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भाग 5

12 नवम्बर 2021

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      भाग - 5

हंसावली तुरंत अपने वास्तविक स्वरूप में बदल कर उस अज्ञात नकाबपोश के पीछे प्रगट होकर उसे गर्दन को कस कर जकड़ लेती है।इतनी देर में नींद से कुछ चैतन्य हुई कनकमंजरी पास में पत्थर से टिकी अपनी तलवार बड़ी फुर्ती से म्यान सहित पकड़ कर उस अज्ञात नकाबपोश के बाएं हाथ में मारती है । तलवार की मार से नकाबपोश के हाथ से नंगी तलवार जमीन पर गिर जाती है लेकिन कनक मंजरी बिना देर किए दोबारा अपनी तलवार को म्यान से निकाल कर उस नकाबपोश के पेट के आर पार कर देती है ।वह बेसुध होकर जमीन पर गिरने ही वाला था, तभी  हंसा वली उसकी गर्दन को छोड़कर उसके हाथ से उस शिशु को सकुशल छीन लेती है।

"मैंने बेला की आखिरी निशानी को बचा लिया"..... हंसा ने शिशु को प्यार से हवा में उछालते हुए कहा।
"हां सच ....अगर तुमने चिड़िया बनकर पहरेदारी ना की होती तो आज मेरी तो नींद ही नहीं खुलनी थी ।"

"वो तो मुझे बखूबी आता है"......हंसावली ने कहा।

"वो क्या ?"......कनकमंजरी ने  कहा।
"पहरेदारी करना "...... हंसावली ने कहा।
"हम्म"..........कनक ने कहा।

"इससे से पहले की हवाएं और सर्द हों हमें इस शिशु को किसी के सकुशल हांथों में सौंपना पड़ेगा क्योंकि इसकी सुरक्षा ऐसे खानाबदोश बनकर कभी नहीं हो पाएगी "..........कनकमंजरी ने कहा।

"हां सखी ऐसे समय में जब इसके साथ खुद कुदरत ने अन्याय किया है तो हम और करें भी तो क्या?, खुद हमारे साथ साथ समूचे दास और दस्यु इस प्रेम के कारण संकट में होंगें.....ओह ! बेला, तुमने एक प्रेम ही क्यों किया?"........ हंसावली ने उदास भाव बनाकर कहा।

काफी दिनों की खानाबदोशी कनकमंजरी और हंसावली को नागवार गुजर रही थी किन्तु अपनी प्रियतमा सखी की आखिरी निशानी की हिफाज़त में इस खानाबदोशी को खुद उन दोनों ने ही चुना था ।

रात के गहरे सन्नाटे में बर्फीली हवाओं की फिकर किए बिना एक बार फिर कनकमंजरी ने अपने घोड़े को दौड़ाना आरंभ किया । हंसा वली पुनः उसकी सहायिका बनी और चिड़िया बनकर उसके घोड़े के आगे आगे बढ़ने लगी।

उन दोनों को किसी महफूज़ जगह की तलाश थी जहां वो कुछ दिन सुरक्षित रह सकतीं लेकिन किस्मत से वे अभी उस मंज़िल से अभी भी दूर थीं जो उन्होंने मन में मान रखी थी।

मार्ग में एक जगह के अजीब से शोर ने कनकमंजरी का ध्यान खींच लिया .....कुछ अजीब ही शोर था।

हंसावली पुनः स्त्री रूप में बदल गई और फिर दोनों ने घोड़े को बड़ी सावधानी पूर्वक एक जगह बांध दिया ।

कनकमंजरी ने म्यान से तलवार खींच कर कहा,"हंसा ! लगता है किस्मत में लड़ते लड़ते मर जाना लिखा है।"

"वो तो मालूम नहीं किंतु पहले से उन्हें उकसाना खतरों भरा होगा ....मुझे कुछ करने दो।"..... हंसावली ने कहा।

हंसावली एक बार फिर चिड़िया में बदल कर उस जगह पहुंची जहां से शोर आ रहा था और थोड़ी देर बाद चुपके से कनक मंजरी के पास वापस लौट आई।

हंसावली स्त्री रूप में बदलकर बोली,"ये लोग सोम रस के लुटेरे हैं जो कल दोपहर में पड़ोसी कबीले में आक्रमण करके वहां उत्पात मचाने की योजना बना रहे हैं....बार बार एक ही रट लगाए जा रहे थे कि,"शिशिरवत्स और आर्यों को सोमरस हमें देना ही पड़ेगा नहीं तो कल उन्हें हम रक्त रस से स्नान करवाएंगे।"

