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बालधारावाहिकःपरछाईं भाग7

5 दिसम्बर 2021

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भाग7..

आगे....

राजकुमार सुमेर अपना घोड़ा दौड़ाते हुए जा रहा था।उसे न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि मेघमवन में ही राजकुमारी सुगंधा के छिपे रहस्यों का पर्दा है,जिसकी तहकीकात बहुत ही जरूरी है।
मेघमवन बहुत ही घना था और रहस्यों से भरा पूरा था।
शाम घिरने लगी थी,राजकुमार एक सुरक्षित जगह की तलाश कर रहे थे।

वह धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था,अचानक उसकी नजर सामने पड़ी।

वह दँग रह गया।इस वनभूमि में एक सफ सुथरी जगह..।वहां एक पर्णकुटी भी थी,थोड़ी दूर में एक पतली सी नदी भी बह रही थी।

रात हो ही चुकी थी,राजकुमार को लगा कि यहां रात गुजारा जा सकता है।इसलिए वह घोड़े से उतरकर कुटिया के द्वार पर पुकारने लगा
"कोई है..,क्या रात भर के लिए मुझे यहां शरण मिल सकता है।"
थोड़ी दोर बाद एक बूढ़ी औरत बाहर आई।यद्यपि कि वह अत्यंत वृद्धा थीं,पर उनका ललाट अतीव तेज से चमक रहा था।
सुमेर ने उन्हें प्रणाम कियाऔर आने का प्रयोजन बतलाया,तथा रातभर रुकने की इजाजत माँगी।
वह देवी तुरंत ही तैयार हो गई।

राजकुमार सुमेर अपने घोड़े को नदी के किनारे जल पिलाया।थोड़ा जल एक पात्र में लेता आया।
एक पेड़ के नीचे घोड़े को बांधकर वह कुटिया में चला आया।
उसके पास कुछ फल पहले से ही थे।जब वह कुटिया में आया तो वह वृद्धमहिला अपने लिए खीर बना रहीं थीं।
उनके पास एक छोटा सा चूल्हा था और लकड़ी बहुत ही धुँआ कर रही थी।

सुमेर ने देखा कि लकड़ी भीगी हुई है तो वह बाहर वन में जाकर सूखी लकड़ियाँ ले आया।

यह देख वह माता बहुत प्रसन्न हुईं।उन्होंने उसे भी खीर दिया।
सुमेर ने भी अपने साथ लाए फल उन्हें खिलाए।

रात में वह सो गया।जब मुँह अंधेरे उसकी नींद खुली तो उसने देखा कि वह खुले आसमान के नीचे सोया है और उसके चारों ओर नीला प्रकाश भर गया है।

सुमेर आश्चर्यचकित हो गया..,,अरे..यह क्या है..!!,वह कुटी,वह माता...!!
वह सोच रहा ही था कि अचानक वनदेवी प्रकट हो गईं।
उन्होंने सुमेर को आशीर्वाद दिया और कहा
"पुत्र सुमेर ,तुम्हारी हर मनोकामना पूरीं हों।"

सुमेर प्रसन्न हो गया।वह बोला
"प्रणाम माता,मैं राजकुमारी सुगंधा की खोज में निकला हूँ..पता नहीं कहाँ ढ़ूढ़ूं।"

वनदेवी ने मुसकुरा कर कहा
"आशिर्वाद पुत्र,तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो।,उन्होंने उसे एक छोटी सी लकड़ी दी और कहा,, जहां भी जाना हो तो इससे बोलना यह तुमको वहां तक पहुंचा देगी।"

राजकुमार सुमेर ने उन्हें प्रणाम किया।वह अदृश्य हो गईं।
सुमेर अपने घोड़े पर बैठकर आगे बढ़ने लगा।
उसके पास जादुई लकड़ी थी।लह उस लकड़ी से बोला
"मेरी प्यारी लकड़ी मुझे वहां पहुंचा दे ,जहां सुगंधा रहती है।"
पलक झपकाने की दोर थी कि सुमेर उसी दिव्य कुंड  पर पहुंचा,जहां सुकन्या मगरमच्छ के रूप में थी।पर यह कुंड के दूसरे छोर पर था।

