भाग - 3
मृगांकदत्त की उस कुटिल मुस्कान का मलय पर कोई खास असर तो नहीं हुआ और एक नाग कुमार के अवसरवादी शब्दों की लोभ भरी प्रशंसा भी मलय पर कुछ विशेष असर नहीं दिखा सकी उल्टा मलय को क्षणिक क्रोध अवश्य उत्पन्न हुआ जिसे वहां उपस्थित शक्ति वेग भांप गया और स्थिति को संभालकर बोला,"पुत्र ! अब वो दिवस दूर नहीं जब अग्निवत्स समेत समूचे दास कबीले में दस्यु और नाग मिलकर अपना शासन चलाएंगे और तुम शंकित बिल्कुल भी मत रहो मेरे वीर पुत्र मलय ,नागकुमार और उनकी समूची विरादरी हमारी हितेषी है।"
मलय जानता था कि इस समय उसके पिता किस भावना के वशीभूत हैं इसलिए वह उनके कक्ष से निकल कर अपने विश्राम कक्ष में लौट आया।
मलय विश्राम करने लगा ,कुछ समय उपरांत उसका अभिन्न मित्र कर्मसेन उससे मिलने आया।
"कहो मित्र आजकल तुम्हारा कुछ भी पता नहीं रहता ,सुना है आज तुमने दासों पर एक अहसान कर दिया ,लेकिन इतनी दरियादिली की कोई खास वजह अवश्य रही होगी?"
मलय उसकी बातों को सुनकर बोला,"मित्र !...समझ नहीं आता किस मुख से वर्णन करूं ...उस सौम्या ...उस चंद्रिका का!.. काश!, कि तुम भी आज मेरे साथ वहां उपस्थित रहे होते ".
बेला के सौन्दर्य ने जिस प्रकार मलय को प्रभावित कर दिया था उसे समझकर कर्मसेन ने कहा,"हां सुना है विदुषी बेला और अग्नि वत्स की इकलौती संतान बहुत अधिक रूपवान है किन्तु मित्र एक शत्रु कन्या पर इतना रीझना तुम्हें शोभा नहीं देता ,याद रखो समय पाकर दास समस्त दस्युओं का खात्मा कर देंगे।"
मलय को अपने मित्र की बातों पर क्रोध नहीं आया वह थोड़ा सा गंभीर होकर बोला,"मित्र!....जिस शत्रुता की तुम या कहूं हम दस्यु बातें करते हैं क्या वाकई उनका कोई अस्तित्व मेरे या तुम्हारे किसी के जन्म के साथ है....और हमारे पूर्वजों ने जो कृत्य लिए उनके लिए हम हमेशा एक अनंत युद्ध नहीं कर सकते हैं....मेरे प्रिय मित्र !,मुझे और तुम्हें तो ठीक ठीक ज्ञात भी नहीं कि हम आपस में शत्रु बने ही क्यों थे?....अगर मेरा एक भी शब्द गलत हो तो तुम उसे सुधार सकते हो मित्र , मैं तुम्हें अवसर देता हूं।"
कर्मसेन मलय की बातों पर विचार करने लगा लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि किसे गलत कहे एक और वह खुद भी दस्यु था तो वहीं दूसरी ओर एक मित्र के वास्तविक धर्म की भी परीक्षा हो रही थी उसने आखिरकार कुछ क्षणों उपरांत अपने मौन को तोड़ते हुए कहा,"मित्र!..मेरे लिए तुम मेरे सर्वस्व हो ...यदि प्रेम के प्रति तुम इतने निर्मल विचार रखते हो तो सच कहता हूं मित्र मेरी ये तलवार तुम्हारे प्रेम के प्रति घृणा से भरे गलों को उनके धड़ से अलग कर के रख देगी, किंतु मित्र क्या दास तुम्हें अपना लेंगें? ,और क्या तुम्हारे पिता भी?"