कनकमंजरी ने काफी देर विचार किया और फिर हंसावली को देखकर बोली,"सखी कैसे भी हो हर हाल में हमें कल सूर्योदय से पूर्व आर्यों के पास पहुंच कर इनकी योजना से उन्हें अवगत कराना पड़ेगा ....और उम्मीद है इस कोमल शिशु की चिंता फिर कभी हमें करने की भी जरूरत ना पड़े।"

"लेकिन अगर हमें वहां दुश्मन समझ कर कैद कर लिया गया तो?...और फिर आर्य कौन हैं ...मुझे तो आज पहली बार ये शब्द सुनाई दिया...कहीं वे भी नागों की तरह हुए तो?".... हंसा वली ने शंका भरे लहजे से कहा।

"वो जो कोई भी हों यदि उनके पास सोमरस जैसी कोई वस्तु है जिसे ये जंगली लुटेरे लूटना चाहते हैं तो फिर उन्हें यकीन करना ही पड़ेगा कि हम उनकी मदद करना चाहते हैं।".....कनक मंजरी ने बड़े आत्म विश्वास के साथ कहा।

कनकमंजरी फिर एक बार बर्फीली हवाओं की चिंता किए बिना घोड़े पर सवार हो हवा के वेग से उड़ने लगी....वह बिना किसी पूर्व जानकारी के आगे बढ़ रही थी...जिन आर्यों के पास उसे पहुंचना था ना तो उनसे कभी पहले वह मिली थी ना ही उसके राज्य में कभी आर्यों के निवास स्थान के बारे में किसी को खबर थी।

सिवाय बर्फीली शिलाओं के और घने देवदार के ऊंचे वृक्षों के उसे और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था....वह फिर भी लगातार आगे बढ़ रही थी ....अपने लिए ना सही उस शिशु के लिए तो बढ़ ही रही थी जो बिल्कुल अबोध था.... हंसा वली एक जगह एक पेड़ के ऊपर कुछ देर के लिए रुक कर वहां बैठे जंगली तोतों के एक झुंड की जासूसी करने लगी।.. उसने पक्षिओं की भाषा में आर्यों के उस गुप्त निवास स्थल की पूरी जानकारी ले ली जो आर्यावर्त था।

तोतों ने हंसावली से अपने पीछे उड़ने को कहा था ....अब हंसा वली और कनक मंजरी के पास दिशा थी .....दोनों तोतों के साथ एक बहुत बड़ी बस्ती में दाखिल हो गईं।

उन्हें सकुशल पहुंचा कर तोते फिर से वापस उड़ने लगे तब हंसा वली ने स्त्री रूप में आकर उन्हें धन्यवाद दिया .....एक तोता एक सुंदर युवक में बदल गया और बोला,"विद्याधर होना कोई शर्म की बात नहीं बस नग्न रहना पड़ता है और फिर पक्षी वस्त्र नहीं पहनते....लेकिन तुम मुझे गलत मत समझना मैं और मेरे साथी सभी तुम्हारी तरह हैं जो  पहले से खतरे की टोह लेकर आर्यावर्त की निगरानी करते हैं।"

उसकी बातों से हंसावली कुछ शरमा गई और उसे देखकर बोली,"मुझे शत्रु मत समझो ....मुझे भी नग्न रहना पड़ता है तुम्हारी तरह .....लेकिन विद्याधर होने के काफी नुकसान हैं जो सिर्फ हम तुम महसूस करते हैं सभी नहीं।"

युवक वापस तोते में बदल कर अपने झुंड सहित वापस उड़ गया।उनके जाने के बाद कनक मंजरी ने हंसावली को देखा और बोली,"ये आर्यावर्त भी कुछ कुछ हमारे कबीले की तरह है.... मेरा तात्पर्य यहां के जीवन से है..... हां लेकिन ये अभी तक पूर्ण नगरीय नहीं हुए हैं हमारी तरह .....इनकी ग्रामीण बस्ती तो यही कहती है क्यों सखी ?...तुम्हारे क्या विचार हैं?"

