shabd-logo

भाग 2

10 अगस्त 2022

22 बार देखा गया 22

प्रातःकाल मुझसे नहीं रहा गया। उस चकोर-नयनी को देखने की मुझे छटपटी पड़ी। मैं उसके घर की ओर चला। यहां पहुंचकर उसके पिता की फूल-वाटिका में इधर-उधर मैं घूमने लगा कि कहीं उसके दर्शन हो जाएं। मेरा मनोरथ सफल हुआ। घर की खिड़की में मलिन चंद्रमा का सा उदय हुआ। मेरे नेत्र उसी ओर दौड़ गए और उसके दर्शनों से कृतार्थ होने लगे। उपकोशा एक क्षण से अधिक वहां न ठहर सकी। लज्जा के वश होकर उसने अपना मुंह फेर लिया और मुझ पर वज्रपात-सा करके वह लोप हो गई। मेरे सारे शरीर में प्रचंड ज्वाला जलने लगी। मैं संताप से पीड़ित होकर गिरने ही को था कि उपकोशा की एक सखी वहां अकस्मात् आकर उपस्थित हुई। उसने मुझे गिरते देख मेरा हाथ पकड़ लिया। मैं संभल गया।

मेरी देशा पर उसने खेद प्रकट किया। उसने कहा, ‘‘उपकोशा की भी बुरी दशा है। जिस क्षण से उसने तुम्हें देखा है, काम ने अपने पैने बाणों की वर्षा उस पर आरंभ की है। उनसे उसकी किसी प्रकार कहीं भी रक्षा नहीं हो सकती। उनसे बचने का एक ही शिरस्त्राण है। वह आप हैं।’’ यह सुनकर मुझे बड़ा धीरज हुआ। मैंने कहा, ‘‘मेरी जो दशा है वह तुम देख ही रही हो। यदि तुम न आती तो शायद मैं भूमि पर मूर्च्छित होकर गिर पड़ता। जितना शीघ्र हो उतना ही उपकोशा-रूपी अमृतवल्ली के सेवन से मैं अपने शरीर का असह्य दाह शांत करना चाहता हूं। परंतु गुरुजनों की आज्ञा बिना अपना मनोरथ सफल करना मैं अपने लिए अकीर्ति का कारण समझता हूं। अकीर्ति से मर जाना अच्छा है। इसलिए तुम अपनी सखी के मन की बात उसके पिता से कहो; जिसमें वे मेरे गुरू की आज्ञा लेकर विधिपूर्वक विवाह का प्रबंध कर दें। ऐसा ही होने से मेरा और तुम्हारी सखी का कल्याण है।’’

सखी ने यह सब वृत्तांत उपकोशा की माता से कहा। माता ने उपकोशा के पिता से। पिता मेरे रूप, शील और विद्या आदि की बड़ाई सुन चुका था। इसलिए उसने इस बात को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया और मेरे गुरू विद्याविभूति की भी अनुमति प्राप्त कर ली। इस प्रकार मेरा उपकोशा के साथ विवाह निश्चय हो जाने पर मेरा साथ विष्णु कौशाम्बी से मेरी माता को ले आया। उसे वहां जाकर माता को लाने में दो दिन लगे। ये दो दिन मेरे लिए युग हो गए। इन दोनों की प्रतीक्षा में जो-जो मनोरथ मेरे मन में हुए और जो-जो मनोव्यथा मैंने सहन की, उसका अनुमान वे नहीं कर सकेंगे जिनको कभी इस प्रकार की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। किसी प्रकार वह शुभ दिन आया और उपकोशा का पाणिग्रहण करके मैंने अपने मनोरथ सफल किए।

महावीर प्रसाद द्विवेदी की अन्य किताबें

10
रचनाएँ
महावीर प्रसाद द्विवेदी की रोचक कहानियाँ
0.0
हिन्दी साहित्य में महावीर प्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है। वह समय हिन्दी के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के अभावों की पूर्ति का था। इन्होंने ज्ञान के विविध क्षेत्रों- इतिहास, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पुरातत्त्व, चिकित्सा, राजनीति, जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिन्दी के अभावों की पूर्ति की। हिन्दी गद्य को माँजने-सँवारने और परिष्कृत करने में यह आजीवन संलग्न रहे।यहाँ तक की इन्होंने अपना भी परिष्कार किया। हिन्दी गद्य और पद्य की भाषा एक करने के लिए (खड़ीबोली के प्रचार-प्रसार के लिए) प्रबल आन्दोलन किया। हिन्दी गद्य की अनेक विधाओं को समुन्नत किया।
1