मलय ने कहा,"मुझे अगर तुमने सही समझ लिया तो मुझे फिर किसी की फ़िक्र रत्ती भर भी नहीं मित्र,तुम्हारी नज़रों में यदि मेरा प्रेम प्रामाणिक प्रतीत हुआ तो अब भला किसी और प्रामाणिकता की गुंजाइश ही क्यों मित्र कर्म सेन?"
कर्मसेन ने कहा,"वह इसलिए मित्र क्योंकि मेरे अकेले का तुम्हें प्रमाणित करना कि तुम सही हो समूचे कबीले की आवाज़ कभी नहीं बन सकता ।"
"तो फिर ये जन्म जन्मांतर की शत्रुता भी खत्म होकर रहेगी मित्र ।"......मलय ने कहा।
"तुम कहना क्या चाहते हो मित्र मलय तनिक स्पष्ट होकर कहो"......कर्म सेन ने कहा।
"यही कि मैं बेला को अपनाऊंगा".....मलय ने आत्मविश्वास के साथ कहा।
"तो ठीक है मित्र यही सही मैं तुम्हारा साथ देने के लिए तैयार हूं".....कर्म सेन ने मलय से कहा।
इधर मलय बेला के लिए सम्पूर्ण दासों सहित अपने पिता शक्ति वेग से लोहा लेने को आतुर हुआ जा रहा था वहीं दूसरी ओर बेला को मलय की याद आ रही थी ।
धीरे धीरे काफी दिवस बीत गए ।एक दिन बेला और कनक मंजरी उद्यान में आनंदित होकर वार्तालाप कर रही थीं ,बाते करते करते बेला का दुःख फुट पड़ा वह दुखी भाव से कनकमंजरी से बोली,"सखी मुझे उस दस्यु कुमार की बहुत अधिक याद सताती है ,प्रथम मुलाकात में वह मेरे ह्रदय में प्रवेश कर गया ...और तो और अगर मैं आज जीवित होकर यहां सकुशल हूं तो यह सब उनकी ही बदौलत है ....क्या ऐसा कोई जतन नहीं कि मेरी और दस्यु कुमार की मुलाकात हो सकती ।"
बेला के मुख से मलय का नाम सुनकर कनकमंजरी थोड़ा असहज हो गई किन्तु सखी को प्रेम विरह में पाकर उसने खुद को नियंत्रित रखा और बोली," तुम्हारी बातें बड़ी अटपटी हैं...वे हमारे शत्रु हैं....हमें जन्म से सिखाया जाता है कि अगर कोई दस्यु दिखे तो उसे खत्म कर दो और तुम्हें प्रेम भी हुआ तो एक दस्यु से!"
"लेकिन वो एक वीर भी है"....बेला ने कहा।
"केवल वीर होना काफी नहीं है मेरी प्रिय सखी ...हम केवल दासों से ही संबंध रख सकते हैं और वे ही हमारे लिए उपयुक्त वर हो सकते हैं ,दस्यु नहीं।"......कनकमंजरी ने बेला से कहा।
"दास ही क्यों कनकमंजरी?".......बेला ने रुआंसे गले से पूछा।
"क्योंकि ऐसा तुम्हारे माता और पिता का निर्धारण है "......कनकमंजरी ने कहा।
कनकमंजरी ने हर एक तर्क से बेला को समझाने बुझाने की कोशिश की किंतु बेला तैयार नहीं हुई काफी देर तक कनकमंजरी को सुनती रही बेला कहने लगी,"मुझे ना जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे पिता श्री ने कुछ छुपाया है ....मुझे आज तक यही मालूम था कि मेरी मां के हत्यारे दस्यु थे लेकिन आज ना जाने क्यों मेरा मन बार बार मुझसे कह रहा है कि ये बात पूरी तरह सत्य नहीं है सखी"।
"तो फिर पूरा सत्य क्या है सखी ?".....कनकमंजरी ने बेला से कहा।
"वो मुझे नहीं पता ...बस एक बात पता है मुझे उससे मिलना है ....और मैं मिलकर रहूंगी।"
"ये तुम क्या अनर्थ करने जा रही हो ....यदि तुम्हारे पिता को भनक भी हो गई तुम्हारे इस कृत्य की तो जानती हो ना कि क्या परिणाम घटित होंगे ?"....कनकमंजरी ने घबराए स्वर से कहा।
"हां मैं सब जानती हूं और ये काम मैं पिता श्री से अनुमति लेकर ही करूंगी बस मेरी बात बन जाए।".....बेला ने कहा।