"मेरे विचार में आर्यों को ग्रामीण और नगरीय के भेद में रखकर सोचना एक भ्रामक विषयवस्तु होगी क्योंकि यदि यहां मेरी तरह रूप बदलने वाले विद्याधर हैं तो जरूर ही आर्य विशिष्ट तरह के लोग हैं।"......हंसावली ने बड़ी सफाई के साथ कहा।

हंसा की बात सुनकर कनकमंजरी थोड़ा खीज गई और थोड़े तीव्र स्वर से बोली,"तुम तो एक दम ही उस शुक कुमार पर मुग्ध हुई जा रही हो....और ग्रामीण ही हैं ये ....देखो इनकी बस्तियों में ना तो जल निकासी की उन्नत व्यवस्था है ना ही कहीं सुचारू पक्की सड़कें हैं ....मुझे तो इनकी नियत पर भी अब शंका उमड़ रही है प्रिय सखी .....कहीं ये भी उन नागों की तरह तुच्छ ना हों जो अभी विकास के प्रथम सोपान पर ही पहुंच सके हैं।"

"तुम कुछ अधिक शंकालु जान पड़ती हो ....किन्तु मेरी एक बात हमेशा याद रखना कि एक विद्याधर में एक श्रेष्ठ चरित्र होता है....और प्रथम दृष्टया आर्य भले ही ग्रामीण प्रतीत होते हों लेकिन इनका चरित्र जरूर उन्नत है नहीं तो वे तोते हमें गंतव्य तक छोड़ने नहीं आते उल्टा हमें मार्ग से भ्रमित कर देते।"......हंसा वली ने कहा।

हंसावली की बात सुनकर कनक मंजरी की शंका स्वतः समाप्त हो गई .....दोनों चुपके चुपके आर्य कबीले में दाखिल हो गई।

पौ फटने को थी और दोनों घूमते हुए आर्यों के जीवन को नजदीक से देखते हुए एक बहुत बड़ी खुली जगह आकर रुक गई।

खुली जगह  पर बहुत सारे सैनिक और घोड़े जमा थे.....हंसावली चिड़िया बनकर अंदर चली गई और कुछ देर बाद वापस कनक मंजरी के पास लौट आई।

"हमें जल्द से जल्द अंदर पहुंचना है.....आर्यों के प्रमुख शिशिर वत्स भीतर ही रहते हैं ....मैंने उन्हें अपनी आंखों से अभी अभी अंदर देखा है।"......स्त्री में बदल चुकी हंसावली ने कहा।

"ठीक है ..... बस वो हमारा विश्वास करें"......कनकमंजरी ने कहा।

दोनों लोग आगे बढ़ने लगीं द्वार पर पहरेदारों से बात करके उन्होंने शिशिरवत्स तक अपनी बात पहुंचाई ,वे तुरंत ही उन दोनों से मिलने के लिए तैयार हो गए।

उन्हें आदर सहित अंदर बुलाया गया। अब वे शिशिरवत्स के सम्मुख बैठी थीं।
"तुम दोनों के साथ ये शिशु कैसा है....इसके माता पिता कौन हैं?"......शिशिरवत्स ने कनकमंजरी से पूछा।

"ये दासों और दस्युओं के उस प्रेम की आखिरी निशानी है जिसे नागों ने बड़ी बेदर्दी के साथ जीवित ही दफना दिया....ये विदुषी बेला की पुत्री बेला और दास शक्ति वेग के पुत्र मलय के प्रेम से उत्पन्न अनाथ है.....और वह हत्यारा मृगांक दत्त इस तक पहुंच पाता ,मैं और मेरी ये सखी हंसावली इसे लेकर महीनों छुप छुप कर भागते रहे ताकि इसके प्राण बच जाएं और आज रात मार्ग में हमें कुछ जंगली लुटेरे आर्यों को आज दोपहर में लूटने की योजना बनाते मिले .....मैंने कैसे भी खोजबीन करते हुए इस आर्यावर्त तक पहुंचने का सोचा था क्योंकि मैंने उन्हें कहते हुए सुना है कि "शिशिरवत्स और आर्यों को सोमरस हमें देना ही पड़ेगा नहीं तो कल उन्हें हम रक्त रस से स्नान करवाएंगे।"
"सोम !"......शिशिरवत्स ने आश्चर्य भरे स्वर से कहा।

"हां ....उन्हें इसी वस्तु की आवश्यकता थी....और वो संख्या में कुछ अधिक थे....कोई लुटेरे जान पड़ते थे।"......हंसावली ने कहा।

