वर्ष 2050 का समय चल रहा है। पिछले 30 सालों से कोरोनावायरस ने दुनिया में भयंकर तबाही मचा रखी है। पूरी दुनिया इसकी चपेट में है। वैज्ञानिक निरंतर प्रयास कर रहे हैं परंतु यह वायरस साल दर साल अपना स्वरूप बदलता हुआ और भी मजबूत होता जा रहा है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए सारे उपाय मनुष्यों को फायदा कम पहुंचा रहे हैं और उसके नुकसान ज्यादा सामने आ रहे हैं। उन दवाओं के साइड इफेक्ट्स रोज नई नई बीमारियां पैदा कर रहे हैं। लोग मानसिक एवं शारीरिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं। कुछ लोग पूरी तरह से सुस्त एवं शांत हो गए हैं तो कुछ लोग विकृत मानसिकता के शिकार हो गए हैं, और वह उनका स्वभाव किसी आदमखोर जानवर की तरह हो गया है। कई छोटे-छोटे देश तो पूर्णतया समाप्त हो गए हैं। अब वहां जंगल एवं जंगली जानवरों का वर्चस्व है। जो कुछ थोड़े बहुत बचे हुए हैं वह भी जंगलों में जानवरों की जैसी जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। बड़े-बड़े देशों ने मिलकर एक वैज्ञानिक रिसर्च सेंटर बना रखा है जहां के डॉक्टर दिन-रात इस कोशिश में लगे हुए हैं कि इस कोरोनावायरस का कोई ऐसा एंटीडोज बनाया जाए जिससे कि मनुष्य पूरी तरह से सुरक्षित हो सके। परंतु वह अब तक पूर्ण पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाए हैं। चीन जिसे इस वायरस की मातृभूमि कहा जाता है वह भी बुरी तरह से इसकी चपेट में आ गया है। शायद वह अपने बनाए जाल में खुद ही फंस गया है और अब उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा। कहां तो वह विश्व गुरु बनने का सपना देख रहा था मगर आज स्थिति यह है कि वह भी अन्य देश के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर कोरोनावायरस से निपटने का उपाय ढूंढने में लगा हुआ है।
भारत में भी सरकार अपने देश की जनता को बचाने का हर संभव प्रयास कर रही हैं। देश में सभी सड़को और बाजारों को पूरी तरह से वायरस प्रूफ बना दिया गया है और इसमें सबसे बड़ा सहयोग है डॉक्टर प्रधान का। डॉक्टर प्रधान एक बुजुर्ग वैज्ञानिक है परंतु वह बेहद स्वस्थ एवं फूर्तिले हैं और उनका दिमाग तो किसी कंप्यूटर से भी तेज काम करता है। यूं तो उनकी उम्र के बहुत सारे वैज्ञानिक इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं। देश की जनसंख्या भी एक तिहाई है बची हुई है परंतु डॉक्टर प्रधान ने एक उपाय निकाला जिस पर सरकार ने भी अमल किया और पूरी देश के सभी लोगों को सिर्फ एक शहर में इकट्ठा करके और उस शहर को पूरी तरह से वायरस प्रूफ बना दिया गया। इसके लिए डॉक्टर प्रधान के द्वारा अविष्कार किया गया एक विशेष प्रकार की कांच से पूरे शहर को ,गलियों को एवं बाजारों को कवर कर दिया गया है। देश की जो भी बची खुची जनता है वह इन्हीं कांच की दीवारों के बीच अपना जीवन यापन कर रही है। सरकार तो निश्चिंत हो गई है क्योंकि उनके अनुसार अब जनता सुरक्षित है परंतु डॉ प्रधान बेहद चिंतित हैं। क्योंकि उन्हें मालूम है कि मनुष्य को इस तरह से बहुत ज्यादा दिनों तक बंद करके नहीं रखा जा सकता। इस तरह से उनका मानसिक विकास पूरी तरह से रुक जाएगा और मनुष्य धीरे-धीरे एक मशीन बनकर रह जाएगा.... एक जिंदा लाश....। रात के 2:00 बजे हैं मगर वह अभी भी अपनी प्रयोगशाला में जीवन का विकल्प तलाशने में जुटे हुए हैं......
शेष कहानी अगले भाग में ......