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परछाईं ःभाग 3

22 नवम्बर 2021

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बाल धारावाहिक
परछाईं भाग-३
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पूरा बसंतीपुर फूलों और रौशनियों से सज चुका था।राजकुमार अच्युत राजमहल में पधार चुके थे।राजमाता बैजंती देवी ने आरती उतारकर राजकुमार और राजकुमारी दोनों अआ स्वागत किया।
राजकुमार अच्युत ने राजकुमारी का परिचय कराते हुए बताया कि राजकुमारी सुकन्या मत्स्य राज बिप्लव सेन की सुपुत्री हैं..,यह कहकर राजकुमार ने उससे परिचय तक की पूरी कहानी सुना दी।

महाराज पटवर्द्धन राजकुमारी से मिलकर अत्यंत प्रसन्न हुए।उन्होंने तुरंत ही घोड़े और सैनिक भेजकर मत्स्य सम्राट बिप्लव सेन को आदरसहित बुलवा भेजा।
राजकुमार मध्यवर्द्धन और राजकुमार सुमेर भी राजमहल पहुंच चुके थे।वे दोनों भी बड़े भाई को वापस सकुशल देख बहुत ही खुश थे।
कुलगुरु सुभद्र बहुत प्रसन्न थे अपने महावीर योद्धा को देखकर।उन्होंने अच्युत को गले लगा लिया।
***
कुछ दिनों के अंतराल में मत्स्य राज सपत्नीक राजमहल में आ पहुंचे।राजा ने स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी।
दोनों इस रिशते से खुश थे ,इसलिए एक शुभ मुहूर्त में राजकुमार अच्युत और राजकुमारी सुकन्या का शुभ विवाह संपन्न हुआ।
सारी प्रजा खूब खुश थी।राजा पटवर्द्धन भी बहुत ही खुश थे।उनकी चिंता मिट गई थी।उनको उनका एक सुयोग्य वारिस भी मिल गया था और एक  अत्यंत रूपवती और अद्भुत युवती के रूपमें अब उनको बहू भी मिल गई थी।
राजा अब वानप्रस्थ का विचार कर रहे थे।
उन्होंने राजपंडितों और ज्योतिषियों से भद्रतिथि निकालने को कहा।
वे चाहते थे कि सही समय पर राजगद्दी राजकुमार को सौंपकर वह महारानी के साथ वन की ओर निकल जाएं।

राजकुमार मध्यवर्द्धन भी ज्योतिषी में निपुण था।वह गणना करके भविष्य का पता लगा लेता था।वह एक रात अपने अध्ययन कक्ष में गूढ़ अध्ययन में लीन था,तभी किसी ने उसके द्वार पर दस्तक दिया।पर मध्य को सुनाई नहीं पड़ा।वह स्वयं में खोया हुआ था।
दस्तक देने वाले स्वयं महाराज थे.जब अंदर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिली तो वह स्वयं कक्ष में चले आए।
गहरे ध्यान में डूबा देख महाराज चुपचाप खड़े ही रहे..बिना किसी पदचाप के..अपने पुत्र को निहारते।

थोड़ी देर में एक गर्जना सी सुनाई देने लगी..जोरों का अट्टहास...,,मैं खा जाऊंगी...सबको....हा..हा..हा!!,,
राजा चौंक गए।यह आवाज तो मायाविनी का है...एक राक्षसी पिशाचिनी..।
राजा पटवर्द्धन गहरे सोच में पड़ गए..यह ..वापस कैसे आ गई..!!,अब क्या होगा?यह तो पूरा बसंतीपुर का बसंत चौपट कर देगी..।
वह अगला कदम कुछ उठाते उससे पहले ही मध्य अपने गहरे समाधि से जाग गया।वह  किसी बात से डर गया था।
पसीने से लथपथ वह किसी पत्ते कीतरह काँप रहा था।
सामने अपने पिता को देखकर वह उनके चरणों पर गिर गया।वह फूटफूटकर रोने लगा।

"पिताजी,..क्षमा करें,पर आप अभी राजसिंहासन खाली मत कीजिए...राज्य में कोई भयंकर विपदा आने वाली है।"
महाराज ने उसे गले से लगा लिया।अपने पास बुलाकर बैठायाऔर जल भी पिलाया।
महाराज ने उससे पूछा
"पुत्र..कैसी उलझन है?"
मध्य ने कहा"पिताजी,कुछ जहरीलीहवा इस भूखंड से पार होने वाली है..शायद..मैंने ऐसा कुछ देखा कि रसायन की बारिश होने वाली है..लोग..पशुधन..सब मर रहे हैं..यहां की सुंदरता नष्ट होने वाली है।
महाराज पटवर्द्धन बहुत ही अनुभवी थे।उन्हें पता चल गया था कि अगर मायाविनी आ गई तो बहुत अधिक विनाश होगा।
मगर प्रत्यक्ष में उन्होंने कुछ भी नहीं कहा।सिर्फ़ उसके हौसला बढ़ाकर अपने महल को लौट गए।

