भाग - 2
बेला के जीवन में इस समय गहरे उतार चढ़ाव उमड़ रहे थे ,एक ओर दासों की राजगद्दी पर उसे बैठना था तो वहीं दूसरी ओर शत्रुओं को दूर धकेलने की कोशिश भी करनी थी।बेला को अपना नाम अपनी मा से मिला था वह अपनी मा 'विदुषी बेला' की तरह ही थी ,सुंदर ,सुशील और साहसी।
बेला ने बाल्यकाल बिना मा के बिताया था इसलिए वह खुद को मजबूत करते करते एक पुरुष की तरह वीर और गंभीर बन चुकी थी।
दासों के शत्रु कहे जाने वाले दस्युओं ने आरंभ में हर संभव साजिश की और अग्नि वत्स समेत बेला पर हमले किए पर कभी बेला ने तो कभी किस्मत ने उनकी रक्षा की पर शत्रु अभी भी खत्म नहीं हुए थे । राखीगढ़ी का भविष्य क्या होगा ये चिंता हर समय अग्नि वत्स को सताए रहती थी क्योंकि वो नहीं चाहते कि बेला अपनी मा की तरह किसी साजिश का शिकार हो जाए।
एक दिन कनकमंजरी अपनी कुछ सखियों सहित उद्यान में बैठी हंसी ठिठोली में व्यस्त थी ।
सभी सखियां दस्यु स्त्रियों की नकल उतार उतार कर खूब हंस रही थीं तभी कुछ पक्षी उधर ही उड़कर चले आए और डालियों पर बैठकर अजीब अजीब सी आवाजें निकालने लगे ।
उनकी इस प्रकार की आवाज़ों से वहां हो रहा कोलाहल कुछ क्षणों के लिए रुक गया ।कनकमंजरी ने उन्हें बड़े ध्यान से सुना और कुछ क्षणों बाद खुले मुंह के साथ कहा ,"नहीं मैं अब और देर यहां नहीं रुक सकती"।
"ये तुम क्या कह रही हो इन पक्षियों की बातें सुनकर सखी",पास ही बैठी एक और सखी उसकी ओर देखते हुए बोली।
"ये कह रहे थे बेला.... हां वो संकट में है.. दस्यु..वो संकट में है".....हड़बड़ाते हुए कनकमंजरी ने सखी को जवाब दिया।
"फिर हमें देर नहीं करनी चाहिए और उसे बचा लेना चाहिए".....सभी सखियों ने एक साथ कहा।
"हां तो चलते हैं ".....कनकमंजरी ने कहा।
इसके बाद सभी सखियां अपने अपने घोड़ों पर सवार हो गईं ,उनके घोड़ों पर सवार होते ही पक्षी डालियों से तुरंत उड़ चले ,सभी सखियों ने उनका पीछा किया काफी दूर पहुंचने के उपरांत एक वियावान स्थान पर पहुंचकर पक्षी फिर से डालियों पर जाकर बैठ गए और वही अजीब अजीब आवाजें फिर से करने लगे।
कनकमंजरी सहित सभी सखियां घोड़ों से उतरी और हाथों में तलवारें लेकर हर तरफ बेला को ढूंढने लगीं पर बेला उन्हें वहां नहीं दिखी।
कुछ दूर आगे बढ़ने पर उन्हें एक हट्टा कट्टा नौजवान दिखाई दिया उसका शरीर किसी योद्धा की तरह एकदम सधा हुआ था ,उसके अंडाकार चेहरे पर बड़े बड़े उभरे नयन उसे बहुत आकर्षक बना रहे थे किन्तु उसके निकट बेला मूर्छित पड़ी हुई थी जो कनकमंजरी सहित सभी सखियों को शंकित किए हुए था।
"सावधान नौजवान !..बेला से दूर हट जाओ "....कनकमंजरी ने चेतावनी देते हुए कहा।
सभी सखियों ने चारों तरफ से उसे घेर लिया ,जल्दी से एक सखी बेला के निकट पहुंची और उसके शरीर को छू कर बोली "ये जीवित है सखी"।
"शुक्र है हम सभी समय रहते यहां आ पहुंचे".... एक दीर्घ स्वांस छोड़ते हुए कनकमंजरी ने कहा।
तभी एक सखी उस नौजवान के निकट पहुंची और अपनी नंगी तलवार को उसके गर्दन से सटा कर बोली,"यहां क्या हुआ था और तुम कौन हो ....जो भी सत्य है बिना देरी किए कह डालो!"
