुंच सकता है।
राजकुमार और राजकुमारी ने उन्हें प्रणाम किया और आगे बढ़ चले।
चलते चलते काफी देर बाद वे दोनों बसंतीपुर की दक्षिणी सीमा तक पहुंचे।
वहां पर एक नदी बह रही थी।दोनों ने वहां रूककर पानी पीया और आगे बढ़ने लगे।
जैसे ही वे नगर के द्वार तक पहुंचे,पूरे राज्य में खुशी की लहर छा गई।लोग खुशी से अपने अपने घरद्वार सजाने लगे,कुछ लोग संगीत बजाने लगे,कुछ गीत गाने लगे।
राजमाता बैजंती ने जब सुना कि राजकुमार एक अत्यंत ही रूपवती युवती के साथ महल पधार रहे हैं तो उनकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।वह आन्नद से भर उठीं।राजकुमार के स्वागत के लिए खुद ही स्वागत थाल सजाने लगीं।
राजा पटवर्द्धन भी अपने बेटे की सफलता पर बहुत ही खुश थे।उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि राजकुमार ने इतनी कठिन परीक्षा पार कर वापस लौट आया है।
वह जाकर अपने कुलगुरु सुभद्र के चरणों पर गिर पड़े।
कुलगुरु धीमेधीमे मुस्कुरा रहे थे।वह भविष्यगामी थे।राजकुमार अपने लिए योग्य वधू खुद ही ढ़ूढ़ लाया था।
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स्वरचित..
.सीमा....
©®
क्रमशः...
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