"वो कैसे ,खुलकर कहो जो भी तुम्हारे मन में है बेला"......कनकमंजरी ने बेला से कहा।
"कुछ दिवस पूर्व एक स्त्री और पुरुष को दासों ने अपने कबीले में चोरी छुपे पशु बिक्री करते हुए पकड़ा था ,वे दोनों इस समय निचले दुर्ग में कैद हैं ,मैंने उस स्त्री से दस्यु कबीले की एक एक बात पता कर ली है और अब मैं तुम और हंसावली वहां भेष बदल कर चलेंगी क्योंकि इस समय और कोई भी दूसरा मार्ग दिखाई नहीं दे रहा है".....बेला ने कहा।
"अच्छा!...यदि पकड़े गए तो?"....... कनकमंजरी ने कहा।
"ऐसा नहीं होगा तुम मुझ पर विश्वास रखो और मेरा साथ दो"......बेला ने पूर्ण विश्वास से कहा।
कनकमंजरी बेला का साथ देने के लिए तैयार हो गई,दोनों रात घिरने तक का इंतज़ार करने लगीं और आधी रात के समय दस्यु भेष बनाकर दस्यु कबीले की ओर बढ़ चलीं , चिड़िया बनी हंसा आगे आगे उड़ती जा रही थी और आगे का मार्ग बताती जा रही थी ,पूरी रात्रि पैदल चलते चलते तीनों लोग सूर्योदय तक दस्युओं के क्षेत्र में पहुंच चुकी थीं।
"मैं तो तक चुकी हूं ".....बुझे हुए स्वर से कनकमंजरी ने कहा।
बेला बोली ,"हौसले के साथ बढ़ती रहो ...मलय को ढूंढ़ना अभी शेष है....फिर कहीं एकांत स्थान पर भरपूर आराम कर लेना ।".
मलय की खोज बीन करते करते दोपहर हो चली लेकिन मलय उन्हें कहीं भी नहीं दिखाई दिया...अंत में चलते चलते तीनों नगर को पार करके एक जंगल की ओर जाने वाले मार्ग में आ पहुंचे इस से पहले कि वे उस मार्ग का चुनाव करके आगे बढ़ती बेला ने कुछ देर आराम करना उचित समझा और कुछ देर वहीं रुक कर आराम किया।
"अब हमें वापस अपने कबीले लौट चलना चाहिए नहीं तो संभावना है कि किसी विपत्ति में हम फंस जाएंगी".......कनकमंजरी ने कहा।
"मुझे तो ऐसा नहीं लगता ....और फिर आज पहली बार हमें हमारे शत्रुओं को इतने नजदीक से देखने का अवसर मिला है ...और फिर जब हर जगह को आज देख ही लिया है तो इस वन को क्यों छोड़ दें ...हम अब आगे बढ़ेंगे "......बेला ने कहा।
तीनों पुनः आगे बढ़ने लगीं वन के भीतर कुछ अंदर जाने पर बहुत आवाज़ें आ रहीं थीं ,जैसे किसी पत्थर पर चोट की जा रही हो ....आगे बढ़ते रहने पर उन्होंने बहुत सारे शिल्पी अधिवास देखे जहां से ये आवाज़ें आ रहीं थीं ....वहां कुछ लोग थे जो किसी वृद्ध के मार्गदर्शन में पत्थरों को तराश कर सुंदर सुंदर मूर्तियों को गढ़ने में व्यस्त थे....चिड़िया बनी हंसावली अपने वास्तविक स्वरूप में आ गई और तीनों उन वृद्ध पुरुष के पास पहुंची।
वे वृद्ध पुरुष गुरु मूल देव थे जो एक शिल्पी थे जब उन्हें बेला से सारी बातें पता चलीं तो फौरन उन्होंने कुछ शिल्पियों को मलय को बुला लाने के लिए कहा।
कुछ देर में मलय वहां आ पहुंचा ... शिल्पी अधिवास पहुंचकर मलय ने गुरु मूल देव के चरण छुए और बुलाए जाने का कारण जानना चाहा।
गुरु मूल देव ने उसे सारी बातें बताई ....बेला आई है जानकार मलय अति प्रसन्न हुआ...बेला अधिवास के पीछे पशुओं के पास एक खुली जगह में बैठी हुई कुछ सोच रही थी जबकि कनकमंजरी और हंसावली वहां पत्थरों पर की जा रही कारीगरी को देखने में व्यस्त थीं।
मलय जल्दी से बेला के पास पहुंचा.....बेला उसे निकट पाकर बहुत प्रसन्न हुई ।
मलय ने कहा,"एक दास कुमारी एक दस्यु को ढूंढने दस्युओं के बीच आ गई ...क्या उसे भय नहीं लगता?"
