भाग - 4
नाग ,बेला और मलय को बांधकर अंधेरे जंगल में ले आए जहां मृगांकदत्त उनको देखकर बहुत प्रसन्न हुआ वह एक दीर्घ अट्टहास करके बोला,"शाबाश मेरे मित्रों तुमने आज वह अवसर मेरे लिए जीवित कर दिया है जो अगर ये दोनों जीवित रहते तो कतई नहीं होता....अब हमें इस स्वर्णिम अवसर का पूर्ण फायदा उठाना चाहिए नहीं तो फिर हम कभी दोबारा कामयाब नहीं हो पाएंगे।"
मृगांकदत्त सहित सभी नागों ने काफी देर तक विचार विमर्श किया कि, बेला और मलय की इह लीला को कैसे समाप्त किया जाए,फिर सभी लोग इस फैसले पर पहुंचे कि दोनों को ज़िंदा मिट्टी के नीचे एक साथ गाड़ देना उचित है।
नागो ने जल्दी जल्दी एक बहुत बड़ी कब्र को खोदना आरंभ कर दिया।
इधर बेला को लौटता ना देखकर उसकी प्रिय सखी हंसावली चिड़िया बनकर उसे ढूंढ़ती हुई दस्युओं के कबीले आ पहुंची .....वह उड़ती हुई हर उन जगहों पर गई जहां बेला के मिलने की उसे उम्मीद थी....अंत में उसे कुछ नाग दिखे जो जंगल की तरफ जा रहे थे ......वह भी उनके पीछे पीछे चुपके चुपके उड़ती हुई घने अंधेरे जंगल तक आ पहुंची जहां ...मलय और बेला बंधे हुए थे।
वह वहां एक पेड़ पर बैठ कर सब देखने लगी।
काफी देर बाद जब कब्र खुदकर लगभग तैयार थी तो मृगांक दत्त ने अपने साथियों की मदद से मलय और बेला को जीवित वहीं दफ्न कर दिया।
मृगांक दत्त अति प्रसन्न भाव से अपने साथियों से बोला ," अब बस एक आखिरी काम बचा है जो मैं खुद करूंगा ....तुम सभी लोग एकत्रित होकर मेरे पीछे रहना ....अभी चलकर हम शक्ति वेग को अपने अभिनय से ऐसा प्रतीत कराएंगे कि अग्नि वत्स और बेला की चाल में उसका ह्रदय अंश मलय फंस गया है और यदि उसने अभी दासों पर हमारे साथ मिलकर हमला नहीं किया तो ये भी संभव है कि मलय के प्राण ना बचें।"
पेड़ पर बैठी हंसा ने सबकुछ सुन लिया ....और वह उस जंगल से पूरी दम लगाकर उड़ान भरकर दासों के कबीले पहुंची।
वह कनकमंजरी के पास पहुंचकर वापस इंसानी रूप में आ गई और विलाप करने लगी।
उसे विलाप करता देख कनकमंजरी ने उससे कारण जानना चाहा....जब उसने सारी बात बताई तो सच सुनकर कनकमंजरी भी रोने लगी।
कुछ देर पश्चात हंसा वली ने कहा," अब लेकिन जो भी हो हमें बेला और मलय की आखिरी निशानी को बचाना होगा....हमारी सखी को हम नहीं बचा सके लेकिन मुझे ऐसा लगा जैसे कल से यहां शांति सदा के लिए चली जाएगी और भीषड रक्त पात होगा....दासों और दस्युओं के ना टलने वाले इस भावी युद्ध में यह शिशु भी यहां सुरक्षित नहीं बचेगा।"
कनकमंजरी ने कहा ,"तो हम अब क्या करें सखी....इसे इसके नाना अग्निवत्स को सौंपेंगे तो हम पर भी शक किया जाएगा और यदि इसको साथ रखकर यहीं रहे तो भी जीवित नहीं बचेंगे?"
हंसावली काफी सोचकर बोली," हम अभी इस शिशु को साथ लेकर उत्तर की ओर बढ़ना शुरू कर देंगे क्योंकि अब यही मात्र एक शेष मार्ग है।"
कनक मंजरी ने शिशु को अपनी पीठ पर बांधा और घोड़े पर बैठकर तुरंत ही दस्यु कबीले से दूर सुदूर उत्तर की ओर बढ़ चली ....चिड़िया बनी हंसा वाली उसके आगे आगे उड़ रही थी।
इधर मृगांकदत्ता ने अपने अभिनय से शक्ति वेग को उकसा दिया वह बदले की भावना से भरकर उसके साथ दासों पर हमले के लिए तैयार हो गया।
रात्रि के अंतिम प्रहर में दस्युओं ने नागों के साथ मिलकर दासों के पर हमला कर दिया और निचले दुर्ग को जीत लिया...अब बस ऊपरी दुर्ग और अग्निवत्स शेष बचे थे.... शक्ति वेग के नेतृत्व में दस्युओं ने उसे भी घेर लिया .... अग्निवत्स को आत्म समर्पण करना पड़ा ....लेकिन जब शक्ति वेग ने उससे मलय के बारे में पूछा तो उसने कुछ भी नहीं बताया इससे शक्ति वेग और भी भड़क उठा और अपने साथी दस्युओं से बोला,"इसे निचले दुर्ग की काल कोठरी में डाल दो....जब बिना भोजन पानी के ये कुछ दिवस वहां रहेगा तो खुद एक दिन मेरे चरणों में अपना शीश झुकाकर मृत्यु मांगेगा....और तब तक इसकी पुत्री इसे मुक्त करवाने भी अवश्य आएगी ....जो ज़िंदा नहीं बचेगी।"
दस्युओं ने ठीक वैसा ही किया जैसा शक्ति वेग का आदेश था।
दिन पर दिन बीतते रहे किन्तु अग्नि वत्स को मुक्त करवाने कोई नहीं आया .....शक्ति वेग खुद सोच में पड़ गया कि आखिर उसका पुत्र और अग्निवत्स की पुत्री गए तो गए कहां?
एक दिन मृगांकदत्त ने मौका पाकर अपने नाग मित्रों की मदद से शक्ति वेग को पकड़ कर उसी कारावास में बंद करवा दिया जहां अग्नि वत्स कैद था.....शक्ति वेग को यह भी मालूम चल गया था कि बेला और मलय का हत्यारा मृगांकदत्त है...लेकिन वह सच जानकार भी कुछ कर नहीं सकता था।
नागों ने धीरे धीरे दासों और दस्युओं पर अधिकार कर लिया .... मृगांकदत्त और नाग, दासों और दस्युओं पर अत्याचार करने लगे ....जो भी नागों के खिलाफ जाता उसे नाग जीवित ही दफना देते थे।
इधर पिछले तीन महीनों से लगातार भाग रही कनकमंजरी और हंसावली सुदूर उत्तर में कश्मीर के तराई प्रदेशों में पहुंच जाती हैं ।
बर्फ गिरने की वजह से घोड़ा आगे नहीं जा सकता था, इसलिए कनकमंजरी वहीं एक जगह पत्थरों की ओट में रात गुजारना ठीक समझती है।
रात्रि का दूसरा प्रहर था....कनकमंजरी की आंख चिड़िया के अजीब स्वर से खुल गई.....उसने देखा तो एक नकाबपोश, हाथों में उस शिशु को पकड़े था, और उसके दूसरे हाथ में नंगी तलवार चमक रही थी।
क्रमशः*(शेष अगले भाग में)