बालधारावाहिकःपरछाईं भाग-5
भाग5...
आगे....
राजकुमार मध्यवर्द्धन अपने राजमहल लौट आता है।उस चमत्कारिक हिरणी के कहे अनुसार उस मिट्टी की हांडी को पूनम की रात खुले आसमान के नीचे रख देता है।
मध्य अपने कक्ष म़े बैठकर चिंतन पठन करता हुआ सो जाता है।
दूसरे दिन जब वह सो कर उठा तो देखा कि उसके महल का मुख्य द्वार एकदम साफ सुथरा तथा रंगोलियों के कलात्मक रंगों से सजा हुआ है।
वह विस्मित हो गया।उसने अपने सेवकों को आवाज दिया
"इतना खूबसूरत रंग चित्रण किसने किया?"
कोई भी सेवक कुछ भी नहीं बतला पाया।
ऐसा अब हर दिन होने लगा।कभी दीवारों और दरवाजों में सुंदर कलाकारी हो जाती थी तो कभी जमीन पर..।कभी सुस्वादु भोजन शाही रसोई में बना मिलता तो कभी कुछ!
राजकुमार खुद भी आश्चर्य चकित थे..कि..यह आखिर कौन कर जाता है।
क्या मायाविनी फिर से जिंदा हो गई है..!!,
एक बार तो सब डर ही गए थे,मगर नगर के मुख्य चौराहे पर उस मायावी पिशाचिनी का सिर टँगा हुआ था।वह मर चुकी थी।
एक रात राजकुमार मध्यवर्द्धन ने जागकर खुद परीक्षा लेने की सोची।
अब तक सैनिकों और गुप्तचरों से भी कुछ खास मदद नहीं मिली थी।
एक रात लगभग सभी लोग सो चुके थे।राजकुमार मध्य भी रात्रि का भोजन कर अपने कक्ष में चला गया।वह बिस्तर पर वैसे कंबल डाल दिया जैसे कि ओढ़ने पर फैलाता है।फिर कक्ष को अंधेरा कर पीछे वाले रास्ते से बाहर आकर खुफिया कक्ष में बैठ गया।वहीं पर सारे गुप्तचर छुपकर निगाह रखते थे।
काफी देर के बाद अचानक कुछ आवाज आई और सारे सैनिक उंघने लगे।कई तो सो भी गए।पर राजकुमार मध्य जागा था।उसे नींद क्या जम्हाई तक नहीं आ रही थी।
थोड़ी देर में पायल की छुनछुन की आवाज़ें आने लगी।
मध्य च़ौक गया।
इतनी रात गए..पायल की छुनछुन..!!,कौन हो सकती है..।तभी एक पतली दुबली सी सुंदर सी युवती हाथों में रंगों से भरा एक पात्र लिए एक हाथ में तूलिका..।बड़ी मेहनत से पहले जमीन पर बेल बूटे काढ़ने लगी कभी दीवारों पर रंगों से कढ़ाई कर रंग भरने लगी।
राजकुमार दंग रह गया।
"कौन है यह लड़की..कैसे यहां आ गई..ये ऐसा क्यों कर रही है...!!
राजकुमार बस उसे देखते ही रह गया।
अब प्रतिदिन यही होने लगा।राजकुमार उस अनजान युवती को छुपकर निहारता रहता और वह युवती चुपचाप अपना कार्य कर गायब हो जाती।
राजकुमार मध्य उसके रूप और गुण में पागल हो चुका था,हर हाल में उसे अपना बनाना चाहता था।
,,आखिर वह जाती कहां है..और आती कहाँ से है..!,मुझे बस यही पता लगाना है।,,
उस रात जब वह युवती अपना कार्य समाप्त करके वापस जाने लगी तो राजकुमार मध्य भी पीछे पीछे चलने लगा।
राजकुमार मध्य आश्चर्य से भर गया,जब उसने देखा कि वह युवती तो उसी घड़े में समा गई,जिसे वह वृक्ष से उतार लाया था।
राजकुमार पूरी रात उधेड़बुन में रहा फिर उसने तय किया कि लह उस घट को ही फोड़ देगा और उस लड़की को घर ले आएगा।
अगली रात फिर ऐसा ही क्रम चला।इसबार राजकुमार मध्य तैयार था..जैसे ही वह युवती उस घड़े से बाहर निकली राजकुमार ने उस घड़े को पटक कर फोड़ दिया।
घड़े के अ़दर रंग भरे थे,वह सारे रंग जमीन पर फैलने लगे।
राजकुमार मध्यवर्द्धन ने उस लड़की का हाथ पकड़ लिया।और पूछा
"तुम आखिर कौन हो,और इस तरह मेरे महल में क्या कर रही हो?"