"सोमरस तक पहुंचना किसी साधारण इंसान के बस की बात नहीं ....आज दोपहर मृत्यु उन्हें आमंत्रित करेगी ....और स्नान तो आज हम उनके नीच कुल के रक्त से करेंगे....तुम दोनों हमारी मदद करके आर्यावर्त की मेहमान रहोगी और यदि अवधूत चाहेंगे तो हमारी नागरिक भी बन सकती हो ,इस शिशु को मुझे सौंप दो ये आज से मेरा पुत्र बनेगा और मेरे समान वीर भी।".....शिशिर वत्स ने बड़े गर्वित स्वर से कहा।

"आपका कोटि कोटि धन्यवाद शिशिर वत्स ,किन्तु इस लड़ाई में मुझे भी वीरता दिखाने का अवसर दीजिए हम सिंधु घाटी वाले यूं ही किसी से कुछ नहीं लेते ,इतने आदर सत्कार और मित्रता के बदले मेरी तलवार आज कुछ रक्त से अपनी पिपासा बुझाने को आतुर है ....क्योंकि यदि ये लुटेरे उन नागों के साथी हुए तो फिर मेरे और आपके शत्रु एक ही हुए और कनकमंजरी एक दास है ...और दास कभी शत्रु पर रहम नहीं करते।"......कनकमंजरी ने आवेशित होकर कहा।

"जरूर !....जरूर..!...हम भी तुम्हारे शौर्य को देखना चाहेंगे आज।"......शिशिर वत्स ने बड़े उत्साह के साथ कहा।

दोपहर से कुछ समय पूर्व सभी जगहों पर सैनिक लुटेरों के इंतजार में जमा हो गए ....शिशिरवत्स और कनकमंजरी भी हाथों में तलवार लिए घोड़ों  पर सवार होकर उनका इंतज़ार करने लगे।
हंसावली चिड़िया बनकर निगरानी कर रही थी लेकिन लुटेरों का हमला नहीं हुआ ।

बड़े आश्चर्य की बात थी कि सारे दिन इंतज़ार करने पर भी कहीं कोई हलचल नहीं हुई ....सभी सैनिक सूर्यास्त के समय आराम करने के लिए अपनी अपनी जगह से हट गए ।

खुद शिशिर वत्स और कनकमंजरी भी आराम करने लगे....धीरे धीरे दिन भी डूब गया और रात शुरू हो गई।

रात में जब कनकमंजरी और हंसावली गहरी नींद सोई हुईं थीं तब यकायक हंसा वली की नींद खुल गई वह घबराई हुई थी उसने अपने   बगल में बेसुध सो रही कनक मंजरी को पानी के छीटें मारकर जगाया।

"क्या हुआ सखी!....मुझे क्यों नींद से ऐसे जगा दिया?"..... अलसाए स्वर से आंखें मलते मलते कनक मंजरी ने कहा।

"बात ही ऐसी थी ....मैंने अभी अभी सपने में देखा कि एक बहुत बड़ी बिल्ली है जिसने तुम्हें साबुत निगल लिया ....वहां और भी बिल्लियां थीं जो उस बड़ी बिल्ली के साथ थीं..... मैं सपने में डर गई थी सखी इसलिए तुम्हें जगाया।".......हंसावली ने बड़ी मासूमियत भरे स्वर से कहा।

"अरे मेरी प्यारी सखी ....इतनी फिकर है मेरी ".......प्यार भरे स्वर से कनकमंजरी ने हंसा वली से कहा।

"हां ....तुम्हारे और बेला के सिवा मेरा कौन था इस जगत में ...और बेला के बाद अब तुम बस बची हो .... मैं बिना अपनी सखियों के क्या करूंगी।".......एक बार फिर हंसा वली ने भावुक होकर कहा।

"चिड़िया बनकर चहचहाना!"......कनक मंजरी ने विनोद भाव से कहा।

लेकिन कुछ ही देर में वहां रात के सन्नाटे में पक्षिओं के अजीब सा कोलाहल होने लगा।
जंगली तोतों के कई झुंड आसमान में उड़ने लगे जो धीरे धीरे नीचे की तरफ उतर रहे थे।

नीचे उतर कर वे सभी तोते इंसानों में बदल गए और शिशिर वत्स के अधिवास की ओर बढ़ने लगे।
मुंडेर से उन्हें देख रहीं दोनों सखियां तुरंत तलवार लेकर उनके पीछे पीछे दवे पांव पहुंची और उन से मुकाबला करने लगीं।