उस नौजवान में सखी की बात सुनकर नाम मात्र का भय उत्पन्न नहीं हुआ ,उसने बड़ी सावधानी से अपने दोनो हाथों से तलवार की नोंक को गले से नीचे करके कहा,"वीर का परिचय उसकी वीरता होती है जिसका अवसर तुम्हारी घायल सखी मुझे दे चुकी है फिर भी अगर तुम जानना ही चाहती हो तो सुनो,जब मैं यहां से गुजर रहा था तो मुझे कुछ नागों से लड़ती हुई तुम्हारी सखी दिखी थी ,वह बड़ी वीरता से उनका मुकाबला कर रही थी तभी पीछे से उसपर एक नाग ने हमला कर दिया और वह बेसुध होकर जमीन पर जा गिरी वो उसे घातक वार करके उसकी जीवन लीला खत्म करने वाले थे पर मैंने उनसे मुकाबला किया और उन्हें परास्त कर दिया और वे भाग खड़े हुए।"
कनकमंजरी उसको घूरकर देखने लगी और बोली,"अभी अभी तुमने कहा कि तुम यहां से गुजरे थे पर तुम्हारी सवारी तो दूर दूर तक नजर नहीं आ रही है"?
कनकमंजरी की बात सुनकर नौजवान ने चारों तरफ कुछ देखने का प्रयास किया पर फिर एकदम से कनकमंजरी की ओर सर घुमा कर बोला ,"शायद मेरा घोड़ा कहीं चला गया है...अभी नया लिया था"।
उसकी बातों में कनकमंजरी को शक की बू आने लगी उसने झट से अपनी म्यान से तलवार निकाली और उसकी ओर बढ़ने लगी।
वह थोड़ा घबरा गया पर बिल्कुल स्थिर खड़ा हुआ फिर से विनम्रता के साथ बोला ,"देखिए मैंने एकदम सत्य कहा है, यहां मेरा घोड़ा था किन्तु युद्ध करते समय वह बीच में कहीं चला गया ,आप व्यर्थ ही शंका कर रही हैं।"
कनकमंजरी समझ गई थी कि ये कोई शत्रु है और झूठ बोल रहा है वह अपने वार से उस नौजवान को यमलोक भेजती इसके पहले डालियों पर बैठे पक्षी अजीब स्वर से पुनः आवाज़ करने लगे और डालियों पर बैठी एक चिड़िया उड़कर कनकमंजरी के निकट पहुंचकर एक स्त्री में बदल गई।
"यह सत्य कह रहा है ,इसने ही बेला के प्राण उन लोगों से बचाए हैं",चिड़िया से स्त्री में बदल चुकी हंसावली ने कहा।
कनकमंजरी को अब उसकी बात का विश्वास हो गया उसने तलवार वापस म्यान में रख ली।
बेला को अब होश आ चुका था और अपनी सखियों को अपने निकट पाकर वह बहुत प्रसन्न भी थी।
वह धीरे धीरे उठी और उस नौजवान की ओर देखने लगी वह भी उसे देखने लगा।
"आप अब सुरक्षित हैं और अपनी सखियों संग वापस लौट जाईए".....उसने बेला से कहा।
किन्तु बेला एकटक उसे निहारे जा रही थी जैसे उसने बेला पर कोई जादू कर दिया हो।
"आप कौन हैं ?".....बेला ने अपनी दृष्टि को थोड़ा दबाकर पूछा।
"मैं दस्यु शक्ति वेग का पुत्र मलय हूं "....उसने मुस्कुरा कर कहा।
उसके मुख से शक्ति वेग नाम सुनकर कनकमंजरी सहित सभी सखियों ने अपनी अपनी तलवारें वापस म्यान से खींच ली।
"क्या मैं आप का परिचय प्राप्त कर सकता हूं ?".....मलय ने एकटक बेला को देखकर कहा।
बेला कुछ आगे कहती इसके पहले कनकमंजरी ने तलवार दिखाते हुए मलय से कहा,"शत्रु का परिचय नहीं पूछा जाता वीर पुरुष ,अगर तुमने हमारी बेला की रक्षा नहीं की होती तो मैं तुम्हें अपने हाथों से मौत के हवाले कर देती दस्यु पुत्र और हां हमारा परिचय अपने पिता से पूछना वो तुम्हें बताएंगे कि दास कौन हैं"।
इतना कहकर सभी सखियां घोड़े पर सवार होकर उसे वहीं छोड़कर बेला को लेकर वापस दास कबीले की तरफ बढ़ने लगीं।
उनके जाने के बाद मलय खुद विस्मित सा वहां खड़ा सोचता रहा कि अनजाने में उसने अपने शत्रुओं की मदद कर दी।
इधर घायल अवस्था में बेला जब कबीले में पहुंची तो समूचे कबीले में हाहाकार मच गया,अग्नि वत्स अत्यधिक चिंतित हो उठे।
उन्होंने बेला की सखियों से जब पूरा वृतांत सुना तो कुछ सोच में पड़ गए और अपने दांतों को पीसकर बोले ,"शक्ति वेग"!!.
