आज उन्हें अपने अनन्य मित्र प्रोफेसर दिवाकर की बहुत ज्यादा याद आ रही थी, या यूं कहें की एक जरूरत सी महसूस हो रही थी। उन दोनों की मुलाकात नासा में हुई थी परंतु अपने देश के लिए कुछ कर दिखाने की ललक में प्रोफेसर दिवाकर भारत आ गए थे। उन्होंने चंद्रयान और मंगलयान प्रोजेक्ट में बहुत बड़ा योगदान दिया, जिसके लिए भारत सरकार ने उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया। परंतु इस वायरस से वह जीत नहीं पाए और असमय ही काल के गाल में समा गए। कहते हैं कि डॉक्टर और वैज्ञानिक भावशून्य होते हैं,परंतु ऐसा नहीं था प्रोफेसर दिवाकर का चेहरा याद आते हीं डॉ प्रधान की आंखों से आंसू छलक पड़े। अब उनके लिए कंप्यूटर के सामने बैठना मुश्किल हो गया। उन्होंने स्क्रीन ऑफ किया और अपने कमरे में जाकर सोने का प्रयास करने लगे।
सुबह सिक्योरिटी अलार्म बजने से उनकी आंखे खुल गई। सिक्योरिटी अलार्म यह बता रहा था कि उनके दरवाजे पर कोई उनका इंतजार कर रहा है। वह समझ गए कि इतनी सुबह सुबह शेखर ही हो सकता है। शेखर उनके मित्र प्रोफेसर दिवाकर का इकलौता पुत्र था। वह अत्यंत ही मेधावी था और उसकी रगों में भी अपने पिता का वैज्ञानिक खून दौड़ रहा था। दरवाजे पर पहुंच कर उन्होंने स्क्रीन देखा। सच में शेखर ही था।उन्होंने सिक्योरिटी को आर्डर दिया और दरवाजा खुल गया।
" गुड मॉर्निंग अंकल! आज तो आप काफी देर तक सोए रहे। लैब नहीं चलना क्या?"
" बस 5 मिनट रुको मैं अभी तैयार होकर चलता हूं। कल काफी देर से नींद आई इसीलिए सुबह जरा देर तक सो गया।"
" अरे अंकल! मैं तो कहता हूं कि अब आप रिटायरमेंट ले लो और आराम से घर पर रहो।"
" डॉक्टर और वैज्ञानिक कभी रिटायर नहीं होते बेटा।"
" आप बिल्कुल पापा की तरह बात कर रहे हैं। पापा भी हमेशा यही कर रहा कहां करते थे मगर ईश्वर ने ही उन्हें......"-- इतना कहते हुए शेखर ने एक लंबी आह भरी और आंसुओं को अंदर ही अंदर समाहित करने का प्रयास किया।
डॉ प्रधान ने शेखर की पीठ थपथपायी और एक मौन सांत्वना दी। अगले 15 मिनट के अंदर ही वह दोनों घर के पीछे स्थित प्रयोगशाला में पहुंच चुके थे।
" अंकल आज जब मैं कंप्यूटर पर पुराने फाइल्स देख रहा था तो मुझे पिताजी की एक फाइल मिली। जिसमें उन्होंने जो रिसर्च किया था वह सारी डिटेल्स थी। क्या आपको उनके प्रोजेक्ट ग्रीनलैंड-20 के बारे में कुछ पता है ?"
"क्या कहा तुमने ? ग्रीनलैंड-20.... अरे यह तो उसका ड्रीम प्रोजेक्ट था और उसने इस पर काफी रिसर्च भी किए थे। परंतु बीच में कोरोना के कारण हम सब इस वायरस का एंटी डोज बनाने में उलझ गए फिर दिवाकर का निधन.... और यह ड्रीम प्रोजेक्ट मेरे दिमाग से भी स्लिप कर गया। मंगलयान की सफलता के बाद एक दिन हम लोग जब वहां के सेटेलाइट द्वारा भेजी गई तस्वीरें और डिटेल्स चेक कर रहे थे तो हमें एक अजीब सी चीज दिखाई दी। यह देखो---- इतना कहते हुए डॉक्टर प्रधान ने शेखर द्वारा खोली हुई फाइल पर एक जगह क्लिक किया और वह इनलार्ज होकर बड़ा हो गया।
" यह जो ग्रीन कलर की डॉट तुम्हें दिखाई दे रहे हैं, दिवाकर के मुताबिक यह मंगल ग्रह के पीछे का भाग है और यहां अवश्य ही वनस्पति एवं ऑक्सीजन है। क्योंकि किसी भी ग्रह का रंग हरा या नीला तभी होता है जब वहां जल और वनस्पति की मात्रा होती है। हमारे पृथ्वी भी अंतरिक्ष से नीले रंग की दिखाई देती है क्योंकि यहां पर जल की मात्रा सर्वाधिक है तथा वायुमंडल में भी नाईट्रोजन की प्रचुर मात्रा है। प्रोफेसर दिवाकर के मुताबिक यहां का वातावरण अवश्य पृथ्वी के जैसा होगा अथवा यहां संभव है कि कुछ जीव रहते हो।"
" मगर पिताजी को ऐसा क्यों लगता था कि वहां पर जीवन है?"
" यह तो मुझे नहीं मालूम बेटा! लेकिन ना जाने क्यों दिवाकर बार-बार यह कहता था कि मुझे पक्का विश्वास है कि वहां पर
जीवन है और एक बार तो उसने सरकार को एक प्रपोजल भेज दिया था की जिसका नाम प्रोजेक्ट ग्रीनल़ैंड- 20 था। प्रपोजल का उद्देश्य था कि एक विशेष यान बनाकर उसमें मनुष्य को उस ग्रह पर भेजा जाता। परंतु सरकार ने उनका यह प्रपोजल रद्द कर दिया क्योंकि इसमें मनुष्य की जान जाने का 99% खतरा था।"
"परंतु यह खतरा तो हर अंतरिक्ष यात्री के साथ होता है। अंतरिक्ष में जाने वाले की जिंदगी को 99% खतरा होता ही होता है फिर सरकार ने यह प्रपोजल इस आधार पर रद्द क्यों किया ?"
"क्योंकि इस यान में तुम्हारे पिताजी ,प्रोफेसर दिवाकर स्वयं जाना चाहते थे।"
" क्या?"
शेष कहानी अगले भाग में .....