लेकिन हजारों की संख्या में तोतों के झुंड कनक मंजरी को आसमान में ऊंचाई तक अपने साथ उड़ा ले गए और फिर उसे वहां से छोड़ दिया....हंसा वली ने अपनी पूरी शक्ति लगा कर नीचे गिर रही कनक मंजरी को सम्हाला पर एक चिड़िया उसे ज्यादा देर तक सम्हाल नहीं सकी ....संतुलन बिगड़ने से दोनों जमीन पर आ गिरी।

कनकमंजरी अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ी ....किन्तु हंसावली वापस स्त्री रूप में बदल पाती इसके पहले ही कुछ तोतों ने उस पर जाल फेंक कर उसे बंदी बना लिया और अपने साथ लेकर चले गए।

नीचे जो तोते इंसानी रूप में उतरे थे उन्होंने बहुत उत्पात मचाया और सोम को चुरा कर भागने वाले थे तभी अवधूत !!!.....अवधूत !!!!के स्वरों के साथ हजारों बाणों ने आसमान में मंडरा रहे तोतों को उनके जीवन से मुक्त कर दिया।
काली रात में मृत्यु के इस अजीब तांडव ने रक्त की  धाराएं बहा दी।

सूर्योदय तक कोलाहल भी शांत हो गया था.....कनकमंजरी को बमुश्किल होश आया जब उसकी आंखें खुली तो उसने अपने सम्मुख एक वीर जिन्हें अवधूत कहते थे पाया ,वे उसका सर बड़े प्रेम से सहला रहे थे।

लेकिन कनक मंजरी ने सबसे पहले हंसावली के बारे में पूछा।
"उसे हम नहीं ढूंढ़ सके ....किन्तु तुम धीरज रखो तुम्हारी सखी एक विद्याधर है वे उसे समाप्त नहीं कर सकेंगे ....वह अवश्य यहां वापस आएगी।"......पास ही बैठे शिशिरवत्स ने कनकमंजरी से कहा।
कनक मंजरी हौसला छोड़ कर फफक फफक कर रोने लगी और बोली,"पता नहीं मेरी प्रिय सखी के साथ क्या हो रहा होगा ....वह किस हाल में होगी....कल जब उसने मुझसे कहा था कि मुझे एक बहुत बड़ी बिल्ली ने साबुत निगल लिया तब मेरे प्रति उसकी प्रेम भावना मुझे दिखी थी ....अब बिना मेरी सखी मैं इस जीवन में क्या करूंगी.... हाय !...मेरी प्रिय हंसावली!!!"

फिर कुछ देर रो चूकने के उपरांत कनक मंजरी ने अवधूत को देख कर कहा,"एक धोखा जरूर हुआ है जो मार्ग में मिले तोतों ने किया क्योंकि हम उन्हें आर्यावर्त का रक्षक मान बैठे थे.. किन्तु वे वही जंगली लुटेरे थे, जो सोम रस को चुराना चाहते थे।"

अवधूत ने उसे प्रेम से देखा और कहा,"बहुत जल्द हम उन जंगली लोगों तक पहुंचकर तुम्हारी प्रिय सखी को आजाद करवा लाएंगे ....अब तुम निश्चिंत होकर स्वास्थ्य लाभ लो।"

क्रमशः (शेष अगले भाग में)*

Anita Singh

Anita Singh

बहुत बढ़िया

28 दिसम्बर 2021

Ved

Ved

29 दिसम्बर 2021

Dhanywad 🙏

Jyoti

Jyoti

बहुत अच्छा

11 दिसम्बर 2021

Ved

Ved

11 दिसम्बर 2021

Dhanyavad 🙏🙏💐

7
रचनाएँ
राखीगढ़ी लव बर्ड्स
5.0
दस्यु और दासों के संघर्ष की एक अनोखी दास्तां जिसमें यदि एक ओर मलय और बेला की प्रेम गाथा शामिल है तो वहीं दूसरी नागों का बुना एक घिनौना जाल भी शामिल है..... मृगांकदत्त जिसे नहीं पहचानता वह काल सिंधु घाटी से बहुत दूर बड़ा हो रहा है....क्या है नागो की असलियत .... मिश्र देश में उनका जुड़ाव,क्या नागों सहित मृगांक दत्त का समूलनाश होकर एक नए सवेरे का जन्म होगा या सदियों तक दासों और दस्युओं को नागों का गुलाम बनकर जीना पड़ेगा .... पढ़ें ये सबकुछ आपकी चहेती किताब "राखीगढ़ी लव बर्ड्स में"।

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