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चिंतन ।.... सकारात्मक बने

26 सितम्बर 2015

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चिंतन सकारात्मक बने विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर मो ९४२५८०६२५२ व्यक्तित्व को हम दो श्रेणियों में बांट सकते हैं। एक वह, जिसे मनोविज्ञानी नकारात्मक व्यक्तित्व कहते हैं, जो हमेशा चीजों के प्रति ॠणात्मक निराशावादी और उदासीन नजरिया रखता है। ऐसे व्यक्तियो का एकमात्र लक्ष्य हर चीज की अपने आदर्श से तुलना करके गलतियां निकालना ही होता है। ऐसा व्यक्तित्व हमेशा उन चीजों को देखता है, जो नहीं हैं। मौजूद अच्छी चीजें भी उनकी नजर में नहीं आतीं, इसलिए उसमें असंतोष स्वाभाविक और स्थायी बन जाता है। ऐसे व्यक्तित्व अपने आपको ही विषाक्त नहीं बनाते, बल्कि परिवेश में दूसरों को भी विषाक्त कर देते है। यह एक विरासत की तरह भी हो सकता है। अगर हम अपने बचपन में नकारात्मक लोगों के साथ रहे हों , तो यह नकारात्मकता चमकदार शब्द, सुंदर भाषा, आदर्श, स्वर्ग, धर्म, भगवान, आत्मा आदि के आवरण में भी छिपी हो सकती है। नकारात्मक लोग सुंदर शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन वह केवल सायास क्षणिक यत्न होता है . ऐसे लोग सिर्फ इस दुनिया की निंदा करने के लिए दूसरी काल्पनिक त्रुटि रहित आदर्श दुनिया के विषय में बात करते हैं। मनोवैज्ञानिको के अनुसार वे वास्तव में अच्छी दुनिया के बारे में चिंतित नहीं होते , उनका संत-महात्माओं से भी कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन सिर्फ दूसरों को पापी सिद्ध करने के लिए वे संतों की बातें करते हैं। यह बहुत रुग्ण रवैया है। वे कहते मिलते हैं जीसस की तरह बनो, जबकि वे जीसस में बिल्कुल दिलचस्पी नहीं रखते। सिर्फ निंदा करने के लिए यह उनका एक उपाय मात्र है। आप उनके शिकार बनते हैं, क्योंकि आप जीसस नहीं बन सकते। वे मान-मर्यादा, आचार, नीति, नैतिकतावादी नजरिया बनाते हैं। वे समाज के ठेकेदार बनने का प्रयास करते हैं. इस तरह के लोग हर जगह हैं सफर में , चाय पान की दूकान पर कहीं भी सहज बातचीत में इस प्रवृति के लोग स्वस्फूर्त हिस्सा लेने लगते हैं । ऐसे लोग शिक्षक, कुलपति,आम नौकरी पेशा व्यक्ति , संत, बिशप, वगैरह कोई भी हो सकते हैं। बातचीत में ये लोग बड़ी जल्दी हावी हो जाते हैं। उनकी विचारधारा ही उनका सबसे बड़ा हथियार हैं, क्योंकि वे निंदक बन सकते हैं। वे बड़े तर्कसंगत होते हैं। वाद-विवाद में उन्हें हराना बड़ा मुश्किल है। लेकिन वे कभी भी युक्तियुक्त नहीं होते। दूसरे प्रकार का व्यक्तित्व है सकारात्मक व्यक्तित्व, पुष्टिकर व्यक्तित्व जो बिल्कुल अलग है। वे जीवन को जीते हैं और वास्तविकता ही उनका आदर्श तय करती है। वह अत्यंत युक्तियुक्त होता है। वह कभी भी पराकाष्ठावादी नहीं होता। वह संपूर्णतावादी होता है। तार्किक होने की बजाय इस तरह के लोग पूर्णतावादी होते हैं और वे हमेशा चीजों में अच्छाई देखते हैं। ऐसे व्यक्तित्व हमेशा आशावान, उज्जवल, साहसी, निंदा में भरोसा नहीं रखने वाले होते है। इस तरह के व्यक्तित्व के धनी रचनात्मक लोग जो भी हों , जो भी बने वे पूरी सच्चाई से अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं . अपने ॠणात्मक व्यक्तित्व को हम सकारात्मकता में बदल सकते हैं , बस स्वयं का विश्लेषण व सजगता आवश्यक होती है . हम जैसे हैं , उस सत्य को स्वीकार कर हम सकारात्मक बन सकते हैं । हम जो भी कर सकते हैं , हमें वही करना चाहिये । यदि हम कुछ नहीं कर सकते, तो हमें सहजता से उसे स्वीकार कर लेना चाहिये । दुनियां में हम स्वयं की तरह बनने आए हैं , किसी आदर्श की नकल बनने नहीं। धीरे-धीरे हम देखेंगे कि इस स्वीकार्यता से हम सकारात्मक व्यक्तित्व में बदल रहे हो। इससे हम जीवन का हर पल आनंद लेने लगेंगे। हम ज्यादा जागरूक बन जाऐगे और स्वयं पर ज्यादा ध्यान दे पायेंगे। इस परिवर्तन का आनंद लें और जो अंतरतम को ठीक लगे, वही करें । जीवन को हमें आशा के साथ देखना चाहिये । जीवन वास्तव में सुंदर है। यह सोचना उचित नहीं है कि जब सब कुछ संपूर्ण होगा, तभी हम जीवन का आनंद ले सकेंगे। अगर हम ऐसा सोचेंगे तो हम कभी जीवन यात्रा का आनंद नहीं उठा पाऐंगे .