वह युवती पहले थोड़ा मुस्कुराई,फिर बोली
"हाथ छोड़िए राजकुमार।"
राजकुमार ने हाथ छोड़ दिया,तब उसने उसे प्रणाम किया और बोली
"राजकुमार,मैं रँगपरी हूं। मैं अपने रँगलोक में रहती थी।जो हिरणी आपको बसंत वन में मिली थी,दरअसल वह मेरी माँ है।एक बार मैं और माँ हम दोनों अपने लोक में रँग उत्सव की तैयारियां कर रहे थे।अपने बाग से रँगबिरँग के फूल एकत्र कर रहे थे तभी उल्फ्रा नाम का एक बर्फदानव वहां आ गया।वह मेरी माँ को पकड़ लिया।
वह मेरी मां से शादी करना चाहता था।माँ ने मना कर दिया तो उसे हिरणी में बदल दिया।
मेरी मां ने मुझे बचाने के लिए मुझे रँगों के घड़े में बदल दिया।...राजकुमार..आज आपने रँगो वाले घड़े को तोड़कर मुझपर बहुत उपकार किया है।"
राजकुमार मध्य ने उसे अपने महल ले आया।उस परी का नाम सुलेखा था।
राजकुमार मध्यवर्द्धन ने पूछा"अच्छा राजकुमारी, जरा बताओ कि तुम्हारी मां को मृग योनि से मुक्ति कैसे दिलाया जाए?"
सुलेखा ने कहा
"राजकुमार,उस दुष्ट उल्फ्रा ने हमारी जादुई छड़ी भी लेकर कहीं छुपा दी है।या तो छड़ी मिल जाए या फिर उस दुष्ट दानव उल्फ्रा का अंत हो जाए..तब ही मेरीमाँ इस श्राप से मुक्त हो सकती है।"
"ह्ँम्...!,राजकुमार बोला ,वह बर्फदानव कहाँ रहता है?"
"वह हमारे रँगलोक के पास ही रहता है,वहां तक जाना आसान नहीं है।"
"अच्छा...!,तब तो उस छड़ी को ही ढ़ूढ़ना पड़ेगा।आपको कुछ भी पता है कि वह छड़ी कहाँ हो सकती है?"
"जी राजकुमार, बसंतवन में ही कहीं पर है..उस उल्फ्रा ने हमें भी उसी वन में लाकर छोड़ दिया था।..मेरी माँ चाँदनी रात में अपने असली रूप में आ जाती है..पर सिर्फ कुछ घंटे के लिए।जैसे जैसे चाँद की रौशनी कम होने लगती है..माँ वापस हिरण रूप में आ जाती है।"
"ह्..म्म...,राजकुमार मध्य का चेहरा गंभीर हो गया।वह बोला"राजकुमारी,तब आपकी माता को यह अवश्य पता होगा कि वह छड़ी कहाँ है?"
"जी,कुमार..हो सकता है,परंतु आपको इसके लिए पूर्णिमा की चाँद का इंतजार करना होगा,वह भी बसंतवन में जाकर।क्योंकि माँ बहुत ही कम देर के लिए परी रूप में आ पाती है।"
"हाँ,ठीक है..।उसने अपने गुप्तचरों को आदेश दिया।सैनिकों को तैयार रहने का निर्देश दिया।
उसने अपने सेवकों से राजपरी सुलेखा का अच्छी तरह से देखभाल करने का निर्देश दिया।
उसने सुलेखा से कहा"राजकुमारी सुलेखा,आप यहीं आराम से रहें जब तक कि मैं वापस न आ जाऊं।"
***
पूर्णिमा में अभी दो दिन शेष थे।राजकुमार मध्य अपनी सारी तैयारी कर लिया था।अच्छे अच्छे तीर अपनी तरकश में सजा लिया था।
ठीक पूरे चाँद वाले दिन अपने सैनिकों के साथ राजकुमार मध्यवर्द्धन बसंतवन जा पहुंचा।वहीं पर जहाँ वह हिरणी उसे मिली थी।
ठीक उसी पेड़ के नीचे वह हिरणी चुपचाप आँसू बहा रही थी।अचानक राजकुमार मध्य को देखकर वह डर गई।वह उठकर खड़ी हो गई।बोली
"राजकुमार,आपकी जय हो।आप इस समय यहां !,आश्चर्य!!"
राजकुमार मध्य ने उसे बोला"वन में आखेट करते रात हो गई।"
"अच्छा...,हिरणी बोली।अब चाँद पूरे लुआब में आ गया था।जैसे जैसै चाँद की रौशनी हिरणि पर पड़ रही थी उसका शरीर परिवर्तित हो रहा था।धीरेधीरे वह अपने परीरूप में आ गई।
वह बोली"राजकुमार मध्यवर्द्धन आपको प्रणाम।,आपकी जय हो।
मुझे मालूम है कि आप मुझे बचाने के लिए आप यहां आए हैं।
कुमार..,वह छड़ी झरने केउस पार एक शीशे के पिटारे में बँद है।वह पिटारा एक सुनहरी पहाड़ी में है।वहाँ जाना आसान नहीं है।वहां चारों तरफ बड़े बड़े सींगों वाले बारहसिंगे पहरा देते हैं।"
कुमार ने कहा"परी रानी,झील के उस पार जाने का रास्ता ..?"
परी ने कहा"तुम झील से आज्ञा माँगना,फिर आगे निकल जाना..।तुम बहादुर हो कुमार..आराम से यह कार्य कर लोगे।"
राजकुमार मध्य ने परी को छोड़कर आगे बढ़ गया।परी ने जैसै कहा था वैसे ही झील को उसने आवाज दिया।
इस बार भी झील दो रास्तों में बँट गया। झील ने जो रास्ता दिया वह नीले रंग का था।
राजकुमार मध्य उसी रास्ते से आगे बढ़ता गया।काफी देर तक चलने के बाद भी रास्ता समाप्त ही नहीं हो रहा था।
राजकुमार मध थककर एक वृक्ष के नीचे बैठ गया।वहां हल्की ठंडी हवा चल रही थी।राजकुमार सो गया।
जब नींद टूटी तो उसने दो चिड़ियों को बातें करते सुना।
पहला चिड़ा दूसरे से बोल रहा था
"ये राजकुमार बहुत ही अच्छे हैं।सुलेखा की मां को बचाने के लिए खतरा मोल ले रहे हैं।"
"हाँ,मुझे पता है...,पर इनको यह कहाँ पता कि वहां राक्षस पहरा देते हैं।जहाँ पर परी की छड़ी है।"
पहला चिड़ा बोला
"सुन सुनहरी,तुझे पता है कि मोरनी का नीला पँख लेकर उससे सुनहरी पहाड़ी वाली धरती पर मेरी छड़ी लिखने से उसका गुप्त दरवाजा स्वतः खुल जाता है।
ऐसा करने से राजकुमार बहुत जल्दी ही शीशे के पिटारे तक पहुंच सकते हैं।"
"हाँ,मुझे पता है...,पर तुम्हें पता है कि यहां का लघुतम मार्ग के लिए क्या करना होगा..सिर्फ तीन बार बोलना होगा मंजिल तक पहुंचाओ झरना।ऐसा करने से अभी के अभी कुमार वहां पहुंच जाएंगे।नहीं तो वहां तक पहुंचने में कम से कम तीन दिन लगेंगे।"
राजकुमार मध्यवर्द्धन सब सुन चुका था।वह वैसा ही किया जैसा कि चिड़ियों ने बातें की थीं।
पहले वह मोरनी का नीला पँख ढ़ूढ़ा,फिर तीन बार बोला
"मंजिल तक पहुंचाओ झरना"!!
अचानक चमत्कार हो गया।मध्यवर्द्धन अब सुनहरी पहाड़ी के पास था।
दूर से ही बड़ी बड़ी सींगों वाले बारहसिंगे दिख रहे थे।
राजकुमार ने वहीं जमीन पर मोरनी के पँख से लिखा
"मेरी छड़ी"
सचमुच पहाड़ी में एक गुप्त दरवाजा खुल गया।
राजकुमार अपने सैनिकों को पीछे ही छोड़ रखा था।वह अकेले ही गुफा में घुसा।चारों तरफ अंधकार था..धुप्प अंधकार..पर बड़ी निडरता के साथ राजकुमार मध्यवर्द्धन आगे बढ़ता गया।वहां शीशे का पिटारा रखा था।उसे उठाकर वह चुपचाप बाहर निकल गया।
रात खत्म होने वाली थी।वह जल्दी जल्दी वहां से निकल जाना चाहता था।
उसने घोड़े पर बैठकर एड़ लगा दिया।
अब वह वापस झील के रास्ते पहुंचगया था,जहां उसके सैनिक उसका इंतजार कर रहे थे।
***
राजकुमार मध्यवर्द्धन बहुत खुश था।उसके पास परियों की छड़ी आ गई थी।
राजकुमार मध्यवर्द्धन शीशे के पिटारे को लेकर उस वृक्ष के नीचे पहुंचे,जहां वह हिरणी उसका इंतजार कर रही थी।
जैसे ही शीशे के बँद पिटारे पर हिरणी की परछाईं पड़ी वहअपनेआप चटख गया और छड़ियाँ आजाद हो गई।
अब रँगो की रानी परी आजाद हो गई।
उसने राजकुमार मध्यवर्द्धन को बहुत आशिर्वाद दिया।
वह उसके साथ बसंतीपुर आई।
वहां राजकुमार मध्यवर्द्धन और सुलेखा की धूमधाम से विवाह संपन्न हो गया।
रानी परी ने अपने रँगलोक जाने से पहले राजकुमार और अपनी बिटिया को खूब आशिर्वाद दिया।वह अपनी छड़ी घुमाई और एक जादुई आईना दिया।और फिर अपने लोक लौट गई।
उस जादुई आईने में बहुत कुछ दिखाई देता था।कोई कुछ भी सोचे वह दिखने लगता था।
राजकुमार मध्यवर्द्धन और सुलेखा अब पति पत्नी बन गए थे।वे अब बहुत ही खुश थे।
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स्वरचित...सीमा✍️
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