बेला मुस्कुरा कर उसे देखने लगी और बोली,"सिर्फ एक दस्यु से नहीं लगता....और ना ही मुझे लगता है कि बाकियों को भी लगना चाहिए....दास और दस्यु मित्र बन सकते हैं....यदि मैं सही हूं ।"
"तुमने मेरे मन की बात कह डाली बेला .... मेरा भी ऐसा ही सोचना है ।".......मलय ने कहा।
धीरे धीरे बेला मलय एक दूसरे के करीब आने लगे मलय के स्पर्श से बेला आनंदित हो उठी और बोली,"मैं तुम्हें अपना मान चुकी हूं...और तुम से विवाह करना चाहती हूं ।"
"मैं भी अपने ह्रदय में तुम्हें बसा चुका हूं बेला....तुम्हारे जैसी अर्धांगिनी पाकर मेरे जैसे दस्यु का जीवन धन्य हो गया।"
प्रेम सरोवर में गोते लगाने में बेला और मलय कुछ अधिक ही व्यस्त हो गए ,कब कनक मंजरी और हंसा वाली वहां आए उन्हें भान ही नहीं रहा फिर जब हंसा वाली चिड़िया बनकर मलय की बाहों में प्रेम विहार कर रही बेला के सर पर मंडराने लगी तब यकायक उसको वहां पाकर बेला मलय से कुछ अलग होकर देखने लगी ,तब कनकमंजरी भी उसे वहां दिखाई दी।
कानकमंजारी ने मन ही मन मुस्कुराते हुए बेला से कहा कि अब हमें चलना चाहिए क्योंकि रात्रि प्रहर सफर करने में नागों के हमले होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है इसलिए बेहतर है कि अब हम लोग यहां से वापस चलें।
बेला को बात उचित लगी और नयनों में बसे मलय को बेला भौतिक देह में वहीं छोड़कर हृदय के कमल में बिठाकर वापस अपनी सखियों संग दास कबीले को लौट गई....बेला के जाने से मलय भी उदास सा हो गया।
मिलन की इस बेला ने ,मलय और बेला को प्रेम की जिस डोर में कस दिया था वह धीरे धीरे इतनी मजबूत होती चली गई कि कब बेला और मलय को मिलते मिलते दो वर्ष बीत गए कुछ पता ही ना चला ,फिर एक दिन बेला ने मलय को बताया कि वह गर्भवती है और मा बनने वाली है....मलय यह सुनकर हर्षित हुआ ....दोनों के अमर प्रेम की निशानी भौतिक संसार में एक शिशु के रूप में अवतरित हुई ....लेकिन ये सब गुपचुप होता रहा किसी को बेला की सखिओं ने कानों कान खबर तक नहीं होने दी ....लेकिन एक दिन वही हुआ जिसका भय गुरु मूल देव को था।
मृगांक दत्त मलय और बेला के संबंधों के विषय में जान गया था....लेकिन उनके पुत्र के विषय में उसे कोई जानकारी नहीं थी, वह उचित अवसर तलाश रहा था.. उसने नागों को इकट्ठा किया और एक जगह बुलाया।
"मेरे मित्रों !...आज मुझे आप सबकी मदद चाहिए क्योंकि कुछ ऐसा कार्य है जिसे अकेला मैं कभी नहीं कर पाऊंगा ....और यह अवसर ऐसा ही है ,यदि इस समय इसका लाभ नहीं उठाया गया तो हमें फिर दूसरा अवसर शायद ही मिले....इसलिए मेरा कार्य मैं करूंगा और आप अपना ,फिर दास भी हमारे चंगुल में होंगे और दस्यु भी "