वहां का वातावरण एकदम रहस्यमय था।आसमान के बादल जमीन को छू रहे थे।घनेदार आदमकद वृक्ष भरे पड़े थे पर धूप खिली थी आसमान इंद्रधनुष से सजा हुआ था।
इतनी खूबसूरत जगह सुमेर ने कभी भी नहीं देखा था।
वह इन वादियों की खूबसूरती में खो गया।

कुछ क्षण तो उसे लगा कि वह सब भूलकर यहीं रह जाए..पर फिर उसे सुगंधा का खयाल आया।वह घोड़े को एक जगह खड़ा कर दिया और आगे बढ़कर कोई रास्ता ढ़ूढने लगा।

तभी आसमान में अंधकार सा छा गया और सैकड़ो हजारों में बत्तखें आसमान से उतरकर पंक्ति बनाकर चलने लगे।
सुमेर भी उनके पीछे पीछे चलने लगा।

सारे बत्तखें एक छोटे से झोपड़ी में जाने लगे।हैरान परेशान सुमेर भी उसी झोपड़ी में घुस गया।वह हैरान था..वहां तो खुफिया रास्ता भी था।सारी बत्तखें सीढ़ियों से नीचे उतरती जा रहीं थीं।
सुमेर भी नीचे उतरते जा रहा था।सब बत्तखें जैसे अंधेरे में गायब होती जा रहीं थीं।
सुमेर को क्या लगा वह एक बत्तख को पकड़ लिया।
वह एक युवती में बदल गई।बहुत उदास थी..बहुत ही उदास।
बोली "कुमार,आप सुगंधा दीदी को बचाने आए हैं न।हम सबलोग बहुत ही परेशान और दुखी हैं।परीलोक में राक्षसों का बहुत अत्याचार बढ़ गया है।हमलोगों को ऐसे ही किसी भी रूप में बदल देता है।..वह रोने लगी।
..कुमार आप..जरूर कामयाब होंगे।"

"पर कैसे.."..मैं किधर जाऊं..कुछ समझ ही नहीं आ रहा है।"सुमेर ने कहा।

बतख बोली"कुमार आप आगे बढ़ते जाईए,पर संभलकर..कहीं आपका भी वही हश्र नहीं हो जाए जो की हमारा हुआ है।"

"आगे..,सुमेर ने हाथ से इशारा किया..।

बतख भी हाथ से ही इशारा कर बोली.."इधर ।"

फिर वह भी अंधेरे में गायब हो गई।

सुमेर एक बार घबराया पर अंधेरे में आगे बढ़ता गया।
थोड़ी देर में उसकी आँखें फटीं की फटीं रह गई।
वह एक सोने के खजाने में खड़ा था।एक से बढ़कर एक सोने के सिक्के,अशर्फियाँ..जेवरात।
उन जेवरातों में एक मोर था-सुनहरा मोर..सोने के ही पँख बने थे और सोने के पैसेभी लगे थे।
वह उस मोर को अपने हाथों में उठाया और उसके पँख सहलाने लगा।
अचानक मोर के पँखों से तेज हवाएं बहने लगीं और सभी बतखें अपने असली रुप में आने लगीं।

सुमेर खुद भी हैरान था।,,यह अचानक क्या हो गया।
अब सारी परियाँ अपने रुप में आ गईं थीं।उन परियों की रानी थी नीलम परी।

