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बड़ें भाग मानुष तनु पावा

26 सितम्बर 2015

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चिंतन बड़ें भाग मानुष तनु पावा विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर मो ९४२५८०६२५२ कहा जाता है कि मनुष्य जब बच्चे के रूप में माँ के गर्भ में होता है तो कहा जाता है वह जीव उस अंध कूप से बाहर आने के लिये प्रार्थना करता है कि , हे प्रभु ! तू मुझे इस दुःखद स्थिति से बाहर निकाल ले, मैं तेरा भजन करूँगा। वक्त व्यर्थ नहीं बिताऊँगा, तेरा भजन करके अपना जीवन सार्थक करूँगा। संसार में आते ही अपना वादा वैसे ही भूल जाते हैं जैसे सत्यनारायण की कथा में कलावती के पिता कथा करना भूल जाते हैं . भगवान का स्मरण न करके सांसारिक कार्यों में हम इतना उलझ जाते हैं कि जिस प्रभु ने सब दिया, उसके भजन या उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भी हम समय नहीं निकाल पाते। इसी बात की याद दिलाते हुए संत कबीर जी ने कहा हैः कबीर वा दिन याद कर, पग ऊपर तल सीस। मृत मंडल में आयके, बिसरि गया जगदीस।। क्या आपने कभी सोचा है कि हमने माँ के गर्भ से जन्म लिया, माँ भोजन करती है , उस भोजन को जिस परमात्मा ने शिशु के लिये अपनी जीवनीशक्ति से माँ के दूध में परिवर्तित किया, उसके परमात्मा के प्रति हमने क्या किया ? जिसने रहने को धरती दी और धरती से अन्न दे रहा है, उसका हमने क्या प्रतिदान किया ? चौबीसों घण्टे जो हमारे प्राण चलाने के लिए वायु दे रहा है, उसके बदले में हमने क्या किया ? जिस धरती पर हम रहते हैं, उस धरती के सृजक परमात्मा को , जो हमारे जीवन के लिये शुद्ध हवा , शुद्ध पानी दिये जा रहा है उसको हमने क्या दिया ? प्रकाश के लिये हम लाइट जलाते हैं तो बिजली का बिल भरना पड़ता है, पर जिसके सूर्य के प्रकाश , चन्द्रमा की लाइट का हम जन्म से ही उपभोग कर रहे हैं, उसके बदले में हमने क्या किया ? जो हमारे दिल की धड़कनें चला रहा है, आँखों को देखने की, कानों को सुनने की, मन को सोचने की, बुद्धि को निर्णय करने की शक्ति दे रहा है, निर्णय बदल जाते हैं फिर भी जो बदले हुए निर्णय को स्मरण रखने का ज्ञान दे रहा है, वह परमात्मा है। मरने के बाद भी वह हमारे साथ रहता है, उसके प्रति हमने क्या किया ? उसको हम कुछ नहीं दे सकते . प्रीति पूर्वक उसका स्मरण करते करते प्रेममय होकर ही हम किंचित उॠण हो सकते हैं ? हमने सांसारिक धन कमाया लेकिन भगवान भूख नहीं देते तो कैसे खाते ? भूख ईश्वर प्रदत्त है। खाना तो हमने खाया परंतु पचाने की शक्ति, भोजन से खून बनाने की जीवनशक्ति ईश्वर की है। सुबह उठते समय, रात्रि को सोते समय प्रीतिपूर्वक हम प्रार्थना करें ‘हे प्रभो ! आपको प्रणाम है। आप हमारे हैं। हे परमेश्वर ! कृपा करो, हमें अपनी प्रीति दो, भक्ति दो। हम सूर्य का, हवा का, धरती का, जल का प्रकृति दत्त समस्त संसाधनो का उपभोग करते हैं और ईश्वर का धन्यवाद भी नहीं करते, फिर भी प्रकृति हमें अनवरत देते जाती है । हम चाहे उस परम सत्ता को जाने पहचानें या चाहे न जानें, मानें चाहे नहीं माने फिर भी वे हमारी रक्षा करते हैं। हमको सदबुद्धि देते हैं। दुःख देकर संसार की आसक्ति के प्रति विरक्ति के भाव जागृत करते हैं . सुख देकर संसार में सेवा का भाव सिखाते हैं । भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते-करते ही हम भक्ति के रंग में रंग सकते हैं । भगवान की भक्ति मिली तो सब मिल जायेगा । स्वामी रामतीर्थ ने कहा है " ईश्वर को आवश्यकता है तुम्हारे प्यार की, जगत को आवश्यकता है तुम्हारी सेवा की और तुम्हें आवश्यकता है अपने आपको जानने की। शरीर को जगत की सेवा में लगा दो, दिल में परमात्मा का प्यार भर दो और बुद्धि को अपना स्वरूप जानने में लगा दो। आपका बेड़ा पार हो जायगा। यह सीधा गणित है। लौकिक व्यवहार में एक गिलास पानी देने वाले को भी हम धन्यवाद देते हैं तो जो हमें सब कुछ दे रहा है, उसके प्रति यदि हमें कृतज्ञ होना ही चाहिये . गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है ... बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथहि गावा।। अर्थात बड़े भाग्य से हमें यह मनुष्य-शरीर मिला है। सब ग्रन्थों में यही कहा गया है कि यह मानव शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है। मनुष्य के पास बुद्धि है , भगवान को जानने समझने उनकी भक्ति कर सकने की क्षमता है , ऐसा क्षमतावान मानव-तन पाकर भी हमने भगवान की भक्ति नहीं की तो क्या किया . भगवान की भक्ति के तरीके अलग हो सकते हैं किन्तु उन सारी विधियो का भाव वही होता है , समर्पण , कृतज्ञता और सेवा , दया व करुणा का विस्तार . आइये कोई-न-कोई पवित्र संकल्प कर लें और सत्संग की राह पर चल निकलें . भगवान सदैव हमारे साथ होता है , जरूरत है कि हम ही उससे साथ जोड़े और कभी उसका साथ न छोड़ें .

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रचनाएँ
vivekranjan
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