भाग- 7
हंसावली खुद को बचाने के लिए उछल कूद करने लगी । बिल्ली को जब उसे पकड़ने में भारी मशक्कत करनी पड़ी तो वहीं उपस्थित उस दानव रूप वाली बिल्ली ने उस बिल्ली को एक ज़ोरदार लात मारी और बोली,"तुम जरूरत से ज्यादा सुस्त जान पड़ती हो ।"
लात खाकर बिल्ली काफी दूर तक उछल गई और धड़ाम के साथ नीचे गिरी,इसी बीच में हंसावली मौका पाकर अपना पूरा दम लगाकर शिशिरवत्स के पास उड़ती हुई पहुंची।वहां अवधूत और इन्द्र भी थे।
हंसावली अपने स्त्री रूप में बदल गई।उसके चेहरे पर उमड़ी दुःख और चिंता की मिश्रित छवियां देख कर अवधूत ने उससे पूछा,"क्या सब ठीक है....इस तरह तुम्हारा यहां उपस्थित होना मुझे ना जाने क्यों कुछ अनियमित सा जान पड़ा?.... कनक मंजरी कहां है?"
"बिल्ली के पेट में....जल्दी कीजिए इसके पहले यहां कुछ घटित हो खुद को तैयार रखिए ।"..... हड़बड़ाते हुए हंसावली ने कहा।
हंसावली के मुंह से सारे घटना क्रम को जानकर इन्द्र ने तुरंत कार्यवाही करते हुए मृगांक दत्त और मिश्र व्यापारियों से बनी गिल्ड को अपने स्तूप हटा लेने को कहा।
लेकिन नाग, खुद नेफेर और अखेटन के चंगुल में पूरी तरह फंस चुके थे।
हंसावली कनक मंजरी के बिना उदास रहती थी और उसे ढूंढने की पूरी कोशिश करती थी।
एक दिन उसे कहीं से खबर मिली कि नाग पुनः जंगल में एकत्रित होने वाले हैं ।वह उस रात चिड़िया में बदल कर जंगल में पेड़ पर छुप गई।
अर्धरात्रि में मृगांकदत्त और समस्त नाग वहां एकत्रित हुए और किसी का इंतज़ार करने लगे।
कुछ समय उपरांत वहां एकाएक बिल्लियां ही बिल्लियां जमा हो गईं जो एक बहुत बड़ी बिल्ली के पीछे पीछे आईं थीं।
"बास्त के भीतर कुछ है "........बास्त ने नागों को देखकर कहा।
"बिल्लियों की देवी बास्त हम तुम्हारा स्वागत करते हैं"...... मृगांक दत्त ने बहुत दिखावटी स्वर से कहा।
बास्त ने वहां उल्टी की जिसमें साबुत कनक मंजरी बाहर निकली जो मर चुकी थी।
पेड़ से अपनी सखी को मृत देख रही चिड़िया बनी हंसा वाली के मोती जैसे नयनों में नीर उतर आया किंतु वह खुद को नियंत्रित करके पेड़ से चिपकी रही।
कुछ देर बाद अखेटेन और नेफेर वहां पहुंचे और सीधे बास्त के चरणों में गिर गए।
"उठो मेरे सेवकों उठो.....आज रात उसकी है ....उसे याद करो ....वो आज यहां आएगी।".......बास्त ने कहा।
दोनों फिर सर झुकाकर तेज स्वर से कहने लगे,"योद्धाओं की देवी और महान बास्त की बहन सेखमेत हम आपका आह्वान करते हैं.....इस मृत भेंट (कनक मंजरी) को स्वीकार कर हमें अनुग्रहीत करें ।"
कुछ समय उपरांत एक घना कला साया हवा में बनने लगा और फिर कनकमंजरी उसमे समा गई कुछ देर बाद जीवित कनक मंजरी वहां खड़ी थी।
इस अदभुत दृश्य के बाद बास्त की बहन सेखमेत वहां आ गईं।
"कैसी हो प्यारी बहन ?".....बास्त ने सेखमेत से कहा।
"अच्छी हूं हमेशा की तरह"....सेखमेत ने कहा।
"और वो स्तूप क्या उनमें हमारे पिता रा(सूर्य) की अग्नि को प्रवेश करवा दिया?......यहां की नदियों में उबाल ला पाना बिना इसके संभव नहीं है प्यारी बहन बास्त!"........सेखमेत ने बास्त से कहा।