उसने सुमेर को प्रणाम किया और बोली
"कुमार आप सुगंधा की खोज करने आए हैं।राक्षस और जादूगर उंभा ने उसे परछाईं बनाकर कैद कर लिया है।
मैं उसका पता तो जानती हूँ,पर उसे असली रूप में लाना बहुत ही कठिन है।
...आप मेरी बात ध्यान से सुनिए।उंभा एक बहुत शक्तिशाली राक्षस तो है पर उसके पास बहुत सारी सिद्धियाँ भी हैं।वह सुगंधा से सिर्फ विवाह नहीं करना चाहता बल्कि हमारे पूरे परीलोक पर अपना स्वामित्व हासिल करना चाहता है।
उसे मारने के लिए आपको सुगंधा को परछाईं से अलग करना होगा।
वह उसे एक सफेद मोती बनाकर गहरे समुद्र में रखा हुआ है,जिसे उल्फ्राबर्फदानव ने अपनी शक्तियों से बर्फ बनाकर जमा दिया है।अब वह एक मोती के रूप में है।
अगर समुद्र का जमा पानी चटक जाए और धूप की किरणें उस मोती पर पड़ने लगे तो उसकी परछाईं को तोड़ा जा सकता है।जो मैं आपको मंत्र दे रही हूं उसे बस दोहरा देना अपने आप मोती का जादू टूट जाएगा।
पर तैयार रहना ये तीनों राक्षस बहुत ही होशियार हैं।और बहुत वीर भी।"
यहकहकर नीलम परी ने उसके कान में एक मंत्र दिया।
सारी परियाँ आजाद थीं।उन्होंने कहा
"राजकुमार,आज से इस सारे खजाने के मालिक आप हो।..आप विजयी होकर ही वापस आएं।"

***

सुमेर ने वनदेवी द्वारा दिए उस लकड़ी से बोला
"सुन मेरी प्यारी लकड़ी,मुझे उस समुद्र पर पहुंचा दे जहाँ सुगंधा है।"
अब सुमेर समुद्र के पास पहुंच गया था।चारों तरफ घना कोहरा पसरा हुआ था।राजकुमार ठंड से काँपने लगा।

तभी उसे एक विशालकाय शंख दिखाई दिया।
उसमें एक दरवाजा बना था।सुमेर उस शंख में सर्दी से बचने के लिए घुस गया।
अंदर एक राक्षस सो रहा था।अचानक हुई हलचल से उसकी नींद टुट गई और वह क्रोध से पागल हो गया।