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तीक्ष्ण विश्लेषण के लिए बधाई! जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण, विपरीत परिस्थितयों में भी व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और नयी ऊर्जा प्रदान करता है!

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रचनाएँ
vivekranjan
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स्वरचित नाटक आलेख पिताश्री अनुवाद विज्ञान इत्यादि
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विविधता , नित नूतनता , व परिवर्तनशीलता के धनी... जनभावों के रचनाकार ठक्कन मिसर ..... वैद्यनाथ मिश्र....."नागार्जुन" उर्फ "यात्री"

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विविधता , नित नूतनता , व परिवर्तनशीलता के धनी... जनभावों के रचनाकार ठक्कन मिसर ..... वैद्यनाथ मिश्र....."नागार्जुन" उर्फ "यात्री" .....विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र.vivek1959@yahoo.co.in "जब भी बीमार पड़ूं, तो किसी नगर के लिए टिकिट लेकर ट्रेन में

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मितव्ययी विद्युत प्रणाली के विकास पर इंजीनियर विवेक रंजन श्रीवास्तव से बातचीत

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समीक्षक : एम. एम. चन्द्राविवेक रंजन श्रीवास्तव का व्यंग्य संग्रह 90 के दशक के बदलते रंग-ढंग, रहन-सहन या उपभोगतावादी संस्कृति में तबदील होती नई पीढ़ी की दशा का सीधा-सरल किन्तु प्रभावशाली व्यंग्यात्मक विवरण प्रस्तुत करता है. इसमें वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के कारण देश में उस विकास की प्रक्रिया को

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बड़ें भाग मानुष तनु पावा

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चिंतन बड़ें भाग मानुष तनु पावाविवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर मो ९४२५८०६२५२ कहा जाता है कि मनुष्य जब बच्चे के रूप में माँ के गर्भ में होता है तो कहा जाता है वह जीव उस अंध कूप से बाहर आने के लिये प्रार्थना करता है कि , हे प्रभु ! तू मुझे इस दुःखद स्थिति से बा

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ई मेल एड्रेस का पंजीकरण कानूनी रूप से किया जाना जरूरी इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तवओ बी ११ विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर जबलपुरvivekranjan.vinamra@gmail.comमो 9425806252 इंटरनेट से जुड़ी आज की दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति का ई मेल एड्रेस होना एक अनिवार्यता बन चुका है ! ई गवर्नेंस पेपर लैस बैंकिंग तथा रोज

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कैसा हो साहित्य कि जब साहित्यकार सम्मान लौटाने पर विवश हो तो भव्य जन आंदोलन खड़े हो जावें

13 अक्टूबर 2015
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कैसा हो साहित्य कि जब साहित्यकार सम्मान लौटाने पर विवश हो तो भव्य जन आंदोलन खड़े हो जावें  विवेक रंजन श्रीवास्तव   देश के विभिन्न अंचलो से रचनाकारो , लेखको , बुद्धिजीवियों द्वारा साहित्य अकादिमियो के सम्मान वापस करने की होड़ सी लगी हुई है . संस्कृति विभाग , सरकार , प्रधानमंत्री जी मौन हैं .जनता चुप है

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