"पर क्या सिर्फ यही करना जरूरी है ?....कुछ और विकल्प नहीं है आपके पास महान सेखमेत"...... मृगांकदत्त ने अपनी कपट पूर्ण वाणी से कहा।
"नहीं ....बिना प्रलय किए बिना कहीं शुरुवात नहीं होगी.....या तो आर्य हमें सोम रस देकर अपनी सभ्यता को बचाएंगे या फिर उन्हें मिटना पड़ेगा क्योंकि उनके द्वारा सोम रस मिलने पर ही तुम इच्छाधारी एक बार फिर से बन सकते हो।".....सेखमेत ने मृगांकदत्त को देखकर कहा।
"परन्तु यदि उन्होंने देने से मना कर दिया ....और फिर यहां तापमान बढ़ा देने से संपूर्ण पदार्थ और जीवन झुलस जाएगा ....जिसमें हमारी सिंधु घाटी का अस्तित्व सदा के लिए समाप्त हो जाएगा।"
"तुम्हारा अस्तित्व तो वैसे भी तुम्हारा नहीं है नाग कुमार मृगांकदत्त....तुम भी क्षल करके दासों और दस्युओं को गुलाम बनाए हुए हो.....लेकिन मृत्यु के बाद ....तुम ज़रा भी मत घबराओ आर्य यहीं रहेंगे लेकिन ममी बनकर ......मेरी बहन और उसकी बिल्लियां हमेशा उनकी ममी की देखभाल करेंगी।"........ सेखमेत ने मृगांक दत्त से कहा।
सोमरस के लालच में अंधे हो चुके नागों ने अपनी संप्रभुता गिरवी रख दी और सेखमेत से हाथ मिला लिया।
उसके कहे अनुसार सप्त स्तूपों में अग्नि उत्पन्न कर दी गई .....कुछ ही समय में संपूर्ण आर्यावर्त एकदम से बहुत अधिक तपने लगा।हिमालय में जमे हिम शिला खंड पिघलने लगे और नदियों में जल का स्तर बढ़ता चला गया।
आर्यों ने हर प्रकार की कोशिश की किंतु उस अग्नि को वे बुझा नहीं सके अंत में इन्द्र के पास नागों और गिल्ड ने एक प्रस्ताव भेजा जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा था कि यदि उन्हें सोमरस नहीं दिया गया तो ये सप्त स्तूप ही सम्पूर्ण आर्यावर्त और आर्यों की चिता बनेंगे।
आर्य पहले खुद को आजाद करना चाहते थे इसलिए उन्होंने पक्के घरों को खाली कर दिया और पुनः अपने प्राकृतिक अधिवास में कच्चे घरों में रहने आ गए।
तापमान का बढ़ना अभी भी जारी था।विवश होकर अवधूत ने आर्यों को एकत्र किया और कहा,"हे आर्यावर्त के महान आर्यों !......इस प्रकार जल मग्न होकर स्वतः समाप्त हो जाने से बेहतर है शत्रु का सामना करना .....अब हम ना चाहते हुए भी युद्ध करेगें।"
समस्त आर्य युद्ध के लिए तैयार हो गए और बास्त से उनका सामना पहले स्तूप पर हुआ।
बिल्लियों ने अद्भुत कौशल के साथ युद्ध किया जिसमें आर्य बहुत अधिक घायल हुए ।बिल्लियों के नाखूनों में जो ज़हर था वह उनके शरीर को नुकसान पहुंचा रहा था ।
इन्द्र ने बास्त को बन्दी बना लिया और उससे सप्त स्तूपों का रहस्य उजागर करने की पूरी कोशिश की।
बास्त ने कहा,"रा तुम्हें नहीं छोड़ेंगे यदि इस भू पटल पर तुम बच भी गए तो रा की गर्मी तुम्हारी आत्मा को जलाएगी और उसकी गर्मी में तुम आर्यों को तला जाएगा।"
"तुम खुद को कुछ अधिक समझती हो .....हम सोमरस से पोषित हैं मूर्ख!.....हमें तुम्हारे पिता का कोई खतरा नहीं है।"....... अवधूत ने कहा।
"वो सोम रस जब देने वाला नहीं रहेगा तब तुम्हें मूर्ख और विद्वान की सच्चाई ज्ञात होगी ......क्योंकि उन सप्त स्तूपों में हर स्तूप इस आकाशगंगा के मध्य में स्थित उस महासूर्य से जुड़ जाएगा जो सोम रस के प्रदाता इस सौर मंडल के इस प्रथ्वी ग्रह के उपग्रह चंद्रमा को तहस नहस कर देगा....पर घबराओ नहीं ....हम तुम्हें तुम्हारे जाने के बाद सहेज कर महफूज़ रखेंगे....ममी बनाकर।"........बास्त ने कहा।
बास्त के मुंह से इस प्रकार की बातें सुनकर अवधूत सहित समस्त आर्य अत्यधिक चिंता में पड़ गए।अवधूत ने बास्त को बन्दी बना लिया और सेखमेत के पास संदेश भिजवाया कि यदि उसे अपनी बहन से प्रेम है तो सप्त स्तूपों में अग्नि का प्रज्वलन रोक दे।
सेखमेत पर अवधूत की बातों का रत्ती भर भी असर नहीं हुआ उल्टा उसने नागों के साथ मिलकर नरसंहार शुरू कर दिया।
बढ़ते तापमान ने असर दिखाना शुरू कर दिया था।आर्यों की मानसिक शक्ति का केंद्र उनका मंत्र मंडल और सोम मंडल व्यवधान महसूस करने लगे।उनकी ऊर्जा और शक्ति का स्तर इतना अधिक नीचे गिर गया कि नागों ने बड़ी आसानी से उन्हें परास्त करना शुरू कर दिया।
इधर इन्द्र और शिशिरवत्स पूरा दम लगाकर आर्यावर्त में अंदर तक घुस चुके नागों को खदेड़ने में लगे थे ।
वहां से बहुत दूर घोड़े पर सवार और हाथों में खून से सनी तलवार लिए अवधूत स्तूपों के पास पहुंच कर सेखमेत को मुकाबले की चुनौती देने लगे।
अवधूत ने रुद्र का रूप धारण कर लिया किन्तु युद्ध में युद्ध की देवी को पराजित नहीं कर सके।
एक दम से सभी स्तूपों में अग्नि समाप्त हो गई।
अवधूत ने संपूर्ण सोमरस मंडल से बढ़े हुए तापमान को जोड़ दिया ।
खुद सेखमेत ये देखकर हैरान हो गई और मदद के लिए अपने पिता रा(सूर्य) को पुकारने लगी।
रा ने उसकी पुकार सुनकर इस प्रथ्वी के पार्थिव सूर्य में अपनी छवि को कुछ देर तक रोक दिया इस कारण से चन्द्र सूर्य संतुलन डगमगा गया ।
सोमरस का आर्य चेतना से संपर्क टूट गया और नागों को इच्छाधारी शक्ति वापस प्राप्त हो गई।
वे दोगुने वेग से शिशिरवत्स और इन्द्र पर टूट पड़े।आर्यों की शक्ति बहुत कमजोर पड़ती गई।
इस स्थिति में हंसावली को एक तरकीब सूझी; वह पूरा दम लगाकर उड़ान भरते हुए विद्याधर तोतों के पास पहुंची, जो तोता पूरी के इन्द्र द्वारा तहस नहस किए जाने के बाद जंगल में एक जगह छुप गए थे। शुककुमार हंसावली को पहली मुलाकात से प्रेम करने लगा था ।जब हंसा ने उसे सारी बातें बताई तो समस्त विद्याधर उसका साथ देने के लिए तैयार हो गए।
कमजोर हो चुके आर्यों को विद्याधरों का साथ मिल जाने से वे फिर से नागों पर भारी पड़ने लगे।
विद्याधरों ने अपनी विद्या से नागों को नाग और इंसान के मेल से मुक्त कर दिया ।अब एक नाग ,एक साधारण इंसान की तरह हो गया और उसके भीतर से उसका गर्म भाग सर्प रूप में सप्त स्तूपों में जा जा कर गिरने लगा।
घबरा कर मृगांकदत्त ने सेखमेत से सप्त स्तूपों को बन्द कर देने के लिए कहा लेकिन उसने मृगांक दत्त को उछाल कर स्तूप में फेंक दिया।
सामान्य इंसान बन चुके नाग रहम की भीख मांगने लगे और आर्यों के गुलाम बन गए ।
आर्य और नाग एक होकर बास्त को साथ लेकर सेखमेत के पास पहुंचे और बोले,"यदि अपनी बहन को बचाना चाहती हो तो इन स्तूपों सहित आर्यावर्त से चली जाओ नहीं तो बास्त की जीवन लीला समाप्त कर देंगे।"
सेखमेत पर उनके वचनों का कोई असर नहीं हुआ उल्टा उसके आह्वान पर सप्त स्तूपों में से सात अग्नि मानव अस्तित्व लेने लगे।
उन अग्नि मानवों ने एक एक करके आर्यों को निगलना आरंभ कर दिया।
इन्द्र ने पूरी कोशिश की कि उन्हें रोक सके किन्तु वह असफल रहा।
विषम हालातों में हंसावली जंगल में कनक मंजरी को ढूंढते हुए पहुंची ।उन दोनों ने जल्दी जल्दी निम्न दुर्ग में कैद अग्निवत्स और शक्तिवेग को कैद से आजाद किया।
अग्निवत्स ने अपनी विद्या से एक अग्नि दैत्य को निर्मित किया जो उन सप्त अग्नि मानवों के पीछे पड़ गया।
अवधूत सहित सभी आर्य योद्धाओं ने बचे हुए सोमरस को पीकर अपने अपने आकार को बढ़ा लिया ।अब वे रा(सूर्य) को पकड़ सकते थे।
रा के पकड़े जाते ही सभी स्तूप भी बन्द हो गए जो अग्नि से प्रज्वलित थे।
सेखमेत स्तूपों के बन्द हो जाने से कुछ कमजोर पड़ गई थी।
ऐसे अवसर का फायदा उठाकर शुक़ कुमार सहित हजारों तोतों ने सेखमेत को हवा में उठाकर बार बार ज़मीन पर पटका।
अवधूत ने अपनी तलवार से बेसुध हो चुकी सेखमेत को मार दिया ।लेकिन वह धुंए में बदलने लगी और एक आग के गोले में बदलकर सूर्य में जाकर मिल गई।
अवधूत ने सूर्य में मिले रा के अंश को आर्यावर्त से एक धुरी बनाकर संपूर्ण शक्ति के साथ बाहर निकाला और अंतरिक्ष में कैद कर दिया।अब रा का अधिपत्य भौतिक सूर्य से चला गया।
आर्यों ने अपनी शक्ति के पुंज को सूर्य के आंतरिक स्रोत से जोड़कर एक मंत्र मंडल को बना लिया जो संपूर्ण आर्यावर्त को एक संतुलित ताप से जोड़ने लगा।
अवधूत सहित सभी आर्यों ने कहा,"तिमिर को काटने वाले और अंधकार को हरने वाले .....परम ऊर्जा स्वरूप सूर्य इस बढ़े ताप को समस्त जीवन के अनुकूल बनाइए।"
धीरे धीरे भू ताप स्थिर होने लगा और जल स्तर भी संतुलित हो गया।
बास्त को आर्यों ने सोमरस का पान कराया जिसके फलस्वरूप उसके भीतर से बिल्ली अंश अलग हो गया और वह एक सुंदर स्त्री में बदल गई।
इन्द्र ने स्वस्थ्य हो चुकी बास्त को एक बार फिर से विद्याधर तोतों के सुपुर्द कर दिया ।वे उसे आसमान में उड़ा कर ले गए और ऊंचाई से महासागर के जल में फेंक दिया।
उसी जल मार्ग से मिश्र के व्यापारी ,नेफेर और अखेटेन के साथ मिश्र भाग रहे थे। लेकिन किस्मत से बास्त उनके जहाज पर आ गिरी जिसे वे पहचान नहीं पाए और आर्य समझ कर मार डाला।
बास्त का बिल्ली स्वरूप एक सामान्य बिल्ली की तरह राखीगढ़ी के जंगल में बेला और मलय की कब्र के पास घूमता रहता था जैसे उसे किसी का इंतजार हो।
समाप्त।