उसने सुमेर पर हमला कर दिया।सुमेर भी तैयार था।दोनों तरफ से तलवार चलने लगी,पर सुमेर बहुत बहादुर था और बलशाली भी।राक्षस हार गया।राजकुमार ने उसके लंबे कान काट लिए,कानों के कटते ही वह एक राजकुमार में बदल गया।बादलों का राजकुमार मेघ।
मेघ ने सुमेर को प्रणाम किया और कहा
"कुमार,बरसों से इस योनी में भटक रहा था।आपने मुक्ति दिला दी।यह तलवार आप ही रखिए।यह एक जादुई तलवार है,इससे धुंआ,बादल और पानी भी बरस सकता है।बस,आपको इससे विनती करनी होगी।
..और आज से आपको ठंड से डरने की जरूरत नहीं।आप जब तक चाहें इस शंख में आराम से रह सकते हैं।
राजकुमार सुमेर ने राजकुमार मेघ को धन्यवाद दिया और शंख में रहने लगा।
***
उस समुद्र तट पर सूर्य भी नहीं निकलता था,बस शाम की तरह अंधेरा होता था।
राजकुमार सुमेर समुद्र तट पर चहलकदमी कर रहे थे।पूरा समुद्र जमा हुआ था।
नीलम परी ने जमे समुद्र को पिघलाने का तरीका नहीं बताया था।
कुमार सुमेर बहुत परेशान था।वह प्रतिदिन समुद्र को देखता और इसके बर्फ को पिघलाने का उपाय सोचता।
उस समुद्रतट म़े सूर्य भी नहीं निकलता था।हमेशा शाम की तरह अंधियारा छाया रहता।
एक दिन बहुत खोजबीन करके कुमार ने कुछ लकड़ियां एकत्रित कर उसमें आग भी लगाया किंतु यह क्या..!!,इधर आग जली उधर आसमान से बड़े बड़े बर्फ के पत्थर गिरने लगे।
समुद्र पर अब बर्फ की मोटी चट्टान बन गई थी।
सुमेर उस शाम बहुत ही परेशान था।कुछ उदास भी..उसे लग रहा था कि कहीं वह हार न जाए।
वह अपने शंख महल में बैठा था।तभी उसे कहीं से बाँसुरी की धुन सुनाई दी।
आवाज दूर से आ रही थी ।हलकी और मीठी धुन थी। सुमेर उन धुन में खो गया।इतना..कि उनके साथ गानेलगा।
उसे संगीत में महारथ हासिल था।वह गाता गया बँसी बजती रही..।रातभर ऐसा ही चलता रहा।
समुद्र का सारा बर्फ चटख गया था।सुमेर के संगीत का कमाल था।कभी भी न उगने वाले सूर्य आज नभ में चमक रहे थे।सूरज की किरणें छनछनकर समुद्र के अंदर जा रहीं थीं।
समुद्र में गहरे पानी में एक सीप में सफेद मोती बंद था।
सुमेर समुद्र में कूद पड़ा।और तैरतै हुए गहरे पानी में जा पहुंचा।
दूर से ही उसे सीप चमकता हुआ दिख रहा था।सुमेर उसे लेकर पानी के ऊपर आ गया।सीप खुदबखुद बीचोबीच फट गया और सफेद मोती बाहर आ गया।
अब सूरज की सीधी किरणें उसपर पड़ रहीं थीं।
धीरे धीरे सफेद मोती की परछाईं पड़ने लगी।कभी सफेद तो कभी नीली तो कभी गुलाबी..।

नीलम परी का दिया मंत्र सुमेर को याद था।उसने बारबार यह मंत्र दोहराना शुरू कर दिया।

अब ये सारे रंग नाचने लगे।गोल गोल कभी आड़े कभी तिरछे..और सुमेर ने हर रंग के गोले। में पड़ने वाले मटमैले बिंदु पर अपनी तलवार अड़ा दी।

"भ्म्म...!!,,से आवाज हुआ और सुगंधा अपने रूप में वापस आ गई।
एकदम निर्जीव सी ,उंभा ने उसकी सारी शक्तियां लेकर कहीं छुपा दी थी।
राजकुमार मेघ ने उसे अपने अंदर छिपा लिया।

तभी आकाश से अट्टहास सुनाई पड़ने लगा।उल्फ्रा और उंभा दोनों ही बहुत क्रोधित थे।
उल्फ्रा बर्फदानव का जादू बिखर गया था।समुद्र का बर्फ टूट गया था।वह बर्फ में ही अपनी सारी शक्तियां छिपा कर रखता था।
उंभा का भी खेल खतम हो गया था।उसके सफेद मोती का तथा बत्तखों बनाने वाला जादू खत्म हो गया था।

दोनों ने राजकुमार सुमेर के साथ युद्ध छेड़ दिया।

दोनों राक्षस भी बहुत बलशाली थे।सुमेर जिंदादिली से युद्ध कर रहा था।
***
इधर बसंतीपुर के राजमहल में सुलेखा के जादुई आइने के सामने सभी लोग बैठकर देख रहे थे।

राजकुमार अच्युत को वनदेव ने सिद्धि दिया था कि जहा चाहे,पलभर में पहुंच सकता है।उसके पास गुरु सुभद्र का दिया तलवार भी था,जिससे उसने मायाविनी का अंत किया था।
उसने राजकुमार मध्यवर्द्धन से कहा
"चलो भ्राता,अब सुमेर को हमारी आवश्यकता है।"

