एक बार, सायंकाल, रानी चन्द्रिका अपनी सभा में अपने रत्नजटित सिंहासन पर विराजमान थीं। उनके सारे सभासद और अधिकारी अपने-अपने स्थान पर बैठे हुए सभामंडप की शोभा बढ़ा रहे थे। सभासदों के चारों ओर अनंत तारागण अपने-अपने तेज से एक अद्भुत प्रकाशमयी छटा फैला रहे थे। क्रम-क्रम से राज्य के काम अधिकारियों द्वारा किये जाने लगे। महारानी सब कामों की समीक्षा करती हुई विचारपूर्वक आज्ञा भी देने लगीं। उसी समय अकस्मात् एक चमकीली वस्तु दूर अंधेरे से निकलती हुई देख पड़ी और धीरे-धीरे सभा की ओर बढ़ने लगी। जब वह सभामंडप के निकट आ गई तब यह जाना गया कि वह एक धीमी ज्योतिवाला तारा था। उस तारा ने आकर महारानी को दंड प्रमाण किया और प्रमाण करके हाथ जोड़े और सिर झुकाये वहीं वह उनके सामने खड़ा हो गया।
महारानी ने पूछा, ‘‘तुम कौन हो?’’
उसने कहा, ‘‘मैं आप ही की प्रजा में से एक व्यक्ति हूं। मुझे ‘भारतवर्ष का तारा’ कहते हैं।’’
महारानी ने अपने सभासदों से पूछा, ‘‘क्या तुममें से कोई इसे पहचानता है?’’ यह सुनकर एक सभासद ने उत्तर दिया कि ‘‘हां, अब मैंने इसे पहचाना। जब यह यहां आया तब मुझे ऐसा भासित हुआ कि मैंने कभी इसे पहले देखा है, परंतु मैं इसे पहचान न सका। अब नाम बतलाने पर मैंने इसे पहचाना। मैंने तो समझा था कि अब कभी इससे भेंट न होगी; परंतु सौभाग्य से आज यह मुझे फिर दिखलाई दिया।’’
महारानी ने तब उससे पूछा, ‘‘तुम अब तक रहे कहां?’’ उसने कहा, ‘‘मैं अस्त हो गया था।’’ महारानी ने फिर पूछा, ‘‘अच्छा बतलाओ तो ऐसा क्यों हुआ।’’ यह सुनकर उस तारा ने कहा, ‘‘आप इस बात को अवश्य जानती होंगी कि अब भारतवर्ष में युधिष्ठिर, विक्रम और भोज के समान राजा, शंकर, जैमिनी और भास्कर के समान विद्वान् और कालिदास, भवभूति और श्रीहर्ष के समान कवि नहीं उत्पन्न होते। हिमालय से लेकर कन्या कुमारी तक चाहे जितना ढूंढ़िए, कहीं भी, प्राचीन समय के जैसे महात्मा नहीं दिखलाई देते, जो सत्य ही को अपना धन समझें, देश-प्रीति ही को अपना सर्वस्व समझें, और देशभाषा ही को अपनी माता समझें। इसलिए, हे देवी! आप ही विचारिए, कि जहां इस प्रकार का एक भी महानुभाव नहीं वहां के तारा की अस्त हो जाने के सिवा और क्या गति हो सकती है?’’
यह सुनकर महारानी चन्द्रिका ने बड़े आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या कारण है जो प्राचीन काल के जैसे महात्मा अब वहां नहीं उत्पन्न होते?’’ उस तारा ने शोकपूरित शब्दों में उत्तर दिया, ‘‘इसका कारण प्रत्यक्ष है। वहां कौशल्या के समान माता, सीता और द्रौपदी के समान पत्नी, गार्गी, मैत्रेयी और लीलावती के समान विदुषी स्त्रियां अब नहीं होतीं। अतएव आश्चर्य नहीं जो भारतवर्ष में रहने वालों का अधःपात हो जाए।’’
महारानी चन्द्रिका को यह सुनकर महाखेद हुआ और उन्होंने फिर पूछा, ‘‘क्या कारण है जो इस प्रकार की स्त्रियां अब वहां नहीं पाई जातीं?’’ उत्तर में उस तारा ने निवेदन किया, ‘‘इसका कारण महारानी को मुझसे अधिक ज्ञात होना चाहिए, क्योंकि यह एक ऐसी बात है जो स्त्रियों ही से संबंध रखती है। जिस समाज में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती, उनका बात-बात में निरादर होता है, उनकी अभिलाषाओं को पूर्ण करने की ओर प्रायः कोई भी ध्यान नहीं देता, यहां तक कि उन्हें अकारण ताड़ना तक दी जाती है, उस समाज में सीता अथवा द्रौपदी के समान स्त्रियों के उत्पन्न होने की कोई कैसे आशा कर सकता है। इस प्रकार की सामाजिक दुर्दशा भारतवर्ष में बढ़ती ही गई और मेरा तेज धीरे-धीरे कम होता गया। अंत में एक दिन ऐसा आया कि मुझे अस्त हो जाना पड़ा।’’
‘‘अच्छा, यह तो बतलाओ कि तुम्हारा उदय किस प्रकार हुआ?’’
‘‘महारानी ने सुना होगा कि इस समय भारतवर्ष में कुछ सच्चे समाज-सुधारकों का जन्म हुआ है। उन्होंने स्त्री-शिक्षा की ओर ध्यान देना आरंभ किया है, और उस देश के निवासी क्रम-क्रम से अपनी भूल पर पछताने भी लगे हैं। अब स्त्रियों को शिक्षा भी कहीं-कहीं मिलने लगी है। यही कारण है जो मैंने अपना पहला प्रताप थोड़ा-सा प्राप्त किया है। यदि स्त्री-शिक्षा की ओर लोगों का ध्यान इसी प्रकार बना रहा तो मुझे आशा है कि कुछ दिनों में मैं अपना पूरा तेज प्राप्त करके भारतवर्ष में प्रकाशित हूंगा।’’
यह सुनकर महारानी चन्द्रिका ने उसके सिर पर अपना हाथ रखा और आशीर्वाद दिया कि ईश्वर करे, शीघ्र ही, तुम भारतवर्ष रूपी आकाश में अपने पूरे प्रकाश से पूर्ण होकर उदय होओ।