***
राजपंडितों ने भी कोई उपयुक्त लगन नहीं निकाल पाए थे,इसलिए राजा का प्रवास टल गया।

राजकुमार अच्युत अपनी पत्नी सुकन्या के साथ मत्स्य नगर घूमने गए हुए थे।
राजा पटवर्द्धन अपने मंत्रियों से रात वाली घटना पर चर्चा करने लगे।उन्होंने राजकुमार मध्य के भविस्वपन पर भी बातें कीं।
घंटों तक मशविरे करने के बाद उन्होंने एक निष्कर्ष निकाला।पूरे राज्य में यह ऐलान कर दिया गया था कि कोई भी साहसी वीर आकर सेनापति से मिले।अगर किसी के पास कोई अलौकिक शक्ति है तो वह भी राजदरबार में आकर मिले।
सभा समाप्त भी नहीं हुई थी कि दूत एक बुरी खबर लेकर आया।राज्य के पश्चिमी क्षेत्र के कुछ जगहों पर आसमान से रसायन की बारिश हो रही है।
राजा चिंता में पड़ गए।मायाविनी बहुत शक्तिशाली थी।बरसों पहले जब वह युवा ही थे तब मायाविनी ने ऐसा ही उत्पात मचाया था।
चारों तरफ आग के गोले बरसते थे।हरेभरे खेत जल जाते थे।
रसायनों की बारिश और तरह तरह की तोड़फोड़..उसने तो बस तबाही ही मचा दी थी।
तब राज गायक संगीत सेन ने अपनी विशेष विद्या के बल पर उसे एक पिटारे में बँद करके अंधेरी पहाड़ियों की गुफाओं में बँद कर दिया था।
राजा मानते थे कि उस पिशाचिनी को मात्र सैन्यबलों से हराया नहीं जा सकता।
****
राजकुमार मध्य और सुमेर दोनों शाम को राजबाग में टहल रहे थे।दोनों ही बहुत चिंतित थे।सबसे जरूरी था मायाविनी का अंत..!
राजा भी अपने शाही बाग में टहल रहे थे..बहुत ही गंभीर मुद्रा में।बहुत सोचविचार कर उन्होंने गुरु सुभद्र के आश्रम में। जाने के लिए बग्घी तैयार करने का निर्देश दिया।
उधर राजकुमार मध्य और सुमेर भी ऋषि के आश्रम पहुंच गये।
सबने ऋषि का अभिवादन किया।ऋषि सुमेर ने उनको बैठने को आसन दिया और आने का प्रयोजन पूछा।
लोग तीन थे कारण एक था।कुलगुरु बहुत ही प्रसन्न हुए।कहे"हे राजन!,जिस देश में तुम्हारे जैसा शासक और तुम्हारे पुत्रों की तरह हीरा हो,उस देश का कभी भी कोई अनिष्ट नहीं कर सकता।तुम विजयी होगे।
मेरे पास एक नहीं दो मार्ग हैं।इसे ध्यान से सुनो
....राजकुमार अच्युत ने दिव्य कुंड से अमृत लाया है,वह मेरेपास सुरक्षित है।राजकुमार सुमेर आप राज्य के पश्चिमी सीमा वाले वनखंड बसंतवन में जाईए।वहां काफी आगे जाने पर एक झरना दिखेगा।आप उस झरने से बोलिएगा कि रास्ता दो।फिर उसी रास्ते से आगे जाने पर एक चमकती शिला दिखेगी।आप उसपर अपनी प्रतिबिंब पडने दीजिएगा..फिर वह पिघलने लगेगी।आप उसे लेकर जल्द से जल्द वापस आइए।
...कुछ देर तक शांत रहने के बाद कुलगुरु ने फिर से बोलना शुरू किया..
राजकुमार मध्य,आपको तो अद्भुत शक्तियां प्राप्त है..।आप अपनी शक्तियों को जगाइए..।
"कैसे गुरुदेव?"
बेटा..,कुलगुरु बड़े  प्रेम से बोले
"बेटा मध्य,आप मध्य रात्रि में बिना डरे अपनी गणना आरंभ कीजिए..और उस दुष्ट पिशाचिनी मायाविनी का अंत का सही समय ढ़ूढ़िए।"
"जी,गुरुदेव।"
सब वापस लौट आए।
****
दूसरे दिन राजकुमार सुमेर अपने घोड़े नंद पर बैठ बसंत वन की ओर चला गया।
इधर मध्य रात्रि में मध्यवर्द्धन ने अपनी ज्योतिष गणना आरंभ किया।
रात बहुत हो गई थी.राजकुमार सुमेर ने एक वृक्ष के नीचे घोड़ा बाँधा और ऊपर चढ़कर सो गया।
राजकुमार मध्य अपनी विद्या में डूबे थे..एकदम लीन..देवी माँ कोई रास्ता सुझा दो ताकि बसंतीपुर फिर से खिल जाए..उस दुष्ट मायाविनी के मोहजाल से छूट जाए।

****
मायाविनी का जादू और तिलिस्म फैलाना जारी था।वह चाहती थी कि बसंतीपुर पूरी तरह से उसकी मुट्ठी में आ जाए।
उसका क्रोध पूरे लुआब में था।परंतु इस बार वह बारबार हार रही थी..उसे समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है!
कारण दो थे..एक दिव्य कुंड का पवित्र जल था और दूसरा राजकुमारी सुकन्या के दिव्य कर्णकुंडल..जिसे उसने अपने महल के आइने में टाँगकर चली गई थी।
दर असल वह एक परी थी ।वह भैरों राक्षस के माया में फँसकर मगर बन गई थी।वह बसंतीपुर की कृतज्ञ थी और अपनी कृतज्ञता ज्ञापन करना चाहती थी।
उसके पास कुछ दैवीशक्तियां थीं जिसे वह अपने कुंडलों में भरकर रखती थी।
बारबार अपनी तांत्रिक शक्तियां फेल होते देखकर मायाविनी जलभुन कर राख हो गई।अब वह नगर में घुसने की तैयारी करने लगी।
****
क्रमशः
स्वरचित...सीमा
©®

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कुल=3 3 1 9शब्द

Anita Singh

Anita Singh

अतिसुन्दर

27 दिसम्बर 2021

22 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

ग्रेट 👌

19 दिसम्बर 2021

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बालसाहित्य पर धारावाहिक लिखने की मेरी कोशिश है। आशा है कि आप सबसे प्यार और स्नेह मिलेगा।
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