सखियां कुछ समय उपरांत वहां से वापस चली गईं।
बेला शयन कक्ष में लेटी लेटी दस्यु पुत्र मलय के बारे में ही सोचती रही,संध्या के समय अग्नि वत्स बेला को देखने आए,उनके आगमन से बेला की तंत्रा टूटी,वे उसके सिरहाने बैठकर उसके सर को सहलाने लगे।
बेला को उनके स्पर्श से बहुत प्रसन्नता हो रही थी और वह प्रसन्नता के साथ ही उन्हें मलय की वीरता का वर्णन कर बैठी।
उसकी बातों में एक शत्रु के पुत्र का वर्णन उन्हें अच्छा नहीं लगा ,बेला के माथे को सहलाते उनके हाथ एकदम ही रुक गए किन्तु बेला अभी अस्वस्थ थी वे जानते थे इसलिए अपनी लाडली पुत्री से बड़े प्रेम से बोले,"मुझे ज्ञात है कि उसने तुम्हारे प्राणों की रक्षा की है किन्तु अपने शत्रु पर दासों ने कभी भी रहम नहीं किया और ना ही दस्यु कभी हमारे मित्र बनेंगे बेला ,मरते दम तक भी हर दास और दस्यु आपस में शत्रु थे और रहेंगे।"
बेला अपने पिता की बात सुनकर बोली,"पर मेरे प्राण तो नागों ने हरने का प्रयास किया था ,मलय जिसे आप कोस रहे हैं उसने तो मुझे बचाया था पिता श्री।"
बेला की बातें सुनकर अग्निवत्स की आंखों में रक्त उतर आया वह मुष्टी भींच कर ज़ोर से बोले 'मृगांकदत्त !'
"आप अपने क्रोध पर काबू कीजिए पिता श्री".... लेटे हुए बेला ने अपने पिता श्री की ओर देखकर कहा।
"इतना सब होने पर तुम मुझे शांत होने के लिए कह रही हो बेटी, मैं कैसे शांत हो सकता हूं...ये जरूर कोई षड्यंत्र है.. बरसों पहले तुम्हारी मा को...नहीं!..नहीं! दस्यु कभी हमारे मित्र नहीं हो सकते ..." ...अग्नि वत्स अपनी बात पूरी नहीं कर सके और बेला को सीने से लगाकर रोने लगे।
इधर बिना घोड़े के जैसे तैसे दस्यु कस्बे पहुंचा मलय ज्यों ही अपने पिता शक्ति वेग से मिलने पहुंचा तो उसने देखा कि मार्ग में जिन नागों से उसका सामना हुआ था वे उसके पिता शक्ति वेग के साथ बैठे थे।
मलय भी उनके समीप जाकर बैठ गया ।
"आज हम तुम्हारी वीरता से बहुत प्रसन्न हुए हैं"....नाग मृगांकदत्त ने मलय की ओर बड़ी कुटिल मुस्कान के साथ देख कर कहा।
क्रमशः*(शेष अगले भाग में)