"हाँ भैया,मध्यवर्द्धन ने कहा।दोनों घोड़े पर बैठ पलभर में उस अज्ञात समुद्र तट पर पहुंच गए ।

वहां जोरों का युद्ध चल रहा था।कभी उल्फ्रा अपने मुंह से बर्फ के गोले छोड़ता ।कभी अपनी पैनी नाखूनों से उंभा सुमेर को नोचकर खा जाने की कोशिश करता।

तभी सुमेर के दोनों बहादुर भाई आकर युद्ध करने लगे।
मध्यवर्द्धन ने अपने तलवार से उल्फ्रा का सिर काट दिया,तो सुमेर ने उसके दोनों बाजूएं।

उल्फ्रा कटे वृक्ष की तरह जमीन पर गिर पड़ा।थोड़ी देर बाद मर गया।
उसके मरते ही जमी हुई बर्फ पिघलने लगी और वहां एक शीतल,सुंदर झील बन गई।

उंभा जोरोंसे दहाड़ रहा था।चारों तरफ भयंकर  कोलाहल छाया हुआ था।उंभा बहुत विशालकाय राक्षस था।
उसकी एक आँख ठीक बड़े से नाक के ऊपर था और बड़े बड़े दो सींग।
जब भी दहाड़ता तो लगता कि धरती हिल जाएगी।
राजकुमार सुमेर ने तीर चलाया तो उसके दोनों कान काट लिए।
राजकुमार अच्युत ने अपनी तलवार से उसके गर्दन पर वार किया।
उसी समय राजकुमार मध्यवर्द्धन ने तीर का निशाना उंभा के आँख पर लगाया।
एक साथ तीन तीन वार...उंभा झेल नहीं पाया।वह धराशायी होकर जमीन पर गिर पड़ा।
उसके गिरते ही आसमान में इंद्रधनुष छा गए और उनसे रँगों की वर्षा होने लगी।
चारों ओर फूल खिल उठे।पूरा वातावरण उल्लासित हो गया था।
तीनों भाईयों ने आपस में गले मिले।उनका आधा काम तो पूरा हो गया था।
अब समय था वापस लौटने का।
राजकुमार सुमेर ने राजकुमार मेघ को उस अज्ञात तट का राजा बना दिया।मेघराज के राजा बनते ही मेघों ने खुशियों की सुनहरी बारिश करने लगे।
सुमेर सुगंधा से मिलकर बहुत ही खुश था।परंतु उसकी सारी शक्तिया़ं उंभा ने कहीं छुपा दिया था...और साथ में उसकी छड़ी भी।
अपनी शक्तियों के बिना सुगंधा बहुत ही क्षीण महसूस करती थी।

****
स्वरचित...सीमा....
©®
क्रमशः

Anita Singh

Anita Singh

बहुत सुन्दर कहानी

27 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर 👌 👌 👌

22 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

👌👌

19 दिसम्बर 2021

Seema Priyadarshini Sahay

Seema Priyadarshini Sahay

Thanks a lot sir🙏

5 दिसम्बर 2021

 Dr Vasu Dev yadav

Dr Vasu Dev yadav

बहुत ही शानदार, रोमांचित करने वाली

5 दिसम्बर 2021

8
रचनाएँ
परछाईं
5.0
बालसाहित्य पर धारावाहिक लिखने की मेरी कोशिश है। आशा है कि आप सबसे प्यार और स्नेह मिलेगा।
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परछाईं ः भाग1

21 नवम्बर 2021
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बालधारावाहिकःपरछाईं भाग-5

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बालधारावाहिकःपरछाईं भाग-6

25 नवम्बर 2021
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7

बालधारावाहिकःपरछाईं भाग7

5 दिसम्बर 2021
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<div>भाग7..</div><div><br></div><div>आगे....</div><div><br></div><div>राजकुमार सुमेर अपना घोड़ा दौड़ात

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बालधारावाहिकःपरछाईं अंतिम भाग

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