एक नाग ने मृगांकदत्त से कहा,"कैसी मदद !..ज़रा विस्तार से कहो ...यदि अग्नि वत्स का समूल नाश करना है तो मैं अपना सर्वस्व तुम्हारे कार्य में अर्पित करता हूं।"
एक एक करके सभी नाग मृगांकदत्त की बातों में आ गए ,वह बोला,"मुझे पता चला है कि नागों की परम शत्रु विदुषी बेला की इकलौती पुत्री और दस्यु शक्ति वेग के पुत्र मलय में प्रेम प्रसंग चल रहा है....इसलिए मैं मौका पाकर शक्ति वेग को उक साऊंगा और आप सभी लोग अवसर मिलते ही मलय और बेला को समाप्त कर देंगे....बाद में हम शक्ति वेग से यह कह देंगे कि षड्यंत्र करके अग्नि वत्स ने तुम्हारे पुत्र का वध कर दिया है...ऐसा होने से वह क्रोध के वशीभूत होकर दासों पर टूट पड़ेगा और उसकी मदद से पहले हम दासों का सफाया करेंगे और बाद में शक्ति वेग को भी रास्ते से हटा देंगे....दास और दस्यु दोनों हमारे अधीन हो जाएंगे।"
समस्त नाग उसकी रणनीति से अत्यधिक प्रसन्न होकर योजना बनाने लगे कि कैसे मलय और बेला को मारना है।
इधर मृगांकदत्ता शक्ति वेग को उकसाने लगा कि उसके शत्रु अग्नि वत्स ने तुम्हारे पुत्र मलय को अपने वश में करने के लिए अपनी पुत्री के माध्यम से जाल बिनकर उसमे मलय को फंसा लिया है।
शक्ति वेग , मृगांकदत्ता की बातों में आ गया और उससे बोला," तुम कुछ भी करो मित्र,किन्तु इस अग्नि वत्स की पुत्री को जीवित नहीं छोड़ना ...अब मेरे पुत्र को एक तुम ही इस जाल से आज़ाद कर सकते हो।"
मृगांकदत्त जो चाहता था वही हुआ अब बस उसे एक षड्यंत्र बुनना था ताकि सांप भी मर जाय और लाठी भी ना टूटे।
वह दिन शीघ्र आ गया जब नागों ने एक चाल चली....वे भेष बदल कर शिल्पियों के साथ गुरु मूल देव के अधिवास में छुप गए ....बेला छुप छुप कर वहीं मलय से मिलने आती थी ....बेला उस दिन अपने पुत्र को दास कबीले में कनकमंजरी के पास छोड़ कर आई थी....जब शाम होने लगी तो बेला वापस लौटने लगी किन्तु मलय हठ कर बैठा कि आज रात्रि रुक कर कल प्रातः काल चली जाना ....बेला उसकी बात मान गई।
रात्रि गहरा चुकी थी.....मलय और बेला रती में रत प्रेम विहार कर रहे थे ....तभी नागों ने अचानक उन पर हमला कर दिया.....मलय ने बहुत कोशिश की किंतु नाग भी अधिक संख्या में थे....वे नाग, मलय और बेला को बांधकर अंधेरे जंगल में ले गए जहां काल बनकर मृगांकदत्त उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।
क्रमशः (शेष अगले भाग में)*