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भाग 8

28 अगस्त 2022

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चोट मौसम ने दी कुछ इस तरह गहरी हमको।
अब तो हर सुबह भी लगती है दुपहरी हमको।।

काम करते नहीं बच्चे भी बिना रिश्वत के।
अपना घर लगने लगा अब तो कचहरी हमको।।

अब तो बहिनें भी ग़रीबी में हमें भूल गईं।
राखियाँ कौन भला भेजे सुनहरी हमको।।

हमने पढ़-लिखके फ़कत इतना हुनर सीखा है।
अपनी माँ भी नज़र आने लगी महरी हमको।।

होंठ अब उसके भी इंचों में हँसा करते हैं।
उसकी सोहबत न बना दे कहीं शहरी हमको।।

डिगरियाँ देखके अपने ही सगे भाई की।
ये व्यवस्था भी नज़र आती है बहरी हमको।।

धीरे-धीरे जो कुतरते हैं हमारे दिल को।
याद उन रिश्तों की लगती है गिलहरी हमको।।


उर्मिलेश

शब्द mic
Rajeev kumar

Rajeev kumar

Thank you

29 अगस्त 2022

भारती

भारती

वाह बहुत खूब,👌👌

29 अगस्त 2022

10
रचनाएँ
Raju ki shayri
0.0
इस किताब में आपको हर किस्म की सायरी और सेर मिलेंगे जिन्हे पड़कर आपका दिल एकदम प्रसन्न हो जायेगा प्यार भरी सायरी टूटे दिल की शायरी दर्द भरी सायरी दोस्ती शायरी मां बाप पर सायरी और बहुत सी सायरी का संग्रह इस किताब मे आपको देखने को मिलेगा आप इस किताब को जरूर पढ़ें
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