तीन देवता भाग 1

10 अगस्त 2022
0
0
0

मेरा नाम वररुचि है। जो एक बार भी किसी अच्छे पंडित के पास बैठा होगा, वह मुझे भली-भांति जानता होगा कि मैं महापंडित हूं। मेरी पंडिताई का हाल ही से समझ लीजिए कि मैंने व्याकरण- संबंधी एक बहुत बड़ा ग्रंथ बन

2

भाग 2

10 अगस्त 2022
0
0
0

प्रातःकाल मुझसे नहीं रहा गया। उस चकोर-नयनी को देखने की मुझे छटपटी पड़ी। मैं उसके घर की ओर चला। यहां पहुंचकर उसके पिता की फूल-वाटिका में इधर-उधर मैं घूमने लगा कि कहीं उसके दर्शन हो जाएं। मेरा मनोरथ सफल

3

भाग 3

10 अगस्त 2022
0
0
0

कुछ दिन में मेरी माता इस संसार से चल बसीं। इसका पहले मुझे बहुत शोक हुआ। परंतु धीरे-धीरे वह कम हो गया और उपकोशा के साथ मैं आनंद से वहीं विन्ध्यनगर में रहने लगा। इस बीच में मेरे गुरू विद्याविभूति के अने

4

भाग 4

10 अगस्त 2022
0
0
0

इस प्रकार मंत्री महाशय से छुट्टी पाकर ज्यों ही उपकोशा थोड़ी दूर आगे गई त्यों ही उसे मार्ग में पुरोहित देवता मिले। उन्होंने भी उसे रोका और अपना अनुराग प्रकट किया। उन्हें भी उपकोशा ने प्रेम-भरी बातों से

5

भाग 5

10 अगस्त 2022
0
0
0

इसी बीच सुवर्णगुप्त ने कृपा की। सखियों ने कहा, ‘‘सुवर्णगुप्त वररुचि की धरोहर देने आया है। वह कहीं आपको देख न ले। इसलिए आप झटपट छिप जाइए।’’ अतएव न्यायाधीश जी ने भी उसी संदूक में रक्षा पाई। उसमें अब तीन

6

भाग 6

10 अगस्त 2022
0
0
0

‘‘हे देवता! इस धूर्त ने मेरे स्वामी का धन लौटाने का वादा तुम्हारे सामने किया है। तुमको यह बात स्मरण होगी। अतः उसे तुम सत्य-सत्य राजा के सामने कहो। यदि न कहोगे तो मैं या तो इसी सभा में तुम्हें खोल दूंग

7

महारानी चन्द्रिका और भारतवर्ष का तारा

10 अगस्त 2022
0
0
0

एक बार, सायंकाल, रानी चन्द्रिका अपनी सभा में अपने रत्नजटित सिंहासन पर विराजमान थीं। उनके सारे सभासद और अधिकारी अपने-अपने स्थान पर बैठे हुए सभामंडप की शोभा बढ़ा रहे थे। सभासदों के चारों ओर अनंत तारागण अ

8

राजकुमारी हिमांगिनी भाग 1

10 अगस्त 2022
0
0
0

पर्वत के सबसे ऊंचे शिखर पर राजकुमारी हिमांगिनी ने अपना घर बनाया। संसार के साधारण जीवों के पास रहना, या उनके साथ हंसना-खेलना उसे जरा भी पसंद न आया। ‘‘सुंदरता और गोरेपन में मैं अपना सानी नहीं रखती; फिर

9

भाग 2

10 अगस्त 2022
0
0
0

यथासमय वसंत ऋतु आई। बादल जहां के तहां उड़ गए। आसपास साफ हो गया। इतने में अनायास एक बड़ा ही सुरूपवान् और गौरवर्ण युवा पहाड़ की चोटी पर दिखाई दिया। अहा, उसकी मुसकान जादू से भरी हुई थी। उसे देखते हिमांगिनी

10

भाग 3

10 अगस्त 2022
0
0
0

यह सुनकर भुवन भास्कर ने शिष्टता और प्रेमपूर्ण कोमल वचनों से इस प्रकार उत्तर दिया- ‘‘स्वच्छ, निष्कलंक और सुंदर कुमारिके। तुम्हारी कांति, तुम्हारे रूप-रंग और तुम्हारे टटकेपन ने मुझे प्रसन्न किया